Book Title: Shrutsagar Ank 2013 05 028
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ मई - २०१३ पर अनेक पुस्तकों का सृजन किया था। योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज से मिलने काशीराम गुजरात की यात्रा पर निकले, किन्तु यहाँ आने पर जब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि बहुत पहले ही आचार्यश्री का स्वर्गवास हो चुका है, तो मन ही मन दुःखी हुए। फिर उन्होंने आचार्यश्री के शिष्य पूज्य आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी महाराज से मिलकर अपनी समस्त जिज्ञासाओं को शान्त किया। उनकी प्रेरणा से काशीरामजी पालिताणा तीर्थ की यात्रा पर गए। सत्य जानने से पूर्व शत्रुजयतीर्थ की घोर टीका करने वाले काशीरामजी शत्रुजयतीर्थ में आदिनाथ भगवान का दर्शन कर पावन बने। शत्रुजय की यात्रा के पश्चात् पुनः तारंगातीर्थ पर पूज्य आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब के दर्शन कर दीक्षा लेने की अपनी भावना उनके समक्ष रखी। पूज्य आचार्यश्री द्वारा माता-पिता और परिजनों की आज्ञा के बिना दीक्षा देने से मना करने पर काशीरामजी ने अन्त में कहा कि यदि आप दीक्षा नहीं देंगे तो मैं स्वतः ही साधु के वस्त्र धारण कर आपके चरणों में बैठकर साधना करूँगा। काशीरामजी की वैराग्य भावना देखकर आचार्यश्री ने अपने शिष्य जितेन्द्रसागरजी के पास दीक्षा लेने का सुझाव दिया। आचार्यश्री के निर्देशानुसार काशीरामजी ने पूज्य तपस्वी मुनि श्री जितेन्द्रसागरजी म. सा. के चरणों में अपना जीवन समर्पित कर दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के बाद काशीराम का नाम मुनि श्री आनन्दसागरजी रखा गया। अपने परिजनों को सूचित किये बिना दीक्षा ग्रहण की थी, फलस्वरूप काशीराम के दीक्षित होने का समाचार सुनकर उनके परिजन गुजरात आये और काफी प्रयास करके उनकी इच्छा के विरुद्ध उन्हें घर ले गये। घर पर भी काशीराम साधुजीवन ही जीने लगे तब अन्त में उनके परिजनों ने उन्हें दीक्षा ग्रहण करने की अनुमति प्रदान कर दी। अन्ततः विक्रम संवत् १९९४ पौष कृष्णपक्ष १० के परम पावन दिन को अहमदाबाद की पवित्र भूमि पर पूज्य आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के पास पुनः दीक्षा ग्रहण की और मुनि श्री जितेन्द्रसागरजी म. सा. के शिष्य बने । दीक्षा के पश्चात् वे मुनि श्री कैलाससागरजी के नाम से विख्यात हुए। साधु जीवन के प्रारम्भिक काल से ही वे आत्मविकास और उज्ज्वल जीवन की प्रक्रिया को विस्तृत बनाने में लग गये। अपनी बौद्धिक प्रतिभा के कारण अल्प समय में ही आगमिक-दार्शनिक-साहित्यिक आदि ग्रन्थों का पूरी निष्ठा के साथ, For Private and Personal Use Only

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