Book Title: Studies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Author(s): G C Tripathi, Ashokkumar Singh
Publisher: Bhogilal Laherchand Institute of Indology
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आचार्य कुन्दकुन्द और गृद्धपिच्छ उमास्वामी : एक विमर्श
प्रेम सुमन जैन
श्रमणपरम्परा और सिद्धान्त के जो संरक्षक और प्रभावक आचार्य हुए हैं, उनमें आचार्य कुन्दकुन्द और आचार्य गृद्धपिच्छ उमास्वामी प्रमुख हैं। कुन्दकुन्द के जीवन, व्यक्तित्व, योगदान आदि पर विद्वानों ने जो अध्ययन प्रस्तुत किये हैं, उनसे स्पष्ट हुआ है कि ईसा की प्रथम शताब्दी के आस-पास के दार्शनिक और साधनायुक्त जगत् को कुन्दकुन्द ने अपने साहित्य एवं संयमपूर्ण जीवन से पर्याप्त प्रभावित किया था। उनका यह प्रभाव तात्कालिक ही नहीं रहा, अपितु जैनदर्शन और साहित्य की परम्परा में होने वाले परवर्ती आचार्यों के जीवन और लेखन को भी उन्होंने प्रभावित किया है। परवर्ती दार्शनिकों के चिन्तन को भी उन्होंने गति प्रदान की है।
आचार्य कुन्दकुन्द को परवर्ती साहित्य और आचार्यों ने कितना और किस रूप में स्मरण किया है, उसको रेखांकित करने के विभिन्न आयाम हो सकते हैं। कुन्दकुन्द के तत्त्व - चिन्तन एवं दार्शनिक मतों का भारतीय दर्शन के विकास में क्या स्थान है?, जैन दार्शनिकों ने कुन्दकुन्द के दर्शन व चिन्तन को क्या महत्त्व दिया है? एवं कुन्दकुन्द के साहित्य की गाथाएं, पंक्तियाँ, सूक्तियाँ एवं विचार शैली आचार्य उमास्वामी के साहित्य में कहां और किस रूप में अंकित हैं, इत्यादि बिन्दुओं में से यहाँ इसी अन्तिम आयाम पर ही कुछ दिग्दर्शन उपस्थित करने का प्रयत्न है।
आचार्य वीरसेन ने षट्खण्डागम की धवलाटीका में तत्त्वार्थसूत्र और उसके लेखक गृद्धपिच्छाचार्य के नाम उल्लेख के साथ तत्त्वार्थसूत्र का भी