Book Title: Studies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Author(s): G C Tripathi, Ashokkumar Singh
Publisher: Bhogilal Laherchand Institute of Indology
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तत्त्वार्थसूत्र की पूज्यपाद देवनंदिकृत सर्वार्थसिद्धिवृत्ति में उद्धरण 261 किया गया है। बोधिचर्यावतार, 9.7 की प्रज्ञाकरमतिकृत पंजिका व्याख्या पृष्ठ 187 में 'तथा' करके पूर्ण कारिका उद्धृत है, जो इस प्रकार हैक्षणिकाः सर्वसंस्काराः स्थिराणां च कुतः क्रिया। भूतियैषां क्रिया सैव कारकं सैव चोच्यते। इस कारिका की पहली पंक्ति कुमारिल के तन्त्रवार्तिक में उद्धृत की गई
है। भामती में दूसरी पंक्ति के 'यैषां' की जगह पर 'येषां' पाठ मिलता है। 3. अन्ये वर्णयन्ति
'पृथिव्यादीनि चत्वारि भूतानि, भौतिकधर्मा वर्णगन्धरसस्पर्शाः, एतेषां समुदायो रूपपरमाणुरष्टकं इत्यादि।' 1.35.237 (बौद्ध)
लोकायत इतरे वर्णयन्ति'पृथिव्यप्तेजोवायवः कठिन्यादिद्रवत्वाधुष्णत्वादीरणत्वादिगुणा जातिभिन्नाः परमाणवः कार्यस्यारम्भकाः'-1.32.237 (लौकायतिक)
इसी प्रकार से दो उद्धरण और मिलते हैं, जो दार्शनिक ग्रन्थों से लिये गये
हैं, इनके स्रोत का पता नहीं चल सका है। 1. 'सामान्यचोदनाश्च विशेषेष्वतिष्ठन्ते' इत्युक्ते विशेषे व्यवस्थितः परिगृह्यते।
7.17.695 2. 'सत्ताद्रव्यत्वगुणत्वकर्मत्वादि तत्त्वम्' इति कैश्चित्कल्प्यत इति। 1.2.12
जैन आगम एवं आगमिक साहित्य सर्वार्थसिद्धि में 21 उद्धरण जैन आगम, आगमिक तथा आगम स्थानीय ग्रन्थों से ग्रहण किये मिलते हैं। 1. आगमस्तावत्
'पुढं सुणेदि सदं अपुढें चेव पस्सदे रू। गंध रसं च फासं पुट्ठमपुटुं वियाणादि।' 1.19.203 इसी प्रकार की एक गाथा आवश्यकनियुक्ति में मिलती है। पंचसंग्रह में