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मई . २०१३ व्यतीत करते हुए किसी ने नहीं देखा।
अपने संयम जीवन के ४७ वर्षों में आपने गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, बिहार, बंगाल आदि विभिन्न प्रान्तों में विचरण कर मानव के अन्धकारमय जीवन को आलोकित करने का अनुपम कार्य किया। आपके पावन उपदेशों एवं उज्ज्वल जीवन से प्रभावित होकर कई महान आत्माओं ने संयम ग्रहण किया। आपका विशाल शिष्य-प्रशिष्य परिवार आज जिनशासन के उन्नयन में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहा है। शासन के महान प्रभावक के रूप में आप सदियों तक भुलाए नहीं जा सकेंगे। आपश्री के करकमलों से हुई शासनप्रभावना की सूची बहुत लम्बी है। अनेक अंजनशलाकाएँ, जिनमन्दिर प्रतिष्ठा, जिनमन्दिरों का जिर्णोद्धार, उपधानतप की आराधनाएँ आदि करवाकर आपने आजीवन जिनशासन की सेवा की है। किन्तु आपकी सच्ची पहचान आपका विरल व्यक्तित्व ही रहा है। आपके सान्निध्य में जो भी आया वह आपका ही होकर रह गया। आपका अंतरमन जितना निर्मल और करुणामय था उतना ही आपका बाहरी व्यवहार भी।
विक्रम संवत् २०४१ ज्येष्ठ शुक्लपक्ष २ के दिन प्रातःकाल का प्रतिक्रमण पूर्णकर प्रतिलेखन करने के लिये आपने कायोत्सर्ग किया। बस, वह कायोत्सर्ग पूर्ण हो उससे पहले ही आपकी जीवनयात्रा पूर्ण हो गई। सब देखते ही रह गये
और आपने सबके बीच से अनन्त बिदाई ले ली। पूज्यश्री का अन्तिम संस्कार श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा में किया गया। उनके अग्निसंस्कार स्थल पर श्वेत संगमरमर के पत्थर से निर्मित गुरुमन्दिर का निर्माण कराया गया है। उनके अन्तिम संस्कार के समय प्रतिवर्ष श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा के महावीरालय में प्रतिष्ठित श्री महावीरस्वामी भगवान के ललाट को सूर्य किरणें आलोकित करती हैं। यह अलौकिक दृश्य देखने के लिये प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु जमा होते हैं।
कई सदियों के बाद ऐसे विरल विभूति, विराट व्यक्तित्व, समर्थ शासन उन्नायक का पृथ्वी पर अवतरण होता है जो स्वयं के आत्मकल्याण के साथ-साथ दूसरों को भी प्रेरित करता है। अपूर्व पुण्यनिधि, शासन प्रभावक, महान गच्छाधिपति पूज्य आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. को उनके जन्मशताब्दी वर्ष में हम अपनी श्रद्धासुमन अर्पित करें एवं उनके चरणकमलों में भावपूर्ण कोटिशः वन्दना-नमन करें।
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