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वीतराग- अर्हत्-परमेष्ठी - आप्त- सार्व' - जिन कहलाता, परंज्योति सर्वज्ञ - कृती' - प्रभु - जीवन्मुक्त नाम पाता ॥ (१०)
शेष निगड - समै अन्य प्रकृतियाँ फिर छेदता हुआ सारी, आयु- वेदनी - नाम - गोत्र हैं मूल प्रकृतियाँ जो भारी । उन अनन्तरम् - बोध - वीर्य-सुखसहित शेष क्षायिकगुणसे
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१ सबके लिये हितरूप । . २ कृतार्थ, पवित्र संपूर्ण हेयोपादेयके विवेकसे युक्त । ३ बेड़ियोंकी तरह बन्धनरूप । ४ इन चार अघातिकमोंकी उत्तर प्रकृतियाँ क्रमशः ४, २,९३, २ ऐसे १०१ हैं ।