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कोचर व्यवहारी का समय निर्णय
अगरचंदजी नाहटा
श्री विजयधर्मसूरिजी सम्पादित ऐतिहासिक रास संग्रह (सं. १९७६ प्रकाशित ) भाग १ में सर्व प्रथम तपागच्छीय कवि गुणविजयरचित कोचर व्यवहारी रास प्रकाशित हुआ है। जिसे कवि ने सं. १६८७ आसोज सुदि ९ को डीसा नगर में रचा था। यद्यपि कवि ने कोचर व्यवहारी किस संवत् में हुए इसका कोई स्पष्ट काल निर्देश नहीं किया है, फिर भी रास में उल्लिखित कोचर व्यवहारी से सम्बन्ध रखनेवाले सुमतिसाधुसूरि और देपाल का उल्लेख होने से कोचर व्यवहारी का समय, उल्लिखित दो व्यक्तियों के समयानुसार सोलहवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध ठहरता है ! रास- सार में आचार्य श्री विजयधर्मसूरिजी ने भी उनके उस समय में होने में कोई आपत्ति नहीं दर्शाई, प्रत्युत घटना की पुष्टि अन्य प्रमाणों द्वारा फुटनोट में की गई है, परंतु जबसे हमने खरतरगच्छ की प्राचीन पट्टावली' जो कि सोलहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध की लिखी हुई है, जिनोदयसूरि (१४१५-३२) के सम्बन्ध में 'वर्त्तितद्वादशग्रामामारिघोषणेन सुरत्राणसनाखत सा. कोचरश्रावकेण सलखणपुरे कारितप्रवेशोत्सवानां' लिखा देखा तभी से कोचरसाह के १६वीं शताब्दी में होने के विषय में सन्देह हो गया । सूरिजी के उपर्युक्त ग्रंथ (रास और राससार) एवं अन्य प्रमाणों पर विशेष विचार करने पर हमें हमारी शंका एक नवीन ऐतिहासिक सत्य की ओर ले जाती हुई ज्ञात हुई, जिसके विषय में यहाँ विशेष विचारणा की जाती है।
१. सोलहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में लिखित खरतरगच्छ पट्टावली में कोचरसाह के जो विशेषण लगाए हैं वे कोचर व्यवहारी रास के विषय से बिलकुल मिलते हैं।
यथा :- १. बारह गावों में अमारि घोषणा, २. सुरत्राण सनाखत, ३. सलखणपुर में । अतः रासनायक और पट्टावली में उल्लिखित कोचरसाह के एक होने में कोई सन्देह नहीं रह जाता ! ऐसी अवस्था में कोचरसाह का समय सोलहवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध न होकर तत्कालीन लिखित पट्टावली के कथनानुसार श्री जिनोदयसूरिजी के समकालीन - १५वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में होना विशेष प्रमाणित होता है । रास की रचना पट्टावली से १५० वर्ष पश्चात् हुई है; अतः उसका लेखन निश्चित रूप से स्खलना - रहित नहीं कहा जा सकता ।
१. महोपाध्याय जयसागरशिष्य महोपाध्याय सोमकुंजरशिष्य देवनंदन - महिमारत्न लिखित ।
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