Book Title: Shrutsagar Ank 2013 05 028
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नि:स्पृह चूड़ामणि आचार्य श्री कैलाससागरसूरि संक्षिप्त परिचय डॉ. हेमन्त कुमार परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद कैलाससागरसूरीश्वरजी महाराज साहब जिनशासन गगन के एक ऐसे नक्षत्र थे जिन्होंने अपनी दिव्य आभा से जैनजगत को प्रकाशित ही नहीं किया बल्कि अनेक भव्य आत्माओं के जीवन ज्योति को जलाकर उन्हें आत्मजागृति की राह पर चलने में प्रकाशपुञ्ज की भाँति मार्ग प्रशस्त किया। तपागच्छ के महाधिनायक जगतगुरु परम पूज्य आचार्य श्री हीरविजयसूरिजी की पाट परम्परा में एक यशस्वी नाम है. तपागच्छनायक आचार्य श्रीमद् कैलाससागरसूरिजी महाराज। निःस्पृहता, निर्भीक अभिव्यक्ति, स्वाभाविक सहजता, कर्तव्य परायणता, नेतृत्व सक्षमता इत्यादि अनेकानेक सद्गुणों से देदीप्यमान जीवन जनसामान्य के लिये प्रेरणास्पद और वरदान रहा है। पूज्य आचार्यश्री ने जिनशासन के उन्नयन हेतु अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया था, अपनी अनुपम प्रतिभा के प्रभाव से जैनसंघ एवं जिनशासन से संबद्ध अनेकानेक जटिल समस्याओं को सरलतापूर्वक हल किया करते थे। । युगों-युगों तक जिनका व्यक्तित्व और कृतित्व संपूर्ण जैन समाज को परोपकार और कर्तव्यनिष्ठा की सतत प्रेरणा देता रहे, ऐसे महापुरुष पूज्य गच्छनायक आचार्यश्री का जन्म पंजाब प्रान्त के लुधियाना जिले में जगरावाँ गाँव में विक्रम संवत् १९६०, मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष ६, दिनांक १९ दिसम्बर, १९१३ शुक्रवार के शुभ दिन पिता श्री रामकृष्ण दासजी के आँगन में माता श्रीमती रामरखी देवी की कुक्षि से हुआ था। इनके पिताजी लुधियाना जिला के प्रतिष्ठा सम्पन्न व्यक्ति थे और जगरावाँ गाँव में स्थानकवासी जैन समाज में प्रमुख की भूमिका निभाते थे। आपका नाम काशीराम रखा गया। कहा जाता है कि काशीरामजी की कुंडली निकालने वाले एक ज्योतिषी ने उनके पिता से कहा था कि आपका पुत्र आगे चलकर सम्राट बने, ऐसे उच्च ग्रहयोग उसकी जन्म कुंडली में हैं। जो कहा था वही हुआ, इस पुण्यात्मा ने समय के साथ सावधानी पूर्वक कदम बढ़ाकर सम्राट ही नहीं तपागच्छनायक, महान जैनाचार्य, श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरजी महाराज के बहुश्रुत नाम से जीवन में आशातीत सार्थकता व अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। ___ बालक काशीरामजी की परवरिश जैनधर्म के आदर्श एवं सुसंस्कारों के अनुरूप हुई। बाल्यकाल से ही अत्यन्त विनम्र और मृदुभाषी होने के कारण आप सबके प्रिय बन गए। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा स्थानीय पाठशाला में हुई। अपनी For Private and Personal Use Only

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