Book Title: Siddhi Sopan
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ नाकाबाजागाजाकाटकामाला - - - S EL (७) AJNAJA.. POEEDEDDEDESEGISTERED EE विकसित आत्मस्वरूपका भजन और कीर्वन ही हम संसारी जीवों के लिये अपने आत्माका अनुभवन और मनन है, हम ' सोऽहं ' की भावना द्वारा उसे अपने जीवन में उतार सकते हैं और ॥ उन्हीके- अथवा परमात्मस्वरूपके-भादर्शको o सामने रखकर अपने चरित्रका गठन करते हुए अपने आत्मीय गुणों का विकास सिद्ध करके तद्रूप हो सकते हैं। इस सब अनुष्टानमें उनकी कुछ भी गरज । n नहीं होती और न इसपर उनकी कोई प्रसन्नता ही निर्भर है-यह सव साधना अपने ही उत्थानके लिये की जाती है। इसीसे सिद्धिक साधना में भक्ति-योग' को एक मुख्य स्थान जिसे भक्ति-मार्ग' भी कहते है। सिद्धिको प्राप्त हुए शुद्वात्माओंकी भक्तिद्वारा आत्मोत्कर्ष साधनेका नाम ही भक्ति-योग अथवा 'भक्ति-मार्ग' है और भक्ति ' उनके RECENSEEEEEEको

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49