Book Title: Shrutsagar 2020 03 Volume 06 Issue 10 Author(s): Hiren K Doshi Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR March-2020 संपादकीय रामप्रकाश झा श्रुतसागर का यह नूतन अंक पाठकों के करकमलों में समर्पित करते हुए हमें प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है। इस अंक में योगनिष्ठ आचार्य बुद्धिसागरसूरीश्वरजी की अमृतमयी वाणी के अतिरिक्त छः अप्रकाशित कृतियों का प्रकाशन किया जा रहा है। सर्वप्रथम “गुरुवाणी” शीर्षक के अन्तर्गत वैदिक और इस्लाम धर्म के तथ्यों को जैनधर्म के तत्त्वों में घटित करके जैनधर्म में सभी धर्मों का समावेश करते हए जैनधर्मदर्शन के विस्तृत वर्तुल को दर्शाने का प्रयास किया गया है। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के प्रवचनों की पुस्तक 'Awakening' से क्रमशः संकलित किया गया है, जिसमें शिष्य के चरित्रनिर्माण में गुरु के अभूतपूर्व प्रेरणा और आशीर्वाद के ऊपर प्रकाश डाला गया है। अप्रकाशित कृति प्रकाशन के क्रम में सर्वप्रथम पूज्य गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी म. सा. के द्वारा संपादित उपाध्याय गुणविनयजी कृत "अजित-शांतिजिन स्तवन, विमलनाथ स्तवन तथा विजयसिंहसूरिजी द्वारा रचित दो गीतों” का प्रकाशन किया जा रहा है। द्वितीय कृति के रूप में शहरशाखा पालडी में कार्यरत डॉ. शीतलबेन शाह के द्वारा सम्पादित “१४ गुणठाणा स्तवन” प्रकाशित किया जा रहा है। इस कृति के कर्त्ता पाठक पद्मराजजी ने १४ गुणस्थानकों के स्वरूप का वर्णन करते हुए जीव के प्रथम गुणस्थानक से चौदहवें गुणस्थानक का विकासक्रम दर्शाया है। तृतीय कृति के रूप में शहरशाखा में ही कार्यरत श्रीमती हेतलबेन नाणावटी के द्वारा सम्पादित “शुद्धश्रद्धान स्वाध्याय” का प्रकाशन किया जा रहा है। इस कृति के कर्ता श्री पार्श्वचन्द्रसूरिजी ने श्री महावीर प्रभु के निर्वाण के बाद उत्पन्न हुए मिथ्यामतों का खण्डन करते हुए शुद्ध सम्यक्त्व के पालन करने हेतु विशेष जोर दिया है। पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत जैनधर्म प्रकाश, सुवर्ण महोत्सव विशेषांक, चैत्र, सं. १९९१ में प्रकाशित “स्तुति-स्तोत्रादि-साहित्यमां क्रमिक परिवर्तन” नामक लेख का अंतिम अंश प्रकाशित किया जा रहा है, इस लेख में स्तुति-स्तोत्र साहित्य के क्रमिक विकास के ऊपर प्रकाश डाला गया है। गतांक से जारी “पाण्डलिपि संरक्षण विधि" शीर्षक के अन्तर्गत ज्ञानमंदिर के पं. श्री राहुलभाई त्रिवेदी द्वारा अमूल्य शास्त्रग्रन्थों को जीव-जन्तुओं के द्वारा नष्ट होने से बचाने हेतु किए जानेवाले रासायनिक एवं देशी उपचारों के ऊपर प्रकाश डाला गया है। पुस्तक समीक्षा के अन्तर्गत इस अंक में “समयसार" ग्रन्थ की समीक्षा प्रस्तुत की गई है। इस ग्रन्थ में जीव-अजीवादि नवतत्त्वों, ज्ञान-दर्शन-चारित्रादि का विवेचन तथा आराधनाविराधनादि के फलों का वर्णन किया गया है। इसका सम्पादन लगभग १०० वर्ष पूर्व मुनि श्री चतुरविजयजी के द्वारा किया गया था, जिसका पुनः सम्पादन पूज्य पंन्यास वज्रसेनविजयजी के द्वारा किया गया है, जो पूज्य साधु-साध्वीजी भगवन्तों तथा विद्वानों हेतु अत्यन्त उपयोगी है। हम यह आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित विषयों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे। For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36