Book Title: Studies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Author(s): G C Tripathi, Ashokkumar Singh
Publisher: Bhogilal Laherchand Institute of Indology

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Page 279
________________ तत्त्वार्थसूत्र की पूज्यपाद देवनदिकृत सर्वार्थसिद्धिवृत्ति में उद्धरण 269 हस्तलिखित प्रतियों के आधार से गाथा, श्लोक या वाक्य उद्धृत मिलते हैं, वे किन ग्रन्थों के हैं या किन ग्रन्थों के अंग बन गये हैं यहाँ उन ग्रन्थों के नाम निर्देश के साथ यह सूची दी जा रही है। उनके इस कथन से यह सिद्ध है कि ये उद्धरण हस्तलिखित प्रतियों में यथावत् विद्यमान हैं। अतः यह कहना कठिन है कि ये उद्धरण सर्वार्थसिद्धिकार कृत नहीं हैं। 'तथा चोक्तम्'स्वयमेवात्मनात्मानं हिनस्त्यात्मा प्रमादवान्। पूर्व प्राण्यन्तराणां तु पश्चात्स्याद्वा न वा वधः।।' 7.13.687 यह कारिका तत्त्वार्थवार्तिक 7.13.12 पर भी 'तथा चोक्तम्' करके उद्धृत की गई है। 'उक्तं च'रागादीणमणुप्पा अहिंसगत्तं ति देसिदं समये। तेसिं चे उप्पत्ती हिंसेति जिणेहि णिद्दिट्ठा।' 7.22.705 यह गाथा तत्त्वार्थवार्तिक 7.22.7 पर भी 'उक्तं च' करके उद्धृत मिलती है। इस गाथा का भावात्मक संस्कृत रूपान्तरण (अनुवाद) अमृतचन्द्रसूरि द्वारा रचित पुरुषार्थसिद्ध्युपाय में मिलता है, जो इस प्रकार है अप्रादुर्भावः खलु रागादीनां भवत्यहिंसेति। तेषामेवोत्पत्तिः हिंसेति जिनागमस्य संक्षेपः।।44 इस अनुवादित पद्य एवं कई अन्य गाथाओं के अनुवादित पद्यों को देखकर ऐसा लगता है कि उक्त प्राकृत पद्य किसी प्राचीन ग्रन्थ के हैं और उनकी ही छाया पुरुषार्थसिद्ध्युपाय में है, क्योंकि सर्वार्थसिद्धि में उद्धृत पूर्वोक्त पद्य को अमृतचन्द्रसूरि कृत मानने से वे पूज्यपाद देवनन्दि से पहले के सिद्ध होंगे और उनको इतना प्राचीन मानने के लिए कोई प्रमाण नहीं है। लौकिक आठ (8) उद्धरण ऐसे हैं जो साहित्यिक और लौकिक ग्रन्थों से लिये गये हैं। . इनके निर्देश स्थलों की अभी तक जानकारी नहीं हो सकी है। 1. 'क्षत्रिया आयाताः, सूरवर्माऽपि' इति। (1.4.19) 2. यथा 'अभ्रे चन्द्रमसं पश्येति'। (1.9.164)

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