Book Title: Studies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Author(s): G C Tripathi, Ashokkumar Singh
Publisher: Bhogilal Laherchand Institute of Indology
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तत्त्वार्थसूत्र का व्याख्या साहित्य 215 इस तरह इन दोनों की दार्शनिक और तात्त्विक चर्चा में सम्पूर्ण भारतीय दर्शनों के तत्कालीन चिंतन एवं इसके प्रभावों को समझने की दृष्टि से इनका अध्ययन सभी के लिए उपयोगी और आवश्यक है।
तत्त्वार्थाधिगमभाष्य
वाचक उमास्वाति प्रणीत इस भाष्य को तत्त्वार्थसूत्र की स्वोपज्ञ टीका श्वेताम्बर जैन परम्परा मानती है। इसीलिए इस परम्परा में जितने भी टीकाग्रंथ तत्त्वार्थसूत्र पर लिखे गये वे सब प्रायः इसी भाष्य के आधार पर लिखे गये हैं। यह परम्परा इन्हीं वाचक उमास्वाति की एक अन्य रचना ' प्रशमरति प्रकरण' भी मानती है। मुख्यतः इसी के आधार पर दिगम्बर और श्वेताम्बर इन दोनों द्वारा मान्य तत्त्वार्थसूत्र के सूत्रों में भी कुछ अन्तर है। ये भी प्रायः अपनी-अपनी सैद्धान्तिक मान्यताओं के आधार पर।
दिगम्बर परम्परा के दसों अध्यायों में जहाँ क्रमश: 33+53+39+42+42+27+ 39+26+47+9=357 सूत्र हैं। वहीं श्वेताम्बर परम्परा मान्य तत्त्वार्थसूत्र में क्रमशः 35+52+18+53+44+26+34+26+49+7=344 1
तत्त्वार्थ सूत्रभाष्यवृत्ति
सिद्धसेन गणि विरचित (सातवीं से आठवीं शती के मध्य ) श्वेताम्बर परम्परा मान्य अठारह हजार श्लोकप्रमाण यह भाष्यवृत्ति अत्यन्त विस्तृत है । ये सिद्धसेन दिन्नगणि के शिष्य सिंहसूरि के प्रशिष्य भास्वामी के शिष्य थे। पं. सुखलाल संघवी इन्हें ‘गन्धहस्ती' नाम से भी प्रसिद्ध मानते हैं । इनके अनुसार ये सिद्धसेन सैद्धान्तिक थे और आगमशास्त्रों का विशाल ज्ञान धारण करने वाले तथा आगम विरुद्ध प्रतीत होने वाली बातों का आवेशपूर्वक खंडन करने वाले थे। इसमें इन्होंने वसुबन्धु, धर्मकीर्ति आदि अनेक बौद्ध विद्वानों के मतों का भी खंडन किया है।
इस भाष्यवृत्ति में अकलंकदेव के सिद्धिविनिश्चय ग्रंथ का उल्लेख है। अतः इन्होंने अकलंक के ही तत्त्वार्थवार्तिक को अपनी इस भाष्यवृत्ति का आधार बनाया हो तो कोई अतिशयोक्ति नहीं। हाँ, सम्प्रदायगत मन्तव्य इन्होंने अपने ही माने हैं। सिद्धसेन नाम के अनेक आचार्यों का उल्लेख मिलता है। किन्तु ये सन्मतितर्कप्रकरण के कर्त्ता से भिन्न सिद्धसेन हैं। इस वृत्ति के प्रत्येक अध्याय के अन्त में आपने इस प्रकार उल्लेख किया है -
इति श्री तत्त्वार्थाधिगमेऽर्हत्प्रवचनसङ्ग्रहे भाष्यानुसारिण्यां तत्त्वार्थटीकायां प्रथमोऽध्यायः ।