Book Title: Shrutsagar Ank 2013 10 033 Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'भक्तामर स्तोत्र' की दो सचित्र पोथियाँ श्रीमती ममता गोदारा (चौधरी) हमारी धार्मिक सचित्र पोथियाँ हमें कलात्मक रूप से आनन्दानुभूति करवाते हुए धार्मिक आस्था तो जागृत करती है। साथ ही हमें अपने पूर्वजों के सांस्कृतिक, सामाजिक एवं बौद्धिक विकास की झलक भी दिखाती है। जैन धर्म की अनेक चित्रपोथियाँ ११०० ई. स. से १८०० ई. के मध्य में विशेष रूप से लिखी गई है। इस प्रकार की पोथियों से भविष्य में कला एवं शैली की एक आधारशिला स्वरूप इस कलाधारा का ऐतिहासिक महत्त्व है। कला एवं भक्ति के संगम स्वरुप है। भक्तामर स्तोत्र की सचित्र पोथीयाँ। जिसके भक्ति भाव से ओत-प्रोत शब्दों व चित्रों में वो प्रभाव है जो नास्तिक व्यक्ति के हृदय में भी आस्था के फुल खील जाते है। दिगंबर परंपरा के अनुसार 'भक्तामर स्तोत्र' का असली नाम 'आदिनाथ स्तोत्र' है। इसमें प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ की भाव पूर्ण स्तुति की गई है। इसके प्रारम्भ में 'भक्तामर' शब्द का प्रयोग होने से इस स्तोत्र का नाम 'भक्तामर स्तोत्र' के रूपमें प्रसिद्ध हुआ । इस स्तोत्र की प्रसिद्धी इतनी है कि प्रमुख ज्ञानभण्डारों एवं ग्रंथागारो में दस से लेकर पचास से भी अधिक प्रतियाँ प्राप्त होती हैं । इसकी स्वर्णाक्षरी एवं सचित्र प्रतियाँ तथा काव्य मंत्र-यंत्र गर्भित प्रतियाँ भी प्राप्त होती हैं। इनमें सचित्र प्रतियाँ तो विशेष रूप से उल्लेखनीय है । कुछ सचित्र प्रतियों का परिचय प्रस्तुत है । जयपुर के श्री दिगम्बर जैन तेरह पंथी बड़ा मन्दिर में संग्रहित 'भक्तामर स्तोत्र' की एक सचित्र पोथी परिचय : जयपुर के तेरहपंथी बड़े मंदिर में 'भक्तामर स्तोत्र' की एक सचित्र पोथी है। जिसमें चित्रकारों ने स्तोत्र के भाव को चित्र के रूप में उपरोक्त पोथी में व्यक्त किया है। प्रत्येक चित्र में एक-एक पद्य भाग को प्रदर्शित किया गया है इन चित्रों में भक्ति के विभिन्न पहलुओं का सुन्दर उभार प्रदर्शित किया है। इस पोथी में १५६ पत्र हैं। यह प्रति श्री हेमराज हेतु पं. रायमल्ल द्वारा संवत् १६६७ में लिखी गई थी। स्तोत्र का लेखन काल संवत् १६६७ (ई. सन् १६१० ) ई. और चित्रालेखन संवत् १८३० (ई. १७७३) में बनाए गए है। इस तरह से इसके For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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