Book Title: Studies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Author(s): G C Tripathi, Ashokkumar Singh
Publisher: Bhogilal Laherchand Institute of Indology

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Page 275
________________ तत्त्वार्थसूत्र की पूज्यपाद देवनदिकृत सर्वार्थसिद्धिवृत्ति में उद्धरण 265 स.सि. 5.39.602 पर कालद्रव्य के अनेकत्व के प्रमाणस्वरूप 'उक्तं च' करके एक गाथा उद्धृत की गई है 'लोगागासपदेसे एक्केक्के जे ट्ठिया हु एक्केक्का। रयणाणं रासीव से कालाणू मुणेयव्वा।।' यह गाथा गोम्मटसार, जीवकाण्ड में गाथा संख्या 589 एवं दव्वसंगहो में गाथा संख्या 22 पर प्राप्त होती है और ये दोनों ही ग्रन्थ सर्वार्थसिद्धि की रचना के बाद के हैं, अतः यह तो संभव नहीं है कि स.सि. ने इसे इन ग्रन्थों से ग्रहण किया हो, यह गाथा तो किसी प्रसिद्ध एवं सर्वार्थसिद्धि के पूर्व रचित ग्रन्थ से ली गई है। सूत्र संख्या 7.1 की वृत्ति में 'उक्तं च' करके एक गाथा उद्धृत की गई हैअसिदिसदं किरियाणं अक्किरियाणं तह य होइ चुलसीदी। सत्तट्ठमण्णाणीणं वेणइयाणं तु बत्तीस।। 7.1.73 यह गाथा किंचित् पाठान्तर के साथ भावपाहुड 135 पर मिलती है एवं गोम्मटसार, कर्मकाण्ड पर यह गाथा 876 के रूप में भी उपलब्ध होती है। सूत्रसंख्या 7.3 की वृत्ति में 'तथा चोक्तम्' करके एक गाथा उद्धत हैजोगा पयडि-पएसा ठिदि अणुभागा कसायदो कुणदि। अपरिणदुच्छिण्णेसु य बंधट्ठिदिकारणं णत्थि।। 7.3.736 उक्त गाथा एक तरफ मूलाचार में गाथा संख्या 244 पर मिलती है और मूलाचार निःसन्देह सर्वार्थसिद्धि से पूर्व की रचना मानी जाती है। दूसरी ओर पंचसंग्रह 4 एवं 507 तथा गोम्मटसार, कर्मकाण्ड में गाथा 257 पर प्राप्त होती है। वे दोनों ही ग्रन्थ सर्वार्थसिद्धि के बाद के माने जाते हैं। जैनदर्शन सर्वार्थसिद्धि में पाँच उद्धरण ऐसे आये हैं जो जैन ग्रन्थों से लिए गये प्रतीत होते हैं परन्तु उनके स्रोत का अभी तक निश्चय नहीं हो सका है1. 'ज्ञानादेव चारित्रनिरपेक्षात्तत्प्राप्तिः श्रद्धानमात्रादेव वा, ज्ञाननिरपेक्षाच्चारित्रमात्रादेव' इति च।-1.0.3 2. यथा 'उपयोग एवात्मा' इति।-1.4.20

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