Book Title: Siddhi Sopan Author(s): Jugalkishor Mukhtar Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya View full book textPage 9
________________ काठके एक सिरेमें अग्निके लगनेसे वह सारा ही काष्ठ भस्म हो जाता है। इधर संचित कोंके नाशसे अथवा उनकी शक्तिके शमनसे गुणावरोधक कर्मोकी निर्जरा होती या उनका बल-क्षय होता है तो उधर उन अभिलपित गुणोंका उदय होता है, जिससे आत्माका विकास in सधता है। इसीसे स्वामी समन्तभद्र जैसे महान् आचायौंने परमात्माकी स्तुतिरूपमें इस भक्तिo को कुशल परिणामकी हेतु बतलाकर इसके द्वारा M श्रेयोमार्गको सुलभ और स्वाधीन बतलाया है 0 और अपने तेजस्वी तथा सुकृती आदि होनेका D कारण भी इसीको निर्दिष्ट किया है और इसी लिये स्तुति वंदनादिके रूपमें यह भक्ति अनेक नैमित्तिक क्रियाओंमें ही नहीं, किन्तु नित्यकी " पट आवश्यक क्रियाओम भी शामिल की गई है, जो कि सब आध्यात्मिक क्रियाएँ हैं और " ५ अन्तर्दृष्टि पुरुपों (मुनियों तथा श्रावकों) के फू ए द्वारा आरमगुणोंके विकासको लक्ष्यमें रखकर poeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeePage Navigation
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