Book Title: Shrutsagar Ank 2013 05 028
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३ श्रुतसागर • २८ लोगों को मूर्तिपूजा नहीं करने हेतु प्रेरित करते। प्रतिदिन की भाँति एक दिन काशीरामजी एक पुस्तक अपने घर ले आए। संयोगवश उस दिन मुनिश्री के ध्यान में यह नहीं रहा कि काशीराम कौनसी पुस्तक ले जा रहा है। वह पुस्तक मूर्तिपूजा के सन्दर्भ में थी। पुस्तक में जगह-जगह शास्त्रों व आगमों के अवतरण देकर मूर्तिपूजा शास्त्र सम्मत है, यह सिद्ध किया गया था। इतना ही नहीं, स्थानकवासी सम्प्रदाय की मान्यता वाले ग्रन्थों से भी कई उदाहरण देकर यह प्रमाणित किया गया था कि मूर्तिपूजा करनी चाहिए। मूर्तिपूजा को प्रमाणित करती इस पुस्तक को काशीराम ने तीन दिन तक अपने पास रखी और सात बार पदा । तीसरे दिन मुनिश्री ने काशीराम से पूछा- क्या इन दिनों तुम्हें पुस्तक पढ़ने का समय नहीं मिलता है? किसी भी पुस्तक को एक दिन में पढ़कर लौटा देने वाला व्यक्ति जब तीन-तीन दिन तक एक पुस्तक को अपने पास रखेगा तो किसी को भी आश्चर्य होना स्वभाविक ही है। ___ उस पुस्तक को पढ़ने के बाद काशीरामजी को जब यह पता चला कि मूर्तिपूजा शास्त्रसम्मत है तो वे चौंक उठे, उन्हें आश्चर्य हुआ कि इन सभी बातों को जानते हुए भी मुनिश्री मूर्तिपूजा का विरोध क्यों करते हैं? इस सम्बन्ध में उन्होंने मुनिश्री से पूछा तो मुनिश्री ने पहले तो कुछ तर्क देकर शान्त करने का प्रयास किया किन्तु काशीराम के प्रश्नों एवं तर्कों के सामने मुनिश्री निरुत्तर हो गये। आखिर उन्हें यह लगा कि पढ़े-लिखे युवक से वास्तविकता छिपाना सम्भव नहीं होगा, तब काशीरामजी से कहा- हाँ! मूर्तिपूजा शास्त्रसम्मत ही है। मुनिश्री की बात सुनते ही काशीराम को गहरा आघात लगा और फिर मुनिश्री से दूसरा प्रश्न किया- तो फिर आप मूर्तिपूजा का खंडन क्यों करते हैं? सत्य को क्यों स्वीकार नहीं करते हैं? तब मुनिश्री ने अपनी अवस्था एवं सम्प्रदाय का हवाला देते हुए अपनी असमर्थता दर्शाई। उन्होंने कहा कि मैं अब अपना अंतिम समय शान्तिपूर्वक जीना चाहता हूँ इसलिए अब इन विवादों में पड़ना नहीं चाहता। मुनिश्री की बात सुनकर काशीराम को अपनी अज्ञानता का आभास हुआ और बहुत देर तक इस सम्बन्ध में मुनिश्री से चर्चा करते रहे । अन्ततः मुनिश्री को इस बात के लिये राजी कर लिया कि अब से आप मूर्तिपूजा का विरोध नहीं करेंगे। मूर्तिपूजा के सम्बन्ध में सत्य जानने के बाद काशीरामजी के मन में उस पुस्तक के लेखक से प्रत्यक्ष मिलकर अपनी जिज्ञासा शान्त करने की इच्छा जाग्रत हुई। मूर्तिपूजा सम्बन्धी उस पुस्तक के लेखक थे योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब, जिन्होंने जैन तत्त्वज्ञान, आत्मज्ञान, दर्शन आदि विभिन्न विषयों For Private and Personal Use Only

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