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wwwmarrrrrrrrrrrrrommanim दृढ श्रद्धा चाहिये। विना अनुरागके किसी भी . गुणकी प्राप्ति नहीं होती-अननुरागी अथवा अभक्त! हृदय गुणग्रहणका पात्र ही नहीं, विना परिचयके अनुराग बढ़ाया नहीं जा सकता और विना। विकास-मार्गको दृढ श्रद्धाके गुणोंके विकासकी
ओर यथेष्ट प्रवृत्ति ही नहीं बन सकती। और इस लिये अपना हित एवं विकास चाहनेवालोंको उन । पूज्य महापुरुषों अथवा सिद्धात्माओंकी शरणमें जाना चाहिये - उनकी उपासना करनी चाहिये, उनके गुणों में अनुराग बढ़ाना चाहिये और उन्हें अपना मार्ग-प्रदर्शक मानकर उनके नकशे कदमपर
चलना चाहिये अथवा उनकी शिक्षाओंपर र अमल करना चाहिये, जिनमें आत्माके गुणोंका। i अधिकाधिक रूपमें अथवा पूर्णरूपसे विकास ॥ हुआ हो; यही उनके लिये कल्याणका सुगम
मार्ग है। वास्तवमें ऐसे महान् आत्माओंके 10 දුකකූතිඝබුකූලඝe=7
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