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सुवोध जैन पाठमाला-भाग २ पाठ २८ अट्ठाईसवाँ
२४. 'गोधरम्गचरियार' गौचरी के अतिचारों का प्रतिक्रमण पाठ
पडिक्कमामि गोयरग्ग-चरियाए भिक्खायरियाए
: प्रतिक्रमण करता हूँ : गोचरी (गाय चरने) के समान : भिक्षाचरी मे अतिचार लगाये हो,
प्रविधि प्रवेश के अतिचार
उग्घाड-कवाड- : आवे खुले हुए या अर्गला-शृखला उग्घाटरगाए
आदि रहित कपाट उघाडे हो, सारणा-वच्छा-दारा- : श्वान-बछडे-बच्चे को ठोकर दी हो संघट्टरगाए
या उनका स्पर्श-उल्लघन किया हो,
अप्रामुक-अनेपणीय ग्रहण के अतिचार मडि-पाहुडियाए . दूसरे को दिया जाने वाला अग्रपिड,
या उसे हटवा कर शेप पिंड लिया हो, बलि-पाहुडियाए बलि के लिए बना हुया नेवेद्य या
नैवेद्य लगने से पहले पिण्ड लिया हो,
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प्रतिमावारी श्रावय तया गौचरी की दया करने वाले श्रावफों को गौचरी लाने के पश्चात ईयापथिक तथा गोचरी के अतिचारों का प्रतिक्रमण करने के लिए 'इच्छाफारेणं' 'तस्स उत्तरी' पढ़कर 'इच्छाकारेण' तया इस 'गोयरगचरियाएं' के पाठ का कायोत्सर्ग अवश्य करना चाहिए।