Book Title: Sthaviravali ane Teni Aaspas
Author(s): Gunsundarvijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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સ્થવિરાવલી
૧૨૭
मणुसिणीसु सासणसम्मइट्ठि (२) प्पहुडि जाव अजोगि । केवलि (१४) त्ति, दव्वपमाणेण केवडिया ? संखेजा ॥
(सूत्र ४८, पृ. २६१) मणुसिणीसु मिच्छाइटि-सासणसम्माइट्टिट्ठाणे सिया एजत्तियाओ, सिया अपजत्तियाओ ॥सूत्र ९२॥ सम्मामिच्छाइडिं-असंजदसम्माइट्ठिसंजदासंजदसंजदट्ठाणे णियमा पजत्तियाओ ॥ सूत्र ९३ ॥
( 11म, घसा टीst, पु. १, पृ. 33१, 33२.) वेदाणुवादेण. इत्थिवेदएसु पमत्तसंजदप्पहुडि जाव अणियबादरसांपराइयपविट्ठ उवसमा खवा दव्वपमाणेण केवडिया ? संखेजा ॥सूत्र १२६॥ धवलाटीका-इत्थिवेदउवसामगा दस १० खवगा वीस २० ।
(पु. 3 हुँ, पृ. १४६.) णसयवेदेसु० संखेजा ॥ सू. १३० ॥ धवलाटीका-उवसामगा पंच ५, खवगा दस १० (पृ. ४१९)
धवलाटीका-इत्थिवेदे अपमत्तसंजता संखेज्जगुणा तम्हि चेव पमत्तसंजदा संखेजगुणा सजोगिकेवलि संखेजगुणा (सूत्र १३४, पृ. ४२२)
( 5111 पqil-elst, पुस्तs al) अपमत्तस्य उक्कस्संतरं उचदे । तिण्णिअंतोमुहूत्तेहिं अब्भहिय अट्ठवस्सेहिं उणाओ अट्टेदालीसपुव्वकोडिओ उक्कस्स अंतरं । पजत्तमणुसिणीसु एवं चेव । णवरि पजत्तेसु चउवीसपुव्वकोडिओ, मणुसिणीसु अट्ठपव्वकोडिओति वत्तव्वं । (पृ. ५३) इत्थीवेदेसु पमत्तस्स उच्चदे । अट्टवस्सेहिं तिण्णिअंतोमुहूत्तेहिं ऊणिया
त्थीवेदट्ठिदी लद्धमुक्कस्संतरं । एवमपमत्तस्स वि उक्कस्संतरं भाणिदव्वं, विसेसा भावा । (पृ. ९६)
(पद पंडागम-स्थान सत्यमत्वानुगम-सीवहीઅલ્પબહુપ્રરૂપણા-ધવલા ટીકા-મુદ્રિત પુસ્તક પાંચમું)
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