Book Title: Sramana 1998 04
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 15
________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org लेख धर्म करते पाप तो होता ही है ! स्याद्वाद की सर्वप्रियता गांधी जी की दृष्टि में अहिंसा का अर्थ मैं स्वयं मंजिल अभी दूर है क्या यही शिक्षा है। अपरिग्रहवाद (क्रमश:) स्वप्न : एक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण पितृ हत्या का पुण्य महावीर की जन्मभूमि भगवान् असंयत जीव का जीना चाहना राग अपरिग्रहवाद (क्रमश:) पितृ हत्या का पुण्य जीवन-निर्माण भारतीय चिकित्सा शास्त्र बंधन से अलंकार आलोचक श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री प्रवाही श्री चन्द्रशंकर शुक्ल नरेन्द्र गुप्त श्री जय भिक्खु मुनि सुरेशचन्द्र शास्त्री राजाराम जैन श्री रघुवीरशरण दिवाकर श्री मोहनलाल मेहता जय भिक्खु भगवानदास केसरी प्रो० दलसुख मालवणिया श्री रघुवीरशरण दिवाकर श्री जय भिक्खु स्वामी समन्तभद्र जी अत्रिदेव विद्यालंकार सुश्री मोहनी शर्मा श्री विजयमुनि वर्ष ४ ४ ४ ४ ४ ४ ४ ४ ४ ४ ४ ४ ४ ४ ४ ४ अंक १२ १ १ m ४ ܡ ४ ई० सन् १९५२ १९५२ १९५२ १९५२ १९५२ १९५२ १९५२ १९५२ १९५२ १९५२ १९५३ १९५३ १९५३ १९५३ १९९३ १९५३ १९५३ ११ पृष्ठ ३५-३७ ३-८ ११-१२ १३-२१ २४-२६ ३०-३२ ३-८ ११-१५ १६-२३ २८-३५ ३-६ ८-१२ १३-२१ २२-२६ २९-३४ ३-५ ६-७

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