Book Title: Studies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Author(s): G C Tripathi, Ashokkumar Singh
Publisher: Bhogilal Laherchand Institute of Indology
________________
264 Studies in Umāsvāti
तथापि दोनों का अर्थ प्राय: एक सा है । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, 13, 36 पर भी यह गाथा मिलती है।
ज्योतिष्पिण्डों से व्याप्त आकाश प्रदेश का परिमाण बताते हुए 'उक्तं च ' करके एक गाथा दी गई है
णउदुत्तरसत्तसया दससीदी चदुगं तियचउक्कं ।
तारारविससिरिक्खा बहुभग्गबगुरू अंगिरारसणी ।। 4.12.465
ऐसे ही अर्थ वाली एक गाथा तिलोयसारो ( त्रिलोकसार) में उपलब्ध है, परन्तु दोनों के पाठों में बहुत अन्तर है ।
सूत्र संख्या 5.25 की वृत्ति में 'उक्तं च' करके एक गाथा उद्धृत है
'अंतादि अंतमज्झं अंतंतं णेव इंदियेगेज्झ ।
जं दव्वं अविभागी तं परमाणुं विआणाहि । । '
त.वा. 5.25। पर में भी यह गाथा 'उक्तं च' करके किंचित् पाठभेद पूर्वक उद्धृत पायी जाती है। इस तरह की गाथा कुन्दकुन्दकृत णियमसारो ( नियमसार) में क्रम संख्या 26 पर किंचित् पाठभेद के साथ मिलती है। तिलोयपण्णत्ति 1.987 पर भी इसी अर्थवाली गाथा किंचित् पाठान्तरादि के साथ प्राप्त होती है। इनमें नियमसार की गाथा इस प्रकार है
अत्तादि अत्तमज्झं अत्तंतं णेव इंदियग्गेज्झ ।
अविभागी जं दव्वं परमाणू तं वियाणाहि ।।
सूत्र संख्या 5.36.596 की वृत्ति में निम्नलिखित गाथा उद्धृत मिलती हैद्धिस्स णिद्धेण दुराधिएण लुक्खस्स लुक्खेण दुराधिए ।
णिद्धस्स लुक्खेण हवेइ बंधो जहण्णवज्जो विसमे समे वा ।।
यही गाथा त. वा. 5.36.2 पर 'उक्तं च' करके उद्धृत की गई है। यह गाथा किंचित् पाठान्तर के साथ छक्खंडागम, 5.6.36 पर तो मिलती ही है, गोम्मटसार, जीवकाण्ड में भी गाथा संख्या 614 के रूप में पायी जाती है।
सूत्रसंख्या 5.38.600 पर द्रव्य के लक्षण के प्रसंग में 'उक्तं च' करके एक गाथा दी गयी है
'गुण इदि दव्वविहाणं दव्वविकारो हि पज्जवो भणिदो ।
हि अणूणं दव्वं अजुदपसिद्धं हवे णिच्चं । । '
यह गाथा कहाँ से ग्रहण की गई है, यह ज्ञात नहीं हो सका है।