Book Title: Studies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Author(s): G C Tripathi, Ashokkumar Singh
Publisher: Bhogilal Laherchand Institute of Indology
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आचार्य कुन्दकुन्द और गृद्धपिच्छ उमास्वामी : एक विमर्श 201 तत्त्वार्थसूत्र में इस गाथा के भाव को एक सूत्र में व्यक्त किया गया है
औपशमिकक्षायिकौ-भावौ-मिश्रश्च
जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिकपारिणामिकौ च। - 2/1 इसी प्रकार प्रवचनसार में ज्ञेयाधिकार की गाथा संख्या 73, 74 एवं 75 की विषयवस्तु तत्त्वार्थसूत्र के पंचम अध्याय के सूत्र संख्या 33, 34, 35, 36 के निर्माण का आधार बनी है। इन सूत्रों में स्निग्ध और रूक्ष गुण वाले परमाणुओं के बन्ध की व्यवस्था बतायी गयी है।
उमास्वामी ने इस प्रकार अपने कई सूत्रों का निर्माण आचार्य कुन्दकुन्द प्रणीत ग्रन्थों की शब्दावली के आधार पर किया है। किन्तु कुछ सूत्रों में उन्होंने अपनी ओर से कई शब्द जोड़े भी हैं और विषय को अधिक स्पष्ट किया है। कुछ स्थानों पर नये सूत्र भी बनाये हैं। पं. दलसुख भाई मालवणिया का यह कथन सत्य है कि कुन्दकुन्द की ज्ञान के भेद, स्वरूप एवं उनके विषय आदि सम्बन्धी अनेक सूत्रों की रचना की है।
जैनदर्शन के वैज्ञानिक मनीषी डॉ. नन्दलाल जैन ने अपने एक आलेख में कहा है कि कुन्दकुन्द के द्वारा प्रतिपादित जीव की परिभाषा उमास्वामी के युग में परिवर्धित और अधिक पूर्ण हुई है। कुन्दकुन्द ने गाथाओं में 'उपयोग' की केवलज्ञान-दर्शनात्मकता ही बताई है (पंचास्तिकाय, गा. 40), चेतना का विशेष विवेचन नहीं है। अतः स्पष्ट है कि आचार्य कुन्दकुन्द आचार्य उमास्वामी से पूर्ववर्ती हैं।
डॉ. सुषमा गांग ने अपने शोधप्रबन्ध में कहा है कि कुन्दकुन्दाचार्य के उत्तरवर्ती आचार्यों में उमास्वाति (ईसा की तृतीय शती) कुन्दकुन्दाचार्य से प्रभावित हुए प्रतीत होते हैं। वे सत्ता की परणामिनित्यता का समर्थन करते हैं (सूत्र 5/29, 30, 31)। आचार्य कुन्दकुन्द ने बन्ध के चार हेतु गिनाये हैं (समयसार गाथा 109), जबकि उमास्वामी ने इसमें 'प्रमाद' को जोड़कर पाँच हेतु माने हैं - मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग - मिथ्यादर्शनाविरति-प्रमादकषाय-योगा बन्धहेतवः। -8/1
तत्त्वार्थसूत्र में जो बारह अनुप्रेक्षाओं के नाम प्राप्त होते है, वे भी आचार्य कुन्दकुन्द की बारस अणुवेक्खा के अनुसार हैं। प्रथम अनुप्रेक्षा के नाम में मात्र अन्तर है। कुन्दकुन्द ने जिसे 'अणिच्च' कहा है – उसे तत्त्वार्थसूत्रकार ने अध्रुव अनुप्रेक्षा कहा है।