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सूत्र-विभाग-३६ दश प्रत्याख्यानो के पृथक्-पृथक् पाठ [ २२३ । ४. महत्तरा-गारेणं ५. सव्व-समाहि-वत्तिया-गारेणं । घोसिरामि।।
8 'अभिग्रह' का प्रत्याख्यान पाठ
गठिसहियं, मुट्ठिसहियं : गाठ न खोलं, मुट्ठी न खोलू या अभिग्गहं (अभिग्रह) : अमुक द्रव्य, अमुक क्षेत्र मे, अमुक
काल मे, अमुक रीति से न मिले, तब तक मन में निर्धारित समय तक
पच्चक्खामि । तिविह पि प्राहारं-१. प्रसरणं २. खाइम ३ साइमं (अथवा) चउविह पिपाहार-१.असरगं २. पारणं ३. खाइम ४. साइमं । १. अन्नत्थरणा-भोगेरगं । २. सहसागारेरणं ३. महत्तरा-गारेणं ४. सन्च-समाहिवत्तिया-गारेणं । वोसिरामि।
'उपवास' और 'अभिग्रह' का प्रत्याख्यान पाठ प्रायः समान है। 'उपवास' मे 'पारिद्वावरिणयागार' है और अभिग्रह मे नही है। दोनों प्रत्याख्यानो मे आगार सम्बन्धी यही अन्तर है।
१ लेवा-लेवेण २ उक्खित्त-विवेगेणं ३. गिहत्थ-सस?ण और ४. पारिढावरिणया-गारेण'-ये चारो आगार १. साधु के लिए, २ प्रतिमाधारी श्रावक के लिए तथा ३. दो करण तीन योग से गौचरी की दया करने वाले श्रावको के लिए है। घर मे भोजन बन जाने के पश्चात् या ऐसी ही अन्य परिस्थितियो मे 'आयंबिल-निविगइय' का भाव उत्पन्न होने पर, सामान्य गृहस्थ के लिए भी 'लेवा-लेवणं' आदि तीन आगार होते हैं, अतः उन्हे 'पायबिल-निविगई' के लिए नया प्रारभ न करने का विवेक रखना चाहिए।