Book Title: Shrutsagar 2020 03 Volume 06 Issue 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मार्च-२०२०
॥१४॥
श्रुतसागर संसाराम्बुधितो विधुत-पापरजो(?) जननाथ!, तारय तारय मां प्रभो!, भासाजितदिननाथ! श्रीजयसोमगुरूणां, शिष्यैर्गुणविनयवाचकैः प्रसभम् । दत्तां सुख-सम्पत्तिं, प्रगे स्तुतावजित-शान्ति जिनौ
॥इति श्री अजित-शान्तिजिनस्तवनम् ॥
॥१५।। (आर्या)
विमलनाथ स्तवन
॥१॥
॥२॥
विमल-मइदायगं विमलजिणनायगं, निरुवमाणंत-सिवनयरसुह-सायगं'। थुणुअ महणीय पायारविंदं सया, जस्स नामेण संपज्जए संपया तुम्ह गुण-संख कुण करिसकइ सामिया, लक्ख जीहा हुवइ जस्स सिव गामिया। तहवि गुण-कण कहुं कोवि' भत्ती जुओ', सव्व जण मज्झि महिमंडले विस्सुओं"
॥ढाल॥ विमल जिणेसर वंदीयइ, प्रह समि ऊठि उलासि। जसु प्रणम्या सुख संपजइ, वाधइ सुजस विलास जनम-खिणइ कंपिलपुरइ, चउसठि आवीय इंद। मेरुसिहरि जेहनउ कर्यउ, हरखि महोच्छव-वृंद सामा-सुत सोभागीयउ, दीठउ करइ आनंद। सूरिज जिम चकवा भणी, जेम चकोरनइ चंद कृतवर्मा नृपकुलतिलउ, लंछण जासु वराह । संयम निरमल ले करी, देखाड्यउ सिव-राह
॥ ढाल॥ जी हो धन्य विशाला ए पुरी, जी हो जिहां श्रीविमल-विहार । जी हो सोहइ कलपलता समउ, जी हो मनवंछित दातार
॥३।। विमल...
॥४॥ विमल...
॥५।। विमल...
॥६॥ विमल...
॥६(७)।
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36