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श्रुतसागर • ३३ गया है। अश्व, हस्ति एवं सिंह की बलिष्ठ ग्रीवा व गतियुक्त, शरीराकृतियों के अंकन में सूक्ष्मता एवं उत्तम चित्रकला का वैशिष्ट्य प्रदर्शित कीया है। पिओं पर शैली प्रभाव
भक्तामर स्तोत्र की प्रस्तुत सचित्र पोथी ऐसी है जिसमें मूलरुप से मुगल चित्र शैली का प्रभाव है। इन चित्रों में मुगल कलम जैसी सुकुमारता, सम्मोहकता व सुरूचिता प्रकट होती है। पृष्ठभूमि में धुंधले रंगो का प्रयोग व चित्रों में विषयागत आकृतियों का अंकन है। सौंदर्य की दृष्टि से किसी प्रकार का अंकन नहीं किया गया है इन चित्रों में स्त्री आकृति का पूर्णतः अभाव है। इस प्रति के चित्रों में मुगल कलम की सी कोमलता व यर्थातता के साथ-साथ फारसी चित्र शैली के विभिन्न तत्त्वों की झलक भी देखने को मिलती है जो मुगल शैली में समाहित हो गये थे। यह प्रति इस शैली की अन्य सचित्र पोथियों से यह श्रेष्ठ है।
संदर्भ १. भक्तामर स्तोत्र महामण्डल पूजा विधान, हीरालाल जैन, दिल्ली, १९९९, पृ.४ २. 'भक्तामर स्तोत्र' - एक दिव्य दृष्टि, साध्वीजी श्री दिव्यप्रमा, जयपुर, १९९२, पृ.८ ३. भक्तामर स्तोत्र, रायमल, जयपुर, २००५, पृ. ७ ४. भक्तामर स्तोत्र की सचित्र प्रतियाँ, श्री अगरचंदजी नाहटा श्रमण पत्रिका,
फरवरी १९७१, वारणसी. पृ. १६ । ५. यशोधरचरित : सचित्र पाण्डुलिपियाँ, कमला गर्ग, दिल्ली, १९९१, पृ. ८३
अनुसंधान पेज नं. १६नुं कोबातीर्थना धातु प्रतिमा लेखोनी संकेतसूचि भा. = भार्या
सु. = सुदि, सुत व्य. = व्यवहारी
सो. = सोनी प्र., प्रति. = प्रतिष्ठितं
म. = भष्टारक दो. = दोशी
पं. - पंडित सं. = संघवी, संघवण?
ऊ. = ऊपकेशगच्छे सि. = सिद्धाचार्य?
ज्ञा. = ज्ञातीय
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