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श्रुतसागर - ३३
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पंन्यास श्री हेमचंद्रसागरजी म.सा., गणिवर्य श्री प्रशांतसागरजी म. सा., मुनि श्री विमलसागरजी म.सा. आदि मुनि भगवन्त एवं आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरि समुदाय की पूज्य साध्वी श्री पुण्यप्रभाश्रीजी म. सा. आदि अनेक साध्वीजी भगवन्त उपस्थित थे.
जिनभक्ति - गुरुभक्ति - श्रुतभक्ति के त्रिवेणी महोत्सव में गुरुभक्ति एवं श्रुतभक्ति का अपूर्व आनन्द प्राप्त करते हुए आम्बावाडी जैनसंघ, अहमदाबाद एवं श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा ने राष्ट्रसंत आचार्य भगवन्त के जन्मोत्सव पर अनुपम उपहार स्वरूप पूज्यश्रीजी की प्रेरणा व मार्गदर्शन में स्थापित सुप्रसिद्ध जैन ज्ञानभंडार आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा के प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों के कैलासश्रुतसागर ग्रंथसूची भाग-१६, आचार्य श्री भद्रगुप्तसूरिजी लिखित छः बहुजनोपयोगी पुस्तकों कथादीप, नैन बहे दिन रैन, सबसे ऊँची प्रेमसगाई, जैनधर्म, वार्ताना घाटे, सुलसा एवं आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर का मुखपत्र श्रुतसागर अंक ३२ का विमोचन कराया.
पंन्यासप्रवर श्री हेमचंद्रसागरजी महाराज साहब, गणिवर्य श्री प्रशांतसागरजी महाराज साहब, मुनिवर्य श्री पुनितपद्मसागरजी महाराज साहब, मुनिवर्य श्री भुवनपद्मसागरजी महाराज साहब आदि ने पूज्य आचार्य भगवन्त के गुणों की अनुमोदना करते हुए उनके दीर्घायु की कामना की.
मुनिवर्य श्री विमलसागरजी महाराज ने पूज्य राष्ट्रसन्त के सम्बन्ध में कहा कि इतना तो सच है कि पूज्यश्री का संसारी जीवन भी अनेक उपलब्धियों से भरा हुआ रहा है और इसी कारण उन्हें प्रेमचन्द के बदले लब्धिचन्द के नाम से पुकारा जाता था.
संयमजीवन में भी इन्होंने ऐसे-ऐसे कार्य कर दिखाए हैं कि इनका नाम जैन परंपरा के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा. भारत भर में ही नहीं बलिक विदेशों में भी पूज्यश्री ने जिन मन्दिर निर्माण की प्रेरणा दी है और वहाँ प्रतिमाजी की अंजनशलाका करके स्थापित करने हेतु भिजवाई है.
नेपाल की राजधानी काठमंडु में तो स्वयं पहुँचकर भव्य जिनालय की स्थापना कराकर अंजनशलाका प्रतिष्ठा करवाई. गांधीनगर के बोरिज में विश्वमैत्री धाम की स्थापना कराकर समाज को अनुपम भेंट दी है.
पूज्य आचार्य भगवन्त ने अपने आशीर्वचन में कहा कि भगवान महावीर द्वारा
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