Book Title: Sramana 2008 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 229
________________ २२४ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक २ / अप्रैल-जून २००८ द्वैत और अद्वैत- ये दो विचार हैं, चिन्तन हैं। अद्वैतवादियों ने एक तत्त्व को आधार बनाकर विश्व की व्याख्या प्रस्तुत की है और द्वैतवादियों ने दो तत्त्वों को आधार बनाकर। द्वैतवादियों के अनुसार दृश्यमान चराचर जगत् न केवल जड़ से पैदा हुआ है और न केवल चेतन से। चेतन तथा जड़ की समन्विति का नाम ही जगत् है । चेतन जड़ को पैदा नहीं कर सकता । अचेतन चेतन का उत्पत्तिकारक नहीं (१) । अनैकान्तिक दृष्टिकोण अपनाये बिना यह चिन्तन मानस में आ ही नहीं सकता है। 'आत्मा और पुनर्जन्म' नामक लेख में विदुषी लेखिका ने जिस प्रकार विविध भारतीय दर्शनों के साथ ही पाश्चात्य दार्शनिकों के मत को प्रस्तुत किया है, उससे भारतीय दर्शनों के साथ ही पाश्चात्य दर्शनशास्त्र पर भी उनकी गहरी पकड़ की जानकारी मिलती है। इसी प्रकार 'आत्मा का वजन' और 'आत्मा की देहपरिमितता' आदि लेख भी उनके परिपक्व ज्ञान को उजागर करते हैं। एक सत्यशोधक सम्प्रदायातीत होकर निष्कर्षों को स्थापित करता है और यही कारण है लेखिका ने समान रूप से दिगम्बर और श्वेताम्बर आगमों / ग्रन्थों के सन्दर्भ देकर अपने कथन की पुष्टि की है। जैनदर्शन का अनेकान्त सिद्धान्त युगों-युगों से जनचेतना जाग्रत कर विश्व को एक मंच पर लाने का प्रयास कर रहा है। इस सिद्धान्त की जितनी आवश्यकता पहले थी, उससे कहीं अधिक आज है और भविष्य में भी इसकी उपयोगिता बनी रहेगी। यह सह-अस्तित्व के लिये नितान्त आवश्यक है। क्योंकि सत्य की व्याख्या के लिये प्रत्येक युग में अनेकान्त सिद्धान्त अपरिहार्य अस्त्र है। 'मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना' के इस युग में अनेकान्तदर्शन ही युगीन समस्याओं का समाधान कर सकता है। इस सन्दर्भ में लेखिका के निम्न विचार ध्यातव्य हैं- अनेकान्त सहिष्णुता का दर्शन है। राजनीति का क्षेत्र हो या समाजनीति का, धर्मनीति का हो या शिक्षानीति का, सफलता के लिये अनेकान्तदर्शन को व्यवहार्य बनाना आवश्यक है। जब तक सह-अस्तित्व, सहिष्णुता, सामंजस्य आदि मूल्यों को व्यावहारिक नहीं बनाया जायेगा, तब तक समाधान उपलब्ध नहीं होगा। ये सारे मूल्य अनेकान्त के ही परिकर हैं। मनुष्य अनेकान्त को समझे और इसके अनुरूप आचरण करे तो युगीन समस्याओं का समाधान पा सकता है ( पृ० १३८) । 'समाज व्यवस्था में अनेकान्त' एवं 'अनेकान्त की सर्वव्यापकता' नामक शोध-निबन्धों में भी अनेकान्त के व्यापक महत्त्व को रेखाङ्कित किया गया है। लेखिका ने 'आर्हती दृष्टि' में संग्रहीत शोध - निबन्धों के माध्यम से जहाँ अनेकान्तात्मक दृष्टिकोण के द्वारा परस्पर विपरीत दिखलाई देने वाले दर्शनों में समन्वय स्थापित किया है और अन्य अनेक यक्ष प्रश्नों का भी समाधान प्रस्तुत किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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