Book Title: Studies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Author(s): G C Tripathi, Ashokkumar Singh
Publisher: Bhogilal Laherchand Institute of Indology

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Page 228
________________ 218 Studies in Umāsvāti उमास्वाति ने तत्त्वार्थ सूत्र के प्रथम सूत्र में प्रतिपादित किया है - 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणिमोक्षमार्गः अर्थात् सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चारित्र - ये तीनों मिल कर मोक्ष के मार्ग होते हैं। उपयोगो लक्षणम् तत्त्वार्थसूत्र में जीव का लक्षण उपयोग अर्थात् चेतना युक्त बोध शक्ति है।' जीव जिसको आत्मा कहते हैं वह अनादिसिद्ध व स्वतन्त्र द्रव्य है। तात्त्विक दृष्टि से अरूपी होने के कारण उसका ज्ञान इन्द्रियों द्वारा नहीं हो सकता, पर स्वसंवेदन प्रत्यक्ष या अनुमान आदि से किया जा सकता है। संसार अनेक जड़ चेतन पदार्थों का मिश्रण है तथा इन पदार्थों का विवेकपूर्ण निश्चय उपयोग द्वारा ही हो सकता है। उपयोग दो प्रकार का होता है- ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग। बाह्य वस्तु की चेतना को ज्ञान व आत्म चेतना को दर्शन कहा जाता अतः जीव में बाह्य और आन्तरिक दोनों चेतना विद्यमान रहती है। चेतना जीव द्रव्य का सारभूत गुण है, जो प्रत्येक अवस्था में जीव में विद्यमान रहता है। एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय जीवों का वर्णन हमें तत्त्वार्थसूत्र में मिलता है। पृथ्वीकाय से वनस्पतिकाय तक के जीवों में एक इन्द्रिय चेतना है। कृमि, पिपीलिका, भ्रमर और मनुष्य में क्रमशः एक-एक इन्द्रिय की चेतना की वृद्धि हो जाती है। तीर्थंकरों में इन्द्रिय चेतना के अलावा मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्याय तथा केवलज्ञान रहता है। अतः वे सर्वज्ञ कहलाते हैं। आत्मा में केवलज्ञान प्रकट होता है मोह के क्षय से ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्मों के क्षय से। इस प्रकार चेतना की मात्रा के अनुसार जीव शृंखलाबद्ध है। ___तत्त्वार्थसूत्र के द्वितीय अध्याय के दसवें सूत्र में आत्मा के दो भेद बताएँ गये हैं - 1 संसारी और 2 मुक्त। जो आत्मा सम्पूर्ण कर्म क्षय कर मुक्ति लाभ करती है, वही मुक्त आत्मा कहलाती है। जैन दर्शन में आत्मा की मुक्ति के लिये मनुष्य जन्म आवश्यक बताया गया है। सांसारिक जीव मनवाले तथा मन रहित दो प्रकार के हैं। इनके भी दो भेद हैं- त्रस और स्थावर।2 तत्त्वार्थसूत्र में पृथ्वीकाय, जलकाय, वनस्पतिकाय आदि ये एकेन्द्रिय जीव स्थावर माने गये हैं। अन्य द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय जीव त्रस जीवों की श्रेणी में आते हैं। सांसारिक आत्मा चार प्रकार की योनियों में जन्म लेती है- देव, मनुष्य,

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