Book Title: Sramana 2008 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 231
________________ २२६ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक २/अप्रैल-जून २००८ मानना है कि 'व्रात्य' शब्द की व्युत्पत्ति व्रत से हुई है। व्रतमर्हति इति व्रात्यः अर्थात् जो व्रतचर्या के योग्य हो व्रात्य है। इसी आधार पर व्रतों के पालक या उनके लिए समर्पित व्रतधारी व्यक्ति को व्रात्य कहा गया है। प्रस्तुत पुस्तक 'व्रात्य दर्शन' में व्रात्य के 'व्रतधारी व्यक्ति' या 'आत्मलीन यायावर' अर्थ को केन्द्रित करके विदुषी लेखिका ने अपने विशिष्ट लेखों को विवेचित किया है। इसमें कुल २७ आलेख हैं जिनमें २३ हिन्दी भाषा में तथा ४ आंग्ल भाषा में निबद्ध हैं। सभी आलेख महत्त्वपूर्ण हैं और विषयवस्तु को सूक्ष्मता से विवेचित करते हैं। आलेखों की शैली व्याख्यात्मक, तुलनात्मक एवं विश्लेषणात्मक है। कुछ आलेखों में दिये गये सन्दर्भ उसकी प्रामाणिकता को पुष्ट करते हैं। सभी आलेखों को यहाँ प्रस्तुत करना संभव नहीं है। अतः कुछ आलेखों के नाम हैं- अनेकांत,स्याद्वाद और सप्तभंगी; निक्षेप का उद्भव, विकास और स्वरूप; जैन, बौद्ध एवं वेदान्त दर्शन के अनुसार सत् की अवधारणा; शास्त्रार्थ में जय-पराजय की व्यवस्था के नियम; जैन आगमों की व्याख्या में आचार्य महाप्रज्ञ का योगदान; Embodiment of Peace and Love; Ecological Survival : Global Survival; Contribution of Ācārya Umasvati to the Concept of Existence. आदि। सभी आलेख उच्चस्तरीय एवं विद्वतापूर्ण हैं। पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है। डॉ० सुधा जैन जैन आगम में दर्शन, लेखिका-डॉ० समणी मंगलप्रज्ञा, प्रका०- जैन विश्वभारती, लाडनूं, संस्करण-प्रथम २००५ ई० सन्, पृष्ठ- १८+३३०, आकार-रॉयल, मूल्य१२५.०० रुपये। जैन दर्शन का मूलस्रोत आगम है। भगवान महावीर ने अपनी लम्बी साधना के पश्चात् जिन सूक्ष्म तत्त्वों को आत्मसात किया उन्हीं का प्रतिपादन आगमों में किया गया है। ऐतिहासिक दृष्टि से जैन धर्म का प्राचीनतम रूप हमें आगमों में मिलता है। जैन परम्परा में 'आगम' शब्द की व्याख्या निम्न प्रकार से मिलती है १. व्यवहारभाष्य गाथा ३१८ में कहा गया है- स्वयं आप्त पुरुष ही आगम है। २. आवश्यकचूर्णि के अनुसार अर्थज्ञान जिससे हो वह आगम है। आचार्य तुलसी की भिक्षुन्यायकर्णिका में आप्तवचन को आगम कहा गया है। ३. प्रमाणनयतत्त्वावलोक में कहा गया है आप्तपुरुष की वाणी से जो ज्ञान उत्पन्न होता है वह आगम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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