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तत्तपोभिर्न युक्तः ' शब्दोंके अर्थका टीकानुसार विशदीकरण है; पाँचवाँ पद्य 'इतो नान्यथा साध्यसिद्धिः' इस वाक्यके विषयका अर्थसहित स्पष्टीकरण है और पद्य नं. 0 ९, १५, १७, के उत्तरार्ध जो मूलसे बढ़े हुए मालूम होते हैं उनमेंसे प्रथम दो उत्तराधोंमें समन्तभद्रादिके ‘परमेष्ठी परंज्योतिः । इत्यादि वचनानुसार मुक्तात्माओंके कुछ खास नामोंका उल्लेख करके उनके स्वरूपको स्पष्ट (0) किया गया है और १७ वैके उत्तरार्धमें दृष्टान्तोंके साथ सांसारिक विपय-सौख्यकी तुलना M करके बतलाई गई है और उसका पूरा स्वरूप 0 एक ही चरणमें दिया गया है, जो कि श्रीकुन्द-10 कुन्दाचार्यके 'सपरं वाधासहियं विच्छिन्नं बंधकारणं विसम' इत्यादि गाथाके पूर्ण
आशयको लिये हुए है । इसी तरह बढ़े हुए १९वें। Re@@RECORDPRESS
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