Book Title: Siddhi Sopan
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ ( ३३ ) वीतराग- अर्हत्-परमेष्ठी - आप्त- सार्व' - जिन कहलाता, परंज्योति सर्वज्ञ - कृती' - प्रभु - जीवन्मुक्त नाम पाता ॥ (१०) शेष निगड - समै अन्य प्रकृतियाँ फिर छेदता हुआ सारी, आयु- वेदनी - नाम - गोत्र हैं मूल प्रकृतियाँ जो भारी । उन अनन्तरम् - बोध - वीर्य-सुखसहित शेष क्षायिकगुणसे wwwwww ......VVV Supers १ सबके लिये हितरूप । . २ कृतार्थ, पवित्र संपूर्ण हेयोपादेयके विवेकसे युक्त । ३ बेड़ियोंकी तरह बन्धनरूप । ४ इन चार अघातिकमोंकी उत्तर प्रकृतियाँ क्रमशः ४, २,९३, २ ऐसे १०१ हैं ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49