Book Title: Shrutsagar 2020 03 Volume 06 Issue 10 Author(s): Hiren K Doshi Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । श्रुतसागर मार्च-२०२० गुरुवाणी आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी जैनदृष्टिए आत्मानुं अनन्त वर्तुल योग परिभाषाए इडा नाडीने गंगा कहेवामां आवे छे, पिंगलाने यमुनानुं रूपक आपवामां आवे छे अने सुषुम्णाने सरस्वती- रूपक आपवामां आवे छे । ए लणनो जैनदृष्टिए शरीरसृष्टिमा समावेश थाय छ । त्रिपुटीने काशी कहेवामां आवे छे । ___ब्रह्मरन्ध्रने सिद्धशिला, अच्युतधाम वगेरे कहेवामां आवे छे, तेनो पण पिंडमां समावेश थाय छे, अने एवा रूपकने जैनदृष्टिए जैनदर्शनमां समाववामां आवे छे । तेथी जैनदर्शननी अर्थात् आत्म याने ब्रह्मदर्शननी अपरिमित वर्तुलतानो अनुभव सहेजे थइ शके तेम छ। पंचभूतनो दरगो समजवो अने तेमां दिल तकीयो समजवो अने तेमां आत्मारूप खुदा निरंजन निराकार छे, एवी कलमो भणवानी छे । मनरूप मक्कामां अन्तरात्मारूप महमदनो अवतार अर्थात् प्रकटभाव थतां ते निरंजन-निराकार एवा खुदाने शोधवा ध्यान धरे छे, अने ते पराभाषारूप वहीओने आत्मारूप खुदा द्वारा मोकलाएली मानीने ते जगतनी आगळ रजु करे छे। अने कहे छे के-निराकार निरंजन आत्मरूप खुदाने जेओ प्राप्त करे छे, तेओनो फरी अवतार थतो नथी। आम सापेक्षदृष्टिए जैनदर्शन गर्जना करीने कथे छे। एकान्तवादियो आशयनी अनवबोधताए एकान्तपणे तेनो स्वीकार करे छ। अलखध्याननो नशो करीने आत्मा, चौदस्तबक अर्थात् चौद राजलोकनी उपर रहेला सिद्धस्थानमां खुदारूप बनीने रहे छ। आवी रीते कर्मरूप शेतानना पाशमांथी मुक्त थवानुं शिखवनार मुसलमान मान्यता छे, तेनो आध्यात्मिक रूपकशैलीए जैनदर्शनमा समावेश थवाथी जैनदर्शनरूप अनंत वर्तुलता अपरिमित समस्त विश्वव्यापक होवाथी जैनदर्शन, जैनधर्म, विश्वव्यापक धर्म छे । एवी सापेक्षदृष्टिए सत्य विचारो अने सदाचारोथी अवबोधाइ शके छे। क्रमशः धार्मिक गद्य संग्रह भाग - १, पृष्ठ - ६८१-६८२ For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36