Book Title: Studies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Author(s): G C Tripathi, Ashokkumar Singh
Publisher: Bhogilal Laherchand Institute of Indology

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Page 273
________________ तत्त्वार्थसूत्र की पूज्यपाद देवनंदिकृत सर्वार्थसिद्धिवृत्ति में उद्धरण 263 हैं। एवं 'उक्तं च' करके उद्धृत 1. ओगाढगाढणिचिओ पुग्गलकाएहि सव्वदो लोगो । सुहुमेहिं बादरेहिं अणंताणं तेहिं विवहेहिं । । 5.14.553 2. अण्णोण्णं पविसंता दिंता ओगासमण्णमण्णस्स । मेलंता विय णिच्चं सगसब्भावं ण जहंति ।। 5.17.557 ऐसी ही गाथाएँ कुंदकुंदविरचित एवं पंचत्थियसंगहसुत्तं में क्रमश: संख्या 64 एवं 7 पर मिलती हैं। इनमें पहली 'ओगाढगाढ' इत्यादि गाथा त. वा. में भी उद्धृत है। उद्धरण के उपक्रम वाक्य में सूचित किया गया है- सर्वज्ञानद्योतिततार्थसारं गणधरानुमतवचनरचनं शिष्यप्रशिष्यप्रबन्धाऽव्युपरमादव्युच्छिन्नसन्तानम् आर्षवितथमस्ति । उक्तं च णिच्चिदरधादु सत्त य तरू दस वियलिंदिएसु छच्चेव । सुरणिरयतिरिय चउरो चोद्दससमणुए सदसहस्सा।। 2.32.234 यह गाथा बारसाणुवेक्खा में गाथा 35 पर मिलती है। मूलाचार की दो गाथाएँ 226 एवं 1106 तथा गोम्मटसार, जीवकाण्ड की गाथा संख्या 89 भी इसी प्रकार की हैं। यही गाथा: त.वा. में भी उद्धृत है। एक गाथा 'तस्याश्च संबंधे गाथां पठन्ति' करके उद्धृत है 'पुव्वस्स दु परिमाणं सदरिं खलु कोडिसदसहस्साइं । छप्पण्णं च सहस्सा बोद्धव्वा बासकोडीणं ।' 3.31.426 यह गाथा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में 13.12 पर भी मिलती है। एक गाथा कल्पों के लक्षणों के विषय में 'उक्ता च संग्रहगाथा' करके उद्धृत की गई है। इसको उन्होंने स्वयं ही संग्रहगाथा कहा है, जो इस प्रकार है 'ववहारुद्धारद्वा पल्ला तिण्णेव होंति बोद्धव्वा । संखा दीव-समुद्दा कम्मट्ठिदि वण्णिदा तदिए । । ' 3.38.439 यह गाथा तिलोयपण्णत्ति (प्राय: ई. 550) की गाथा 94 से मिलती है। तिलोयपण्णत्ति की गाथा इस प्रकार है ववहारुद्धारद्वा तियपल्ला पढयम्मि संखाओ । विदिए दीव समुद्धा तदिए मिज्जेदि कम्मठिदी। यद्यपि इन दोनों गाथाओं के शब्दों एवं शब्दक्रम में बहुत अन्तर है,

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