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३६ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक २ / अप्रैल-जून २००८
साध्वी श्री उदितप्रभाजी ने मेरे सान्निध्य में शोध कार्य करते हुए जैन ध्यानसाधना-पद्धति में कालक्रम में क्या-क्या परिवर्तन आए और किन-किन कारणों से आए इसका विश्लेषण विस्तार से करते हुए प्रारम्भ से लेकर आचार्य महाप्रज्ञ के अद्यतन ध्यान पद्धति तक सभी ध्यान पद्धतियों का सम्यक् विवेचन किया है और यही उनके शोध-प्रबन्ध की विशेषता कही जा सकती है।
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