Book Title: Studies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Author(s): G C Tripathi, Ashokkumar Singh
Publisher: Bhogilal Laherchand Institute of Indology
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270 Studies in Umāsvāti 3. 'कारणसदृशं हि लोके कार्यं दृष्टम्' इति। (1.20.206) 4. यथा-'साधोः कार्यं तपःश्रुते' इति। (5.17.559) 5. उक्तं च
'न दु:खं न सुखं यद्वद्धतुर्दृष्टश्चिकित्सिते। चिकित्सायां तु युक्तस्य स्याद् दुःखमथवा सुखम्।' न दुःखं न सुखं तद्वद्धतुर्मोक्षस्य साधने,
मोक्षोपाये तु युक्तस्य स्याद् दुःखमथवा सुखम्'।। – (6.11.630) 6. यथा 'अन्नं वै प्राणाः' इति। (7.10.68) 7. यथा 'धनं प्राणाः' इति। (7.10.68) 8. यथा 'काकेभ्यो रक्ष्यतां सर्पिः'। (9.9.819)
व्याकरण सर्वार्थसिद्धि में 32 उद्धरण व्याकरण के हैं, जो पाणिनिकृत अष्टाध्यायी, कात्यायनकृत वार्तिक, पातंजल महाभाष्य, जैनेन्द्र व्याकरण आदि से ग्रहण किये गये हैं। इन उद्धरणों में चार सूत्रवाक्य ऐसे हैं, जिनके स्रोत की जानकारी नहीं मिलती। ये चार सूत्रवाक्य इस प्रकार हैं
1. 'प्रत्यासत्तेः प्रधानं बलीयः।' 1.3.16 2. 'आविष्टलिंगाः शब्दा न कदाचिल्लिंग व्यभिचरन्ति।' 5.2.529 3. तथा चोक्तम् 'क्व भवानास्ते। आत्मनि' इति। 5.12.549 4. सर्वेषु भवेषु सर्वतः 'दृश्यन्ते अन्यतोऽपि'इति तसि कृते सर्वतः।
___8.24.780 इस प्रकार आचार्य पूज्यपाददेवनन्दिकृत सर्वार्थसिद्धि नामक तत्त्वार्थवृत्ति एक महत्त्वपूर्ण प्राचीन टीका ग्रन्थ है। इसमें जो उद्धरण मिलते हैं वे विविध विधाओं से सम्बन्धित तो हैं ही, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इन उद्धरणों के आधार पर आगे भी तुलनात्मक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से अध्ययन किया जा सकता है और इतिहास की लुप्त एवं टूटी कड़ियों को जोड़ा जा सकता है।