Book Title: Sramana 2000 01 Author(s): Shivprasad Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi View full book textPage 6
________________ की महती सेवा एवं प्रभावना की है। इन नूतन मन्दिरों की प्राणप्रतिष्ठा करने-कराने की आपकी सुन्दर पद्धति हम सभी को बरबस ही आकर्षित कर रही है। वाराणसी के नवनिर्मित जिन मन्दिर की पञ्चकल्याणक प्रतिष्ठा करने की स्वीकृति देकर आपने अपने घनीभूत वात्सल्य का ही परिचय दिया है। एतदर्थ यहाँ का सम्पूर्ण समाज आपका कृतज्ञ है। आम्नायविषयक संकीर्णता के कटघरों से स्वयं को मुक्त कर सरलता की प्रतिमूर्ति के रूप में आपने अपनी पहचान बनायी है, वचन में संयम, चिन्तन में सापेक्षता और व्यवहार में उदारता आपके प्रभावक गुण हैं। आचार्य के सभी गुणों से आभूषित होकर आपने अनुशासन की बागडोर को जिस मृदुता और प्रवणता के साथ सम्भाला है वह हम सभी के लिए गौरवान्वित होने का विषय है। युग-चेतना की महाप्राणधारा आपके तेजस्वी व्यक्तित्व की प्रकृष्ट साधना है। आपके आगमज्ञान, जप-तप और स्वाध्याय ने आपको जिनशासन के अनुशासित शास्ता के रूप में प्रतिष्ठापित किया है। आपकी स्पृहणीय विद्वत्ता, अप्रमत्त संयम साधना और जागरूक उदारता से जिनधर्म की वास्तविक छवि का आभास होता है। आध्यात्मिक साधना और धर्मचर्चा में निष्णात आपका अलग व्यक्तित्व एक छत्रछाया सा बन गया है। अपनी परिधि में रहते हुए भी आपके चिन्तन का क्षेत्र संकीर्णता की सीमा से हटकर व्यापकता की ओर बढ़ रहा है जो एकल और समत प्रस्थापित करने की दिशा में एक सुन्दर एवं शुभ लक्षण है। हम सभी इसलिए आपका अभिनन्दन कर रहे हैं। जैनधर्म का अनेकान्तवाद आपके आचार और व्यवहार में प्रतिबिम्बित होता है। आपकी समन्वयवादी वृत्ति जैन एवं जैनेतर समाज को समान रूप से प्रभावित कर रही है। जैनधर्म की अहिंसा और अपरिग्रहवृत्ति ने आपके व्यक्तित्व को जिस समन्वयवाद की ओर मोड़ा है वह निश्चित ही सारे समाज में एक नई विचार-क्रान्ति पैदा करेगा और जैनधर्म को शान्ति प्रस्थापक के रूप में प्रतिष्ठित करने में सक्षम होगा। आत्मसाधना के डगर पर बढ़ते हुए आपके चरण दृढ़ संकल्प, आस्था, निष्ठा और करुणा के महासागर में अवगाहन करने के लिए सतत् अग्रसर हो रहे हैं। पञ्चकल्याणक प्रतिष्ठाओं के अध्ययन से आपने पाषाण को भी अर्थवत्ता और प्राणवत्ता प्रदान की है। वाराणसी में आपकी गरिमामय उपस्थिति निश्चित ही सामाजिक और आध्यात्मिक चेतना जागृत करने में एक अहं भूमिका निभायेगी। आपका वैदष्य, स्नेहिलता, चिन्तनशीलता और कल्याणवृत्ति व्यक्ति और समष्टि को सही दिशा में मोड़ने के लिए एक अद्भुत प्रेरणा-स्रोत का काम करेगी। इस आशय से ही हम आपके शुभ चिन्तन का अभिनन्दन कर रहे हैं। आपकी सामाजिकता, सहृदयता, धर्मप्रवणता और निष्पक्ष विचारशीलता हमारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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