Book Title: Subodh Jain Pathmala Part 02
Author(s): Parasmuni
Publisher: Sthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur

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Page 293
________________ तत्त्व-विभाग---'पांच समिति तीन गुप्ति का स्तोक' [ २६७ वेदना' वैयावृत्य२ ईयार्थ३ सयमार्थ' च ।' तथा प्राण धारणार्थ धर्मचिन्तार्थ है छठा ॥१॥ १. धेयरण (वेदना) : क्षुधा वेदनीय को शांत करने के लिए आहार करे। २. वैयावच्चे (वैयावृत्य): आचार्य, उपाध्याय, शैक्ष, ग्लान, तपस्वी स्थविर (वृद्ध) आदि की वैयावृत्य के लिए आहार करे। ३. इरिय (इया) : इर्या शोधकर चलने के लिए आहार करे। ४. संजम (संयम) : सयम निर्वाह के लिए पाहार करे। ५. पारण (प्रारण) : १० दश प्रारणो की रक्षा के लिए पाहार करे। ६. धम्मचिता : स्वाध्याय ध्यान प्रादि' करने के लिए (धर्मचिन्ता) आहार करे। आहार त्याग के ६ छह कारण की गाथा मायके' उवसग्गे२, तितिक्खया बंभचेर गुत्तीसु। पारिणवया तवहेउ', सरीर वोच्छेयरगट्ठाए' ॥१॥ प्रातक' उपसर्ग ब्रह्मचर्य-रक्षा तथा । प्रारिणदया तपहेतु, तथा अनशन' हेतु ॥११॥ १. मायके (अातंक) : शरीर मे रोगादि उत्पन्न हो जाने से आहार त्यागे। २. उपसग्गे (उपसर्ग) . उपसर्ग या परीषह उत्पन्न हो जाने से आहार त्यागे। ३. बंमेचरगुती : ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए पाहार (ब्रह्मचर्य गुमि.) स्थागे।

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