Book Title: Shrutsagar 2020 03 Volume 06 Issue 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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SHRUTSAGAR
23
March-2020
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शुद्धश्रद्धान स्वाध्याय ॥O॥ रिसह पमुह जिणवर चउवीस, विहरमान तीर्थंकर वीस। विहरइ दुनि कोडि केवली, प्रहइ उठी वांदु मनि रली साधु शिरोमणि बिसहसकोडि, ते नितु प्रणमुंबे करजोडि। कर्मभूमिका पनरहमाहिं, जघन्य पदि बोल्यां जगमाहि तसु पयकमल भमर जिम लिए, दुसमकालिई अतिसय हीण । कर्मयोगि भरतइं अवतरिउ, बहुमत देखी संशय भरिउ तिणि संशयनु भंजणहार, एक अरिहंतजी जगदाधार । हिवडां तेहनइ विरहइ करी, असंयती पूजा विस्तरी झाझा थया वरिससई सात, विरला जाणइ प्रवचन वात । कीधा कल्पित ग्रंथ अनेक, प्रवचन प्रकरण भाषइ एक श्री श्रुत ढांकी मूंकिउ दरि, प्रकरण कहइ उगंतइ सूरि । द्रव्य त देव धर्म गुरु कहा, भोलइ भावि तिणइ भूमि ग्रह्या एकठा मिल्या चउरासी थया, माहोमाहि सहू जूव जूआ। निज निज चैत्य संघ मन वसिउ, इह किम लाभइ सासन किसिउ पडिउ लोक गाडरी प्रवाहि, रासिबद्ध जिम ताणिउ जाइ। पर दरसणि जे दीठउं बहु, नाम फेरि ते मांडिउ सहू एक कहइ प्रतिमा एकली, घरि पूजंती न होइ भली। मल्लि नेमि श्री वीर जिणंद, जिणइ दीठइ होइ परमाणंद तिहनी प्रतिमा घरि नाणीइ, इम कहइतां गुरु किम जाणीइ। एक कहइ स्त्री पूजइ नहीं, दो वइ पूजा आगमि कही एक जैन जोडावा गणइ, लाभ हाणि जिन पूजा भणइ । करइ प्रतिष्टा आपणइ हाथि, करइ यात्रा जल नीजई साथि मखइं जिनप्रति मानि पूजा कही, तिणि मुखि पुछ्या बोलइ नहीं। माहरी माइ अनइं वांझिणी, एह वात तिणइ साची गिणी
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