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नाकाबाजागाजाकाटकामाला
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विकसित आत्मस्वरूपका भजन और कीर्वन ही हम संसारी जीवों के लिये अपने आत्माका अनुभवन और मनन है, हम ' सोऽहं ' की भावना
द्वारा उसे अपने जीवन में उतार सकते हैं और ॥ उन्हीके- अथवा परमात्मस्वरूपके-भादर्शको o सामने रखकर अपने चरित्रका गठन करते हुए अपने
आत्मीय गुणों का विकास सिद्ध करके तद्रूप हो
सकते हैं। इस सब अनुष्टानमें उनकी कुछ भी गरज । n नहीं होती और न इसपर उनकी कोई प्रसन्नता
ही निर्भर है-यह सव साधना अपने ही उत्थानके लिये की जाती है। इसीसे सिद्धिक साधना में
भक्ति-योग' को एक मुख्य स्थान जिसे भक्ति-मार्ग' भी कहते है।
सिद्धिको प्राप्त हुए शुद्वात्माओंकी भक्तिद्वारा आत्मोत्कर्ष साधनेका नाम ही भक्ति-योग अथवा 'भक्ति-मार्ग' है और भक्ति ' उनके
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