Book Title: Studies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Author(s): G C Tripathi, Ashokkumar Singh
Publisher: Bhogilal Laherchand Institute of Indology

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Page 276
________________ 266 Studies in Umāsvāti 3. एवं ह्युक्तं 'प्रगृह्य प्रमाणतः परिणतिविशेषादर्थावधारणं नयः' इति।- 1.6.24 4. तथा चोक्तं-'सकलादेशः प्रमाणाधीनो विकलादेशो नयाधीनः' इति।- 1.6. 24 यही वाक्य अकलंकदेवकृत तत्त्वार्थवार्तिक (1.6.3) पर 'तथा चोक्तम्' करके इसी रूप में- 'सकलादेशः प्रमाणाधीनो विकलादेशो नयाधीनः' उद्धृत हुआ है। यही वाक्य आगे चलकर तत्वार्थवार्तिक 4.42.13 पर भी दो खण्डों में उद्धृत है। जैसे, सकलादेशः प्रमाणाधीनः' इति वचनात्। 'विकलादेशो नयाधीनः इति वचनात्।' 5. 'नान्यथावादिनो जिनाः' इति। 9.36.890 स. सि. में दो उद्धरण ऐसे हैं जो स्पष्टतः जैन साहित्य से लिये गये हैं। इनमें प्रथम का तो स्रोत निश्चय नहीं हो पाता परन्तु दूसरे का स्रोत मिल जाता है। 1. स.सि., 1.12.179 पर 'अथानेकार्थग्राहि, यह प्रतिज्ञा करके एक कारिका उद्धृत की गई है'विजानाति न विज्ञानमेकमर्थद्वयं यथा। एकमर्थं विजानाति न विज्ञानद्वयं तथा।' सा हीयते। हरिभद्रसूरिकृत (ई. 745-785 में सक्रिय) शास्त्रवार्तासमुच्चय में यह कारिका बिना किसी उपक्रम वाक्य के क्रमसंख्या 332 पर ग्रन्थ के अंग रूप मिलती है। दोनों में अन्तर यही है कि शास्त्रवार्तासमुच्चय में इस कारिका का उत्तरार्ध पूर्वार्द्ध के रूप में मिलता है और पूर्वार्ध उत्तरार्ध के रूप में। नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तिकृत तिलोयसारो (त्रिलोकसार) में भी उक्त कारिका प्राकृत गाथा के रूप में पायी जाती है। वहाँ पर भी उद्धरण सूचक कोई संकेत नहीं है। जैनाचार स. सि. में चार उद्धरण ऐसे हैं, जिन्हें जैनाचार विषयक माना जा सकता है। इनके स्रोत का भी स्पष्ट पता नहीं चलता। 2. उक्तं च-'वियोजयति चासुभिर्न च वधेन संयुज्यते।' 7.13.687 यह उद्धरण सिद्धसेन-दिवाकर कृत के रूप में प्रसिद्ध 'द्वात्रिंशिका' 3, 16

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