Book Title: Siddhi Sopan Author(s): Jugalkishor Mukhtar Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya View full book textPage 5
________________ REC ERESE जिसकी दो अवस्थाएँ है-एक जीवन्मुक्त और दुसरी विदेहमुक्त। इस प्रकार पर्यायरष्टिसे जीवोंके 'संसारी ' और 'सिन्द' ऐसे मुख्य ial दो मेदं कहे जाते हैं, अथवा अविकसित, अल्प विकसित, यहुविकसित और पूर्ण-विकसित ऐसे ID चार भागों में भी उन्हें बाँटा जा सकता है। । और इसलिये जो अधिकाधिक विकसित हैं वे CH स्वरूपसे ही उनके पूज्य एवं आराध्य है, जो ial अविकसित या अल्पविकसित हैं। क्योंकि आत्म10 गुणोंका विकास सबके लिये इष्ट है। ऐसी स्थिति होते हुए यह स्पष्ट है कि संसारी जीवोंका हित इसीमें, है कि वे अपनी विभाव-परिणतिको छोड़कर स्वभावमें स्थिर होने अर्थात् सिद्धिको प्राप्त करनेका यत्न करें। ॥ इसके लिये भात्म-गुणोंका परिचय चाहिये,गुणों में 10 वर्द्धमान अनुराग चाहिये और विकास-मार्गकी DESEEDSSSSSSSSSSSESEL FREENSTENES SPage Navigation
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