Book Title: Studies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Author(s): G C Tripathi, Ashokkumar Singh
Publisher: Bhogilal Laherchand Institute of Indology

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Page 252
________________ 242 Studies in Umāsvāti अध्याय-8 (i) आद्यो ज्ञानदर्शनावरणवेदनीयमोहनीयायुष्कनामगोत्रान्तरायाः। -तत्त्वार्थसूत्र, 8.5 सज्ज्ञानदर्शनावरणवेद्यमोहायुषां तथा नाम्नः। गोत्रान्तराययोश्चेति कर्मबन्धोऽष्टधा मौलः। - प्रशमरतिप्रकरण, 34 (ii) पञ्चनवद्यष्टाविंशतिचतुर्द्विचत्वारिंशद्विपञ्चभेदाः यथाक्रमम्। -तत्त्वार्थसूत्र, 8.6 पञ्चनवद्यष्टाविंशतिकश्चतुःषट्कसप्तगुणभेदः। द्विपञ्चभेद इति सप्तनवतिभेदास्तथोत्तरतः।। -प्रशमरतिप्रकरण, 35 (iii) प्रकृतिस्थित्यनुभावप्रदेशास्तद्विधयः। - तत्त्वार्थसूत्र, 8.4 प्रकृतिरियमनेकविधा स्थित्यनुभागप्रदेशतस्तस्याः। -प्रशमरतिप्रकरण, 36 उपर्युक्त तीनों स्थलों पर दोनों ग्रन्थों में लगभग पूर्ण साम्य है। अन्तिम स्थल में प्रकृति बन्ध के ही प्रशमरतिप्रकरण में स्थिति, अनुभाग एवं प्रदेश-ये तीन प्रकार गए हैं। अध्याय-9 (i) उत्तमः क्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिञ्चन्य ब्रह्मचर्याणि धर्मः। -तत्त्वार्थसूत्र, 9.6 सेव्यः क्षान्तिर्दिवमार्जवशौचे च संयमत्यागौ। सत्यतपोब्रह्माकिञ्चन्यानीत्येष धर्मविधिः।। - प्रशमरतिप्रकरण, 167 सत्य, तप और ब्रह्मचर्य के क्रम में भेद के अतिरिक्त दशविध धर्मों का उभयत्र समान कथन हुआ है। (ii) अनित्याशरणसंसारैकत्वान्यत्वाशुचित्वास्रवसंवरनिर्जरालोकबोधि दुर्लभधर्मस्वाख्यातत्त्वानुचिन्तनमनुप्रेक्षाः। -तत्त्वार्थसूत्र, 9.7 भावयितव्यमनित्यत्वमशरणत्वं तथैकतान्यत्वे। अशुचित्वं संसारः कर्मास्रवसंवरविधिश्च।। निर्जरणलोकविस्तरधर्मस्वाख्यातत्त्वचिन्ताश्च। बोधेः सुदुर्लभत्वं च भावना द्वादश विशुद्धाः -प्रशमरतिप्रकरण, 149-150 संसार एवं बोधिदुर्लभ भावनाओं के क्रमभेद के अतिरिक्त पूरी समानता है।

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