Book Title: Shrutsagar 2020 03 Volume 06 Issue 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
मार्च-२०२० तिम कहां पर-सुर तुम्ह कहां, लोकालोकनउ जाण हो जिनवर । मूरिख तस ओपम दीयइ, तेहनउ कवण वखाण हो जिनवर ॥१७(१८)। इक प्रभु तुं मुझ वालहउ, वलि सीतल प्रभु मेल हो जिनवर । दूध मधुर सहजइ सदा, तिहां हुअ साकर भेल हो जिनवर ॥१८(१९)
कलश इम सयल सुह सुविशाल शाला श्रीविशालामंडणो, अकलंक सामा-जात ससि नव पाव-ताप-विहंडणो', उवझाय श्रीजयसोम सुहगुरु सीस पाठक गुणविनय, संथुण्यउ श्रीसंघनइ सुपउ संपदा सुख दिनि दिनइ
॥१९(२०)। विजयसिंहसूरि गीत म्हारी बहिनी हे बहिनी सुणी माहरी तुं वात हे,
हुं वांदिसु श्रीजिनसिंहनइ हे। म्हारी बहिनी हे बहिनी म्हारी धवलमंगल हुं देसु हे,
सोभागी गुरुनइ सुभ मनइ हे॥१॥ म्हारी बहिनी हे बहिनी म्हारी युगप्रधान जिणचंद हे,
तसु पाटइ गुरुजी दीपतउ हे। म्हारी बहिनी हे बहिनी म्हारी शास्त्र तणउ अति जांण हे,
तेजइ सूरिजनइ जीपतउ हे ॥२॥ म्हारी बहिनी हे बहिनी म्हारी अमृत सरिखी वाणि हे,
सांभलिवा आवइ भू-धणी हे। म्हारी बहिनी हे बहिनी म्हारी शिष्य तणइ परिवारि हे,
सोहायउ सुहगुरु सुरमणी हे ॥३॥ म्हारी बहिनी हे बहिनी म्हारी सोहगनउ२१
निधान हे, चोपडा वंसइ राजतउ हे। म्हारी बहिनी हे बहिनी म्हारी बोलइ मधुरइ सादि हे,
जाणे जल भरीयउ घन गाजतउ हे ॥४॥
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