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विकल्पजनित व्यग्रता को दूर करके उसे ध्यान तथा गुणचिन्तनादिद्वारा उपास्यमें लीन करते थे, यही उनकी भाव- पूजा. ' थी । प्राचीनोंकी द्रव्यपूजा आदिके, इसी भावको अमितगति आचार्यने अपने उपासकाचारके निम्न वाक्यमें सूचित किया है: ---
वचो विग्रह-संकोचो द्रव्यंपूजा निगद्यते । तत्र मानस- संकोचो भावपूजा पुरातनैः ॥ सिद्धभक्ति और प्रस्तुत रचना भक्तियों में ' सिद्धभक्ति' को विशेष स्थान
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प्राप्त है - प्रायः सभी नित्य नैमित्तिक धार्मिक आदिमें उसके अनुष्ठानका विधान
क्रियाओंकी
पाया जाता है । इस 'सिद्ध-भक्ति' के जितने भी पाठ उपलब्ध हैं, उनमें पूज्यपाद आचाका पाठ सबसे अधिक महत्त्वका मालूम
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