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श्रुतसागर - २८ दूसरा मार्ग-फल। एक उपाय है तो दूसरा उपेय है। अर्थात् गन्तव्य (मोक्ष) वह प्रयोजन है जिस तक केवल मार्ग (धर्म) द्वारा ही पहुंचा जा सकता है।
अस्तु पुरुषार्थ भारतीय व्यक्तित्व एवं समाज निर्माण का आधार ही नहीं अपितु यह हमारी संकृति की आत्मा है। जिसमें निहित अन्तर्भाव को समझकर इसकी अनुपालना करने से धरती पर ही स्वर्ग की प्राप्ति संभव है।
संदर्भ
१. आयारो-विश्वभारती लाडनूं से प्रकाशित, पृष्ठ-८८, गाथा-२/९५ २. ज्ञानार्णव. ३/४, शुभचन्द्रकृत, परमश्रुत प्रभावकमण्डल अगास ३. समणसुत्तं, सर्व सेवा संघ प्रकाशन-वाराणसी, गाथा-१२९ ४. परमात्मप्रकाश-योगिन्दुदेवकृत, परमश्रुत प्रभावक मण्डल-अगास, गाथा-२/३ ५. अन्योन्या प्रतिबंधेन त्रिवर्गमिति साधयेत्। -योगशास्त्र, १/५२ ६. रत्नकरण्ड श्रावकाचार-वाराणसी से प्रकाशित गाथा-१/२ ७. आयारो-विश्वभारती लाडनूं से प्रकाशित, पृष्ठ-२३८. उद्देस-६, गाथा-२.४८
संदर्भ ग्रन्थ
१. प्राचीन भारत का सामाजिक इतिहास- जयशंकर मिश्र, अर्जुन पब्लिशिंग
हाउस - दिल्ली २. तत्वार्थसूत्र- वाचक उमास्वातिकृत, जैन साहित्य प्रकाशन - अहमदाबाद ३. ज्ञानार्णव- शुभचन्द्रकृत, परमश्रुत प्रभावकमण्डल - अगास ४. परमात्मप्रकाश- योगिन्दुदेवकृत, परमश्रुत प्रभावक मण्डल - अगास ५. योगशास्त्र- कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्रसूरिकृत ६. जैन आचार दर्शन- डॉ. रमणलाल ची. शाह ७. जैन धर्म दर्शन- डॉ. रमणलाल ची. शाह ८. ज्ञानाञ्जलि- मुनिश्री पुण्यविजयजी म.सा., सागरगच्छ जैन उपाश्रय - बरोडा ९. समणसुत्तं- सर्व सेवा संघ प्रकाशन- वाराणसी १०. आयारो- जैन विश्वभारती-लाडनूं द्वारा प्रकाशित ११. भगवतीसूत्र, उत्तराध्ययनसूत्र, स्थानांगसूत्र एवं तत्त्वार्थसूत्र आदि।
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