Book Title: Shrutsagar Ank 2013 05 028
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९ श्रुतसागर - २८ पडता परन्तु साथ-साथ उसके सलखणपुर आदि १२ गाँवों में अमारि उद्घोषण कराने की घटना भी विशेष परिपुष्ट होती है। कोचरसाह को रासकार ने प्राग्वाट ज्ञातीय लिखा है।* प्रमाणाभाव से यह नहीं कह सकते कि यह कहाँ तक ठीक है फिर भी रासकार ने उसे तपागच्छीय श्रावक लिखा है यह अवश्य विचारणीय है। खरतरगच्छ की पट्टावली से कोचरसाह के खरतरगच्छाचार्यों के प्रति बहुमानभक्ति, स्पष्ट ज्ञात होती है। तभी तो सलखणपुर में श्री जिनोदयसूरिजी के पधारने पर कोचरसाह ने समारोह पूर्वक प्रवेशोत्सव कराया था। उस समय की परिस्थिति देखते अपने अपने गच्छ का राग उस समय भी विशेष रूप से ही ज्ञात होता है। (जैन सत्यप्रकाश में से साभार) "कोचर व्यवहारीना पुत्र कीकन अने तेमना परिवारे भरावेल शंखलपुरमां बिराजमान सिंधुक पार्श्वनाथ भगवाननो आ लेख छे. आ लेखमां कोचरव्यवहारीने प्राग्वाटज्ञातीय जणाव्या छे, आ लेख सामग्री पू. आ. भ. श्री सोमचंद्रसूरीश्वरजी म.सा.ना संग्रहमांथी मळी छे. शंखलपुर बिराजमान सिंधुक पार्श्वनाथ भगवाननो लेख संवत् १७७३ वर्षे चैत्र सुदि १५ दिने प्राग्वाटज्ञातिप्रदीपकस्य साह वदा पुत्रस्य प्रतिष्ठा-तीर्थयात्रा प्रमुखपुण्यकार्यकारकस्य सलक्षणपुरत्रवर्तितामारिघोषकस्य सं. कोचरस्य तनयेन सा. कीकनसहितेन सा. नागसिंह सुश्रावकेन श्रीसिंधुकपार्श्वनाथ-बिंब कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छनायकः श्रीजिनराजसूरिपट्टनायकः श्रीजिनवर्धनसूरिभिः (४ नं. २१ नुं अनुसंधान) સંદર્ભસૂચિ ૧. જૈન તીર્થોનો ઇતિહાસ : મુનિરાજશ્રી ન્યાયવિજયજી (ત્રિપુટી) શ્રી ચારિત્ર સ્મારક ગ્રંથમાળા, અમદાવાદ, ઈ. સ. ૧૯૪૯ ૨. રાજસ્થાનના જૈન તીર્થો : વિમલકુમાર મોહનલાલ ધામી, નવયુગ પુસ્તક मंडा२, २०४ोट, 8.स. २००८ ३. प्राचीन तीर्थ श्री कापरडाजी का सचित्र इतिहास : मुनिश्री ज्ञानसुन्दरजी महाराज, वि. सं. १९८८ ४. श्री कापरडाजी तीर्थ : पंन्यास श्रीललितविजयजी, वि. सं. १९७७ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36