Book Title: Shubhshil shatak
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 4
________________ प्रकाशकीय नैतिक व अन्य सिद्धान्तों और जीवन मूल्यों को सहज व सुबोध रूप से प्रस्तुत करने और जीवन में प्रभावी रूप से पालन करवाने के लिए रुचिकर कहानियों का सहारा लेने की परम्परा सदैव ही रही है। महाभारत कथाओं से भरी पड़ी है। विभिन्न प्रकार की रामायणों में भी इसी प्रकार की कथाएँ हैं। बौद्ध धर्म की जातक कथाएँ भी उतनी ही रुचिकर और प्रेरक हैं। पंचतंत्र व हितोपदेश के फारसी व अन्य भाषाओं में अनुवाद हुए हैं और इन सभी भाषाओं के पाठक इन शिक्षाप्रद कथाओं से बहुत प्रभावित हैं। विश्वभर में जन सामान्य को इस कथा साहित्य ने दुरूह व कष्टसाध्य प्रयासों के बिना ही सहज रूप से स्वतः ही शिक्षित किया है। सार यह है कि कथा आध्यात्मिक अनुभूति, दार्शनिक सिद्धान्तों व नैतिक मूल्यों के संप्रेषण का सशक्त माध्यम है। प्राकृत भारती अकादमी के प्रकाशनों की एक धारा कथाओं की है, कई कथाओं के अनुवाद पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किये गये हैं। इसी क्रम में शुभशील गणि कृत पंचशती कथा प्रबन्ध पुस्तक (विक्रम संवत् १५२१ में रचित) की ६२४ कथाओं में से पहली १०० कथाओं का संस्कृत से हिन्दी में भावानुवाद पाठकों को समर्पित है। शुभशील शतक का भावानुवाद महोपाध्याय विनयसागर ने मूल संस्कृत के आधार पर हिन्दी में अपनी विशिष्ट शैली में बडे मनोयोग से किया है। उनके अनुसार इन कथाओं में से कुछ विशेष कहानियाँ मानवीय मूल्यों को अत्यन्त रोचक व प्रेरक रूप से प्रस्तुत करने वाली हैं। इस पुस्तक के ५ खण्ड और प्रकाशित होंगे। महोपाध्याय विनयसागरजी मानद निदेशक के प्रति व्यक्तिगत रूप से व संस्था की ओर से आभार व्यक्त करते हुए आशा करता हूँ कि आपकी पूर्व प्रकाशित पुस्तकों की भाँति इसे भी पाठक सराहेंगे। देवेन्द्रराज मेहता संस्थापक एवं मुख्य संरक्षक प्राकृत भारती अकादमी जयपुर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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