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साहित्य सत्कार : २२५
है। वहीं लीक से हटकर कुछ ऐसे ज्वलन्त प्रश्नों को भी उठाया है, जो उनकी अपनी तर्कणा शक्ति से उद्भूत हैं। इसीलिये प्रायः सभी शोध-निबन्ध परम्परागत दार्शनिक सिद्धान्तों की पुष्टि करते हुये भी अपनी मौलिकता को बनाये हुये हैं।
अन्त में मैं जैनदर्शन की विशेषताओं को अधीति विद्वान् प्रोफेसर डॉ० दयानन्द भार्गव के शब्दों में व्यक्त करूँ तो - 'जैनदर्शन की एक विशेषता है कि वह किसी एक दृष्टि को एक दृष्टिकोण ही मानता है, सम्पूर्ण सत्य का प्रतिनिधि नहीं। इसीलिये उसके लिये दृष्टि की विभिन्नता अथवा दृष्टि का पारस्परिक विरोध भी कोई समस्या उत्पन्न नहीं करता, प्रत्युत सत्य के वृहत् से वृहत्तर रूप को उजागर करने का माध्यम बनने के कारण अभिनन्दनीय ही सिद्ध होता है। अनेकान्त का यह दृष्टिकोण अन्त में दार्शनिकता को द्रष्ट्ऋत्व में परिणत कर देता है।' प्रोफेसर भार्गव के ये विचार अनेकान्तदर्शन के क्षेत्र में एक दीपस्तम्भ का कार्य करते हैं और समीक्ष्य कृति के हार्द को स्पष्ट करते हैं।
आहती दृष्टि का समग्र रूप में हम इस प्रकार मूल्याङ्कन कर सकते हैं कि इस कृति में संग्रहीत शोध-निबन्धों से प्रत्येक शोधार्थी के साथ ही सामान्य जिज्ञासु भी अनेक प्रकार से समाधान प्राप्त कर सकेंगे। साज-सज्जा नयनाभिराम है।
डॉ० कमलेशकुमार जैन प्रोफेसर एवं पूर्व अध्यक्ष, जैन-बौद्धदर्शन विभाग .
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी व्रात्य दर्शन, लेखिका- डॉ० समणी मंगलप्रज्ञा, प्रकाशक- आदर्श साहित्य संघ, नई दिल्ली, संस्करण-द्वितीय, ई० सन् २००५, पृष्ठ- १८+२४२, आकार-डिमाई, मूल्य४०.०० रुपया।
भारतीय संस्कृति श्रमण व ब्राह्मण संस्कृति का समन्वित रूप है। श्रमण संस्कृति के अन्तर्गत जैन एवं बौद्ध संस्कृति आती है। जैन संस्कृति व्रात्यों की संस्कृति है और व्रात्य का मूल अर्थ व्रती या व्रतों की साधना करने वाला होता है। व्रतों की साधना ही जैन संस्कृति की मुख्य विशेषता है। व्रत से अध्यात्म पक्ष पुष्ट होता है। यही कारण है कि साधक के लिए महाव्रत, समिति एवं गुप्ति की साधना अनिवार्य है।
'व्रात्य' शब्द के अर्थ को लेकर विद्वत्जनों में मतभेद है। श्रीपाद दामोदर सातवलेकर ने अथर्ववेद के सन्दर्भ में 'वात' का अर्थ 'समूह', 'समाज' अथवा संघ बताया है और उनका हित करने वाला व्रात्य है (तेभ्यः हितः व्रात्य)। अमरकोश में व्रात्य संस्कारहीन: अर्थात् संस्कारहीन व्यक्ति को व्रात्य कहा गया है। कुछ विद्वानों का
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