Book Title: Siddhi Sopan
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ හිසකකකකකකකකකm प्रस्तावना भक्तियोग-रहस्य जैनधर्मके अनुसार, सब जीव द्रव्यदृष्टिसे अथवा शुद्धनिश्चयनयकी अपेक्षा परस्पर समान है कोई भेद नहीं-सवका वास्तविक गुण-स्वभाव एक ही है। प्रत्येक जीव स्वभावसे ही अनन्त दर्शन, अनंत ज्ञान, अनंत सुख और अनन्त वीर्यादि अनन्त शक्तियोंका आधार हैहै। परन्तु अनादिकालसे जीवोंके साथ कर्ममल लगा हुआ है, जिसकी मूल प्रकृतियाँ आठ, । उत्तर प्रकृतियाँ एकसौ अड़तालीस और उत्तरोत्तर प्रकृतियाँ असंख्य हैं । इस कर्म-मलके कारण जीवोंका असली स्वभाव आच्छादित है, उनकी वे शक्तियाँ अविकसित हैं और वे परतंत्र हुए नाना 0 प्रकारकी पर्यायें धारण करते हुए नज़र आते हैं। සීඝ්‍රකළකෙකේඝකූඤ්ඤොක්කුඝඝක

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 49