Book Title: Shrutsagar 2020 03 Volume 06 Issue 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ISSN 2454-3705 श्रुतसागर | श्रुतसागर SHRUTSAGAR (MONTHLY) March-2020, Volume : 06, Issue : 10, Annual Subscription Rs. 150/- Price Per copy Rs. 15/ EDITOR: Miren Kishorbhai Desli BOOK-POST / PRINTED MATTER १४ अयोगी केवली सयोगी केवली १२ क्षीणमोह । उपशांत मोह १० HARSARTA सूक्ष्म संपराय अनिवृत्ति करण ९ । ८ अपूर्व करण अप्रमत्त संयत संयत सर्वविरति प्रमत्त देशविरति अविरति सम्यग्दृष्टि ३ मिश्र मिश्र सास्वादन २ सास्वादन मिथ्यात्व चौद गुणस्थानक प्रतिक चित्र आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राष्ट्रसन्त पूज्य आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा की निश्रा में श्री सीमंधरस्वामी जिनपेढी, महेसाणा में आयोजित प्रतिष्ठा समारोह ha miti For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR March-2020 RNI : GUJMUL/2014/66126 ISSN 2454-3705 (आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का मुखपत्र) श्रुतसागर श्रुतसागर SHRUTSAGAR (Monthly) वर्ष-६, अंक-१०, कुल अंक-७०, मार्च-२०२० Year-6, Issue-10, Total Issue-70, March-2020 वार्षिक सदस्यता शुल्क - रु. १५०/- * Yearly Subscription - Rs.150/___ अंक शुल्क - रु. १५/- * Price per copy Rs. 15/ आशीर्वाद राष्ट्रसंत प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. * संपादक * * सह संपादक * * संपादन निर्देशक हिरेन किशोरभाई दोशी रामप्रकाश झा गजेन्द्रभाई शाह * संपादन सहयोगी राहुल आर. त्रिवेदी एवं ज्ञानमंदिर परिवार १५ मार्च, २०२०, वि. सं. २०७६, फाल्गुन कृष्ण पक्ष-७ न आराधन पा केन्द्र तवीर जैन श्री महाका 525 श्तं त विका आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध-संस्थान एवं ग्रन्थालय) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा, गांधीनगर-३८२००७ फोन नं. (079) 23276204, 205, 252 फैक्स : (079) 23276249, वॉट्स-एप 7575001081 Website : www.kobatirth.org Email : gyanmandir@kobatirth.org For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर मार्च-२०२० o wa u अनुक्रम १. संपादकीय रामप्रकाश झा २. गुरुवाणी आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी ६ ३. Awakening Acharya Padmasagarsuri ४. वाचक कविश्री गुणविनयजी कृत गणि सुयशचंद्र-सुजसचंद्रविजयजी ८ ४ अप्रगट कृतिओ ५. १४ गुणठाणा स्तवन डॉ. शीतलन शाह ६. शुद्धश्रद्धान स्वाध्याय हेतलबेन नाणावटी ७. स्तुति-स्तोत्रादि-साहित्यमां क्रमिक परिवर्तन मुनिश्री पुण्यविजयजी ८. प्राचीन पाण्डुलिपियों की संरक्षण विधि राहुल आर. त्रिवेदी ९. पुस्तक समीक्षा रामप्रकाश झा १०. समाचार सार गुरु कारीगर सारिखा, टंकी विचन विचार। पथर की प्रतिमा करे, पूजा लहे अपार ॥ प्रत क्र. १००५ भावार्थ- गुरु कारीगर जैसे होते हैं। जिस प्रकार कारीगर (शिल्पी) पत्थर से प्रतिमा का निर्माण करता है और वह पूजनीय बन जाती है, वैसे ही गुरु सुवचनों के टंकण से निर्मित इन्सान भी अपार पूज्यता को पाता है। * प्राप्तिस्थान * आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तीन बंगला, टोलकनगर, होटल हेरीटेज़ की गली में डॉ. प्रणव नाणावटी क्लीनिक के पास, पालडी अहमदाबाद - ३८०००७, फोन नं. (०७९) २६५८२३५५ For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR March-2020 संपादकीय रामप्रकाश झा श्रुतसागर का यह नूतन अंक पाठकों के करकमलों में समर्पित करते हुए हमें प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है। इस अंक में योगनिष्ठ आचार्य बुद्धिसागरसूरीश्वरजी की अमृतमयी वाणी के अतिरिक्त छः अप्रकाशित कृतियों का प्रकाशन किया जा रहा है। सर्वप्रथम “गुरुवाणी” शीर्षक के अन्तर्गत वैदिक और इस्लाम धर्म के तथ्यों को जैनधर्म के तत्त्वों में घटित करके जैनधर्म में सभी धर्मों का समावेश करते हए जैनधर्मदर्शन के विस्तृत वर्तुल को दर्शाने का प्रयास किया गया है। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के प्रवचनों की पुस्तक 'Awakening' से क्रमशः संकलित किया गया है, जिसमें शिष्य के चरित्रनिर्माण में गुरु के अभूतपूर्व प्रेरणा और आशीर्वाद के ऊपर प्रकाश डाला गया है। अप्रकाशित कृति प्रकाशन के क्रम में सर्वप्रथम पूज्य गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी म. सा. के द्वारा संपादित उपाध्याय गुणविनयजी कृत "अजित-शांतिजिन स्तवन, विमलनाथ स्तवन तथा विजयसिंहसूरिजी द्वारा रचित दो गीतों” का प्रकाशन किया जा रहा है। द्वितीय कृति के रूप में शहरशाखा पालडी में कार्यरत डॉ. शीतलबेन शाह के द्वारा सम्पादित “१४ गुणठाणा स्तवन” प्रकाशित किया जा रहा है। इस कृति के कर्त्ता पाठक पद्मराजजी ने १४ गुणस्थानकों के स्वरूप का वर्णन करते हुए जीव के प्रथम गुणस्थानक से चौदहवें गुणस्थानक का विकासक्रम दर्शाया है। तृतीय कृति के रूप में शहरशाखा में ही कार्यरत श्रीमती हेतलबेन नाणावटी के द्वारा सम्पादित “शुद्धश्रद्धान स्वाध्याय” का प्रकाशन किया जा रहा है। इस कृति के कर्ता श्री पार्श्वचन्द्रसूरिजी ने श्री महावीर प्रभु के निर्वाण के बाद उत्पन्न हुए मिथ्यामतों का खण्डन करते हुए शुद्ध सम्यक्त्व के पालन करने हेतु विशेष जोर दिया है। पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत जैनधर्म प्रकाश, सुवर्ण महोत्सव विशेषांक, चैत्र, सं. १९९१ में प्रकाशित “स्तुति-स्तोत्रादि-साहित्यमां क्रमिक परिवर्तन” नामक लेख का अंतिम अंश प्रकाशित किया जा रहा है, इस लेख में स्तुति-स्तोत्र साहित्य के क्रमिक विकास के ऊपर प्रकाश डाला गया है। गतांक से जारी “पाण्डलिपि संरक्षण विधि" शीर्षक के अन्तर्गत ज्ञानमंदिर के पं. श्री राहुलभाई त्रिवेदी द्वारा अमूल्य शास्त्रग्रन्थों को जीव-जन्तुओं के द्वारा नष्ट होने से बचाने हेतु किए जानेवाले रासायनिक एवं देशी उपचारों के ऊपर प्रकाश डाला गया है। पुस्तक समीक्षा के अन्तर्गत इस अंक में “समयसार" ग्रन्थ की समीक्षा प्रस्तुत की गई है। इस ग्रन्थ में जीव-अजीवादि नवतत्त्वों, ज्ञान-दर्शन-चारित्रादि का विवेचन तथा आराधनाविराधनादि के फलों का वर्णन किया गया है। इसका सम्पादन लगभग १०० वर्ष पूर्व मुनि श्री चतुरविजयजी के द्वारा किया गया था, जिसका पुनः सम्पादन पूज्य पंन्यास वज्रसेनविजयजी के द्वारा किया गया है, जो पूज्य साधु-साध्वीजी भगवन्तों तथा विद्वानों हेतु अत्यन्त उपयोगी है। हम यह आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित विषयों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे। For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । श्रुतसागर मार्च-२०२० गुरुवाणी आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी जैनदृष्टिए आत्मानुं अनन्त वर्तुल योग परिभाषाए इडा नाडीने गंगा कहेवामां आवे छे, पिंगलाने यमुनानुं रूपक आपवामां आवे छे अने सुषुम्णाने सरस्वती- रूपक आपवामां आवे छे । ए लणनो जैनदृष्टिए शरीरसृष्टिमा समावेश थाय छ । त्रिपुटीने काशी कहेवामां आवे छे । ___ब्रह्मरन्ध्रने सिद्धशिला, अच्युतधाम वगेरे कहेवामां आवे छे, तेनो पण पिंडमां समावेश थाय छे, अने एवा रूपकने जैनदृष्टिए जैनदर्शनमां समाववामां आवे छे । तेथी जैनदर्शननी अर्थात् आत्म याने ब्रह्मदर्शननी अपरिमित वर्तुलतानो अनुभव सहेजे थइ शके तेम छ। पंचभूतनो दरगो समजवो अने तेमां दिल तकीयो समजवो अने तेमां आत्मारूप खुदा निरंजन निराकार छे, एवी कलमो भणवानी छे । मनरूप मक्कामां अन्तरात्मारूप महमदनो अवतार अर्थात् प्रकटभाव थतां ते निरंजन-निराकार एवा खुदाने शोधवा ध्यान धरे छे, अने ते पराभाषारूप वहीओने आत्मारूप खुदा द्वारा मोकलाएली मानीने ते जगतनी आगळ रजु करे छे। अने कहे छे के-निराकार निरंजन आत्मरूप खुदाने जेओ प्राप्त करे छे, तेओनो फरी अवतार थतो नथी। आम सापेक्षदृष्टिए जैनदर्शन गर्जना करीने कथे छे। एकान्तवादियो आशयनी अनवबोधताए एकान्तपणे तेनो स्वीकार करे छ। अलखध्याननो नशो करीने आत्मा, चौदस्तबक अर्थात् चौद राजलोकनी उपर रहेला सिद्धस्थानमां खुदारूप बनीने रहे छ। आवी रीते कर्मरूप शेतानना पाशमांथी मुक्त थवानुं शिखवनार मुसलमान मान्यता छे, तेनो आध्यात्मिक रूपकशैलीए जैनदर्शनमा समावेश थवाथी जैनदर्शनरूप अनंत वर्तुलता अपरिमित समस्त विश्वव्यापक होवाथी जैनदर्शन, जैनधर्म, विश्वव्यापक धर्म छे । एवी सापेक्षदृष्टिए सत्य विचारो अने सदाचारोथी अवबोधाइ शके छे। क्रमशः धार्मिक गद्य संग्रह भाग - १, पृष्ठ - ६८१-६८२ For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR March-2020 Awakening Acharya Padmasagarsuri (from past issue...) But no one should have the illusion that he can achieve spiritual progress in life by means of shallow devotion. In addition to having devotion for the teacher, the disciple must also live according to the precepts of the teacher. Life becomes sublime only by means of right conduct. The teacher preaches patience and forbearance. But at the same time, he also beats and rebukes the disciple. He does so only to find out to what extent the disciple has achieved patience and forbearance in his life. A certain disciple swept the ashram with a broom, filled a basket with the rubbish and placed it there. Since the disciple had some other duty to carry out he did not think of the basket and it lay there. He forgot that he had to throw away the rubbish. Sometime later, the teacher set out from there and tumbled over the basket and fell down. Angered by this, he beat the disciple severely with a cane. The disciple did not go away from him. He remained there enduring the strokes and imploring his forgiveness. The mark left by the stick on his back remained there throughout his life as a scar. When people asked him how that scar appeared there, he proudly answered that it was his teacher's gift to him. The teacher was none other than Virjanandaji Saraswati and the pupil was Swami Dayananda Saraswati. He knew that the teacher showed such agitation only to reform his disciple, not because he had any hatred in his heart against him. The teacher's heart has only love and affection in it. गुरु कुंभार सिष कुम्भ है, गढ-गढ काढे खोट। अन्दर हाथ सवार दै, ऊपर मारे चोट ॥ Guru kumbar sikh kumb hai, Gadh gadh kadhai khot Andar hath savar dai, Upar mare chot (continue...) For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर मार्च-२०२० वाचक कविश्री गुणविनयजी कृत ४ अप्रगट कृतिओ गणि सुयशचंद्र-सुजसचंद्रविजय विक्रमनी १७मी शताब्दिमां खरतरगच्छनी परंपरामां घणा प्रभावक आचार्यभगवंतो थया। जेमांना एक एटले आ.श्री. जिनचंद्रसूरिजी। तेओश्री पोते समर्थ विद्वान तो हता ज साथे साथे मंत्रसाधनानुं बळ पण तेमनी प्रतिभामां वधारो करतुं । तेओ ज्यारे पोतानी विद्वान शिष्य मंडळी साथे बादशाह अकबरने मळ्या त्यारे सम्राट पोते पण तेमनी प्रतिभाथी अंजाया हता अने माटे ज बादशाहे अमारि विगेरेना केटलाक फरमानो लखावी तेमने भेट आप्या होवा पण केटलाक इतिहासकारो नोंधे छ। आपणे आगळ जोयुं तेम तेओ पोताना विद्वान शिष्यवृंद साथे ज्यारे सम्राट अकबरने मळ्या त्यारे ते शिष्योमांना एक हता आपणा कृतिकारश्री उपा. गुणविनयजी। जो के तेमना ग्रहस्थ जीवननो, माता-पितादि परिवारनो कोई परिचय क्यांक मळतो होय तेवू ध्यानमां नथी, परंतु उपा. जयसोमजीना शिष्य तरीके तेओ दीक्षित थया हता तेवी नोंध तेमना पोते रचेला ग्रंथोनी प्रशस्तिमां जोवा मळे छ। उपाध्यायजी महाराज प्राकृत/संस्कृत भाषाना उद्भट विद्वान तो हता ज, वळी तेओ मारुगुर्जरादि भाषाना समर्थ कवि पण हता। व्याकरण, कोश, छंदादि विषयोमां तेमनी गति अस्खलित हती, तो सिद्धांतना, दर्शनना ग्रंथोमां तेमनी मति असाधारण हती। ग्रंथ मंडनात्मक होय के खंडनात्मक, काव्य ऐतिहासिक होय के साहित्यिक प्रायः दरेके-दरेक विषयमां तेमनी कलम अविरतपणे वहेती। अने तेथी ज रघुवंश, नलदमयंति चंपू, कोचरव्यवहारी रास जेवा अनेक ग्रंथोनी रचना द्वारा तेमणे साहित्य क्षेत्रे बहोळं योगदान आपेलुं आपणे जोई शकीए छीए । तेमना द्वारा रचित कृतिओनी सूचि निम्न प्रकार छ। १. मूर्तिपूजामतस्थापन सज्झाय २. नेमिदूत की संस्कृत टीका ३. छ चैत्य स्तवन-जेसलमेरस्थित ४. जिनसिंहसूरि गीत ५. जिनदत्तसूरि जिनकुशलसूरि स्तुति ६. कीर्तिरत्नसूरि जिनभद्रसूरि स्तुति ७. जिनकुशलसूरि स्तुति ८. अजितजिन स्तुति ९. जिनचंद्रसूरि जिनसिंहसूरि पद १०. जिनकुशलसूरि गीत (कृतिसंख्या-८) ११. देवराजवच्छराज चौपाई १२. आषाढभूति चौपाई For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR March-2020 १३. मंत्रि कर्मचंद्रवंशावलीप्रबंध रास आम कर्त्ता द्वारा रचित लगभग ४० जेटली रचनाओ प्राप्त थाय छ। प्रस्तुत कृति अंगे प्रस्तुत चारे कृतिओ उपाध्याय गुणविनयजी द्वारा रचायेली अप्रगट रचनाओ छ। जेमानी पहेली २ रचना जिनेश्वर परमात्मानी स्तुतिपरक रचना छे ज्यारे छेल्ली २ रचनाओ उपाध्यायजीनी गुरुपरंपराना स्तुति काव्यो छे । हवे आपणे ते कृतिओनो ढूंको परिचय मेळवीए... १. अजित-शांतिजिन स्तवन - पू. नंदिषेणसूरिजी रचित 'अजित-शांतिजिन स्तव'नी साथे नाम साम्य धरावती आ रचना छ। कति ४ ढाळमां विभक्त छ। जेमां सौप्रथम ढाळ १६ मात्राना (नाम?) छंदमां, बीजी ढाळ भूजंगप्रयात छंदमां, त्रीजी ढाळ प्रायः कोई प्राचीन देशी/संस्कृत गीतना राग बंधारणमां तथा छेल्ली ढाळ वस्तु छंदमां रचाई छ । कविनी अन्य कृतिओनी जेम प्रस्तुत रचना पण संस्कृतभाषानी प्रांजल रचना छे तेमांय मारूगुर्जर साहित्यना रागोने (अहीं ढा.३/४ना) संस्कृत भाषामां प्रयोजवा तेवू ते-ते भाषा परना प्रभुत्व वगर न ज संभवी शके । खास तो ते ढाळोमां प्रभुनी गुणस्तवना ज गुंथेली विशेषे जोई शकाय छे। २. विमलनाथ स्तवन - प्रस्तुत कृति विशालानगरीना प्रभु विमलनाथने उद्देशीने रचायेल लघु स्तवना छ। काव्यना प्रथम २ पद्योमां आ स्तवना करवानुं प्रयोजन जणावी कविए त्यारपछीनी ३ ढाळमां अनुक्रमे प्रभुना जीवन चरित्रनी, अधिष्ठायक देव-देवीना परिवार तथा 'विमल' नामाभिधान थयाना कारणनी, तेमज वीतरागी प्रभुना दर्शनथी थता सुखनी वर्णना करी छे। अहीं काव्यगत विशेष ऐतिहासिक बाबत स्तवनानी बीजा ढाळना प्रथम पद्यमांनो “विमल विहार" शब्द छे। कविनी काव्य रचना समये विमलनाथ प्रभनं ते चैत्य “विमल विहार" ना नामे प्रसिद्ध हशे तेवं आ पाठ परथी प्रतीत थाय छे खास तो वर्तमान समयना संदर्भमां ते स्थापत्यनी परिस्थिति पण संशोधननो विषय छ । ३. विजयसिंहसूरिना २ गीतो___आ बन्ने गीतो आ. श्रीजिनचंद्रसूरिजीनी पाटे बिराजमान विजयसिंहसूरिजीने उद्देशीने रचाया छे । जेमां प्रथम गीत गुरु भगवंत पधरामणी करता हरखघेली थती For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर मार्च-२०२० स्त्रीनी मनोदशानुं स्वरूप वर्णवे छे ज्यारे बीजु गीत पधारेला ते गुरुने पोते कई रीते विनवशे? कई रीते वहोरावशे? वळी वधावणा पण केवा करशे तेनी भावदशा आलेखतुं सुंदर काव्य छ। आम आ बन्ने गीतो तथा लीजुं स्तवन ए त्रणेय गुर्जर काव्यो कविनी सुंदर रचना छ । खास तो प्रवाहित शैली, प्रासोनी अद्भुत गोठवणी तेमज सुमधुर पदावली कविनी विद्वत्ता तरफ आपणु ध्यान दोरे छ। ___ प्रस्तुत कृतिओनुं संपादन श्रीनेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमंदिर (सुरत)ना परचुरण छुटक पाना परथी तथा आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबानी हस्तप्रत क्र. ४०७७३ना आधारे करेल छे. प्रान्ते हस्तप्रत नकल आपवा बदल उपरोक्त बन्नेय ज्ञानमंदिरना व्यवस्थापकोनो खूब खूब आभार । अजित-शान्तिजिन स्तवन ॥१॥ ॥२॥ ॥३॥ ढाल-१ शिवसुखकारण! भवनिस्तारण!, मोहनिवारण! वारणधारण!। अचिरानन्दन! जगदानन्दन!, मदभरभञ्जन! जय जनरञ्जन! तव पदकमलालीनमहीनं, त्रिभुवनमिव भवभीभरदीनम् । नतिपरम परम(?) सम्प्रतिफलितं, जातं जिनयुग! निर्वृतिकलितम् भवकृतपरिभवदु(:)स्थममुं मां, पालय मा(पा)लय साधु निभालय। प्रक्षालय समलं मम चेतो, जिनयुगलाऽमलशमजलपूरैः शुभसञ्चयकर! करुणासागर!, नागरकर्ममहामरुतीश्वर! । अजित! परैरजितेहितदाने, मां प्रति (िमा) प्रतिषेधमुखोऽभूः शान्तिः शान्तिजिनाधिप! भवता, गर्भगतेनाऽपि हि भुवि विहिता। कः साम्प्रतमीश्वरतां दधता, तत्करणे मद ऊह्यते महता ढाल-२ /भुजङ्गप्रयातच्छन्दः अहो! पुण्ययोगेन मे नेत्रयुग्मं, निरीक्ष्य प्रकाशं जिनाधीशयुग्मम् । फलाढ्यं बभूव प्रभाभास्वराङ्गं, क्वचिन् नाऽश्नुतेऽन्यत्र लेशेन रङ्गम् ॥४॥ ॥५॥ ॥६॥ For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11 March-2020 ॥८॥ ॥९॥ SHRUTSAGAR महादर्पभाजोऽपि ये त्वत्पदाब्जं, नयन्ते यदा दृक्पथं भाग्ययोगात्।। परित्यज्य तं(ते) तत्क्षणात् तावकीनां, परीष्टिं वितन्वन्ति शिष्टत्वमाप्ताः ॥७॥ इहाऽमुत्र च प्रौढसौख्यप्रदाने, सुरद्रूपमं श्रीजिनाधीशयुग्मम् । स्तुवेऽनन्तमन्तुस्मृतौ दक्षतां नो, दधानं ममाऽपीह कैवल्यभाक्त्वे कलाकेलिकौटिल्यमुन्मूल्य मूलात्, स्वभक्ते जने यच्च(श्च)काराऽनुकूलाम्। शिवस्य श्रियं दिव्यरूपां सुरूपां, भजे भाग्यसौभाग्यकाष्ठामवाप्तम् ढाल-३* निर्मलकुलकमलप्रतिबोधन-दिनकर! जय जय धवलयशोधन!, __ विगतायोधन देव! श्रीजिनयुग!, मम कमलालीला, प्रापय घातय दुष्कृतहीलाम्, दुर्गतिसङ्गतिमीलाम् ॥१०॥ अलमकलं जिनयुगलं भेजे, परमानन्दरसो हृदि रेजे, यस्य चिदाप्रवरेजे(?)। धर्म-मतिर्ननु येन प्रददे, भक्तजनाय सुधाकरविशदे, वरदे यत्र च न मदः ॥११॥ कस्तव गुणगणनां प्रविधातुं, शक्तः शक्तिसमो पि हि दातुं, सुखनिकरं किल मातुम्। सर्वान् भावानशकस्त्वं पुन-रसकृत् पूरय सुयशो मेघन मनुदिनमतिशयधर्तु(?) ॥१२॥ ढाल-४ /वस्तुच्छन्दः] जय जिनेश्वर! जय जिनेश्वर! परमगुणधार!, धरणीपतिपूजितचरण! चरणकरणविशदोपदेशक!, निजसेवकजनतासु वर-बाधरहितशिवपदनिवेशक!। तव महिमा का(को)ऽप्यतुलबल!, विलसति जगति विशालभालस्थल! जिनयुगल! मां मोदय कृतसुखमाल! ॥१३॥ सकलपावन! सकलपावन! करणजित(द)करण!, दोषरोष-दर्मदहरण! विमलबोधदायक! महोदय!, अजित-शान्तिसर्वज्ञजिन! भक्तलोकदर्शितमहोदय! । * दोधक अथवा त्रोटक छंद होवा संभव छे. For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मार्च-२०२० ॥१४॥ श्रुतसागर संसाराम्बुधितो विधुत-पापरजो(?) जननाथ!, तारय तारय मां प्रभो!, भासाजितदिननाथ! श्रीजयसोमगुरूणां, शिष्यैर्गुणविनयवाचकैः प्रसभम् । दत्तां सुख-सम्पत्तिं, प्रगे स्तुतावजित-शान्ति जिनौ ॥इति श्री अजित-शान्तिजिनस्तवनम् ॥ ॥१५।। (आर्या) विमलनाथ स्तवन ॥१॥ ॥२॥ विमल-मइदायगं विमलजिणनायगं, निरुवमाणंत-सिवनयरसुह-सायगं'। थुणुअ महणीय पायारविंदं सया, जस्स नामेण संपज्जए संपया तुम्ह गुण-संख कुण करिसकइ सामिया, लक्ख जीहा हुवइ जस्स सिव गामिया। तहवि गुण-कण कहुं कोवि' भत्ती जुओ', सव्व जण मज्झि महिमंडले विस्सुओं" ॥ढाल॥ विमल जिणेसर वंदीयइ, प्रह समि ऊठि उलासि। जसु प्रणम्या सुख संपजइ, वाधइ सुजस विलास जनम-खिणइ कंपिलपुरइ, चउसठि आवीय इंद। मेरुसिहरि जेहनउ कर्यउ, हरखि महोच्छव-वृंद सामा-सुत सोभागीयउ, दीठउ करइ आनंद। सूरिज जिम चकवा भणी, जेम चकोरनइ चंद कृतवर्मा नृपकुलतिलउ, लंछण जासु वराह । संयम निरमल ले करी, देखाड्यउ सिव-राह ॥ ढाल॥ जी हो धन्य विशाला ए पुरी, जी हो जिहां श्रीविमल-विहार । जी हो सोहइ कलपलता समउ, जी हो मनवंछित दातार ॥३।। विमल... ॥४॥ विमल... ॥५।। विमल... ॥६॥ विमल... ॥६(७)। For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir March-2020 SHRUTSAGAR जिणिंदराय! जय जय जगआधार, जी हो गुणमणिनउं भंडार (आंकणी), जी हो सासन सुर षणमुख भलउ, जी हो दिनप्रति रहइ जसु पास। जी हो विदिता जसु सासनसुरी, जी हो भगतनी पूरइ आस ॥७(८)। जिणिंदराय... जी हो सोवन वान सोहामणो, जी हो चिंतामणि सुरसाल। जी हो जाणे घरि परगट हुआ, जी हो जइ पेख्यउ सुभ भाल° ॥८(९)। जिणिंदराय... जी हो भय भागउ भवसिंधुनउ, जी हो जइ लाउ दीप समान। जी हो कमला केलि करइ घरइ, जी हो जइ कर्यउ जिन गुण गान ॥९(१०)। जिणिंदराय... जी हो जिणि उयरइ प्रभु आवीयइ, जी हो मातानी मति देह' । जी हो विमल थया तिणि आपीयउ, जी हो विमल नाम गुणगेह ॥१०(११)। जिणिंदराय... ॥ ढाल॥ निरदूषण गुणि सेहरउ१२, तो सम जगि नहीं कोइ हो जिनवर । तुं माहरइ मनि रमि राउ, जिम रवि मंडलि जोइ हो जिनवर ॥११(१२)॥ राग दोस दोउं जगइ, जगना जीपणहार हो जिनवर। हेलइं ते जीता तुम्हे, न धर्यउ कोप विकार हो जिनवर ॥१२(१३)। केवल-लच्छि लही सही, च्यारि करमनइ अंति हो जिनवर। विणु मसकति कुण फल लहइ, इहां नवि कांई भ्रंति हो जिनवर ॥१३(१४)।। जिम जिम देखं ताहरउ, रूप अनोपम आज हो जिनवर, तिम तिम मुझ मन ऊलसइ, जिम कैरव द्विजराज हो जिनवर ॥१४(१५)।। कहां सुरसुख नरसुख कहां, कहां छीलर कहां सिंधु हो जिनवर। अलप-तेज खजूअउ इहां, कहां ऊगउ दिनबंधु हो जिनवर ॥१५(१६)॥ कहां सुरतरु एरंड कहां, कहां तरूअर कहां तार हो जिनवर। कहां सुरगिरि कहां अणु भण्यउ, कहां हयवर कहां टार" हो जिनवर ॥१६(१७)।। For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 14 श्रुतसागर मार्च-२०२० तिम कहां पर-सुर तुम्ह कहां, लोकालोकनउ जाण हो जिनवर । मूरिख तस ओपम दीयइ, तेहनउ कवण वखाण हो जिनवर ॥१७(१८)। इक प्रभु तुं मुझ वालहउ, वलि सीतल प्रभु मेल हो जिनवर । दूध मधुर सहजइ सदा, तिहां हुअ साकर भेल हो जिनवर ॥१८(१९) कलश इम सयल सुह सुविशाल शाला श्रीविशालामंडणो, अकलंक सामा-जात ससि नव पाव-ताप-विहंडणो', उवझाय श्रीजयसोम सुहगुरु सीस पाठक गुणविनय, संथुण्यउ श्रीसंघनइ सुपउ संपदा सुख दिनि दिनइ ॥१९(२०)। विजयसिंहसूरि गीत म्हारी बहिनी हे बहिनी सुणी माहरी तुं वात हे, हुं वांदिसु श्रीजिनसिंहनइ हे। म्हारी बहिनी हे बहिनी म्हारी धवलमंगल हुं देसु हे, सोभागी गुरुनइ सुभ मनइ हे॥१॥ म्हारी बहिनी हे बहिनी म्हारी युगप्रधान जिणचंद हे, तसु पाटइ गुरुजी दीपतउ हे। म्हारी बहिनी हे बहिनी म्हारी शास्त्र तणउ अति जांण हे, तेजइ सूरिजनइ जीपतउ हे ॥२॥ म्हारी बहिनी हे बहिनी म्हारी अमृत सरिखी वाणि हे, सांभलिवा आवइ भू-धणी हे। म्हारी बहिनी हे बहिनी म्हारी शिष्य तणइ परिवारि हे, सोहायउ सुहगुरु सुरमणी हे ॥३॥ म्हारी बहिनी हे बहिनी म्हारी सोहगनउ२१ निधान हे, चोपडा वंसइ राजतउ हे। म्हारी बहिनी हे बहिनी म्हारी बोलइ मधुरइ सादि हे, जाणे जल भरीयउ घन गाजतउ हे ॥४॥ For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 15 March-2020 SHRUTSAGAR म्हारी बहिनी हे बहिनी म्हारी खरतरगछं-कउ राउ हे, सोहलइ२२ गाउं हुं दिनि दिनइ हे। म्हारी बहिनी हे बहिनी म्हारी श्रीगुणविनय उलासि हे, ___ सांभलि श्रीगुरु इम भणइ हे ॥५॥ विजयसिंहसूरि गीत फली असाडी आसवे२, गुरु चाहन” की भई चासवे५ । पूज तणे चरणे जाइ लागुं, धरमलाभ द्यउ इतनउ मागुं ॥१॥ फली...आंकणी देखउ आवी हम गृहद्वारा, जानी सूझत ल्यउ आहारा ॥२॥ फली... धरमराग तुम्ह सेती मेरा, नवि भावइ मनमांहि अनेरा ॥३॥ फली... जिनसिंह साधु परिवारइ, वष(ख)ति पधारे महलि हमारइ ॥४॥ फली... पूज तणउ हुँ उवारणइ जाउं, गुण-विनय प्रभु मोतीयडे वधाउं ॥५॥ फली... शब्दकोश १. निरुपम अने अनंत एवी ४. गुणनो अंश ७. प्रसिद्ध १०. ललाट(?) १३. जीतनार १६. छीछरुं २. सुखशाताकारी ५. कोई पण ८. जन्म क्षणे ११. आपे १४. पुरुषार्थी १७.? ३. जीह्वा ६. युक्त ९. मोक्षमार्ग १२. अग्रेसर १५.? १८. हलकी जातनो घोडो (टायडूं घोडु) २१. सौभाग्यनो २४. प्रेम २७. ओवारणा १९. पापरूपी तापनो नाश करनार | २०. शोभ्यु २२.? २३.? २५.? २६. साथे For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 16 मार्च-२०२० पद्मराज पाठक कृत १४ गुणठाणास्तवन डॉ. शीतलबेन शाह कृति परिचय ____१४ गुणस्थानक गर्भित आदिजिन स्तवनारूप प्रस्तुत कृतिमा उपाध्याय श्रीपुण्यसागरजीना शिष्य पाठक श्रीपद्मराजजी ए मारुगुर्जर भाषामां २१ गाथा अंतर्गत १४ गुणस्थानक- स्वरुप दर्शाव्यु छे। जीव पहेले गुणस्थानकथी चौदमे गुणस्थानके पहोंचे त्यां सुधीनो संपूर्ण विकासक्रम ढूंकमां रजू करेल छ । कर्मग्रंथना कठिन पदार्थोने ढूंकमां अने सरळताथी आ स्तवनमां समजावेल छे। प्रथम गाथामां प्रथम तीर्थंकर श्रीऋषभदेवने प्रणाम करी मंगलाचरण करीने द्वितीय अने तृतीय गाथामां १४ गुणस्थानकना नाम आपेल छे। त्यारबाद चौदे गुणस्थानकमां रहेल जीवना लक्षणो तथा क्या गुणस्थानके केटलो समय जीव रहे छे, ते दर्शावेल छे। पहेले गुणस्थानके रहेल जीव मदिरा पीधेल जीवनी जेम सुधबुध वगरनो होय छे, जेथी कुदेव, कुगुरु अने कुधर्मनी श्रद्धा करतो अनंतपुद्गल परावर्त्तकाळ भ्रमण करे छे। बीजं अने त्रीजु गुणस्थानक उपशमश्रेणीथी पडता आवे छे, बीजा गुणस्थानके जीव १ समय अने ६ आवलिका तथा त्रीजे अंतरमुहूर्त होय छे । बीजा-अप्रत्याख्यानी कषायना उदयमां जीव चौथे गुणस्थानके सम्यक्त्वने धारण करे छ। सम, संवेग, निर्वेद, आस्तिक्य अने करुणाने धारण करे छे। आ गुणस्थानकनी स्थिति साधिक ३३ सागरोपमनी छे। पांचमां गुणठाणे पूर्वक्रोडदेशोन समय उत्कृष्ट स्थिति छे, जेमां जीव देशविरति धर्मने पाळे छे । त्यारबाद छठे गुणठाणे आवेल जीवने संज्वलन कसायनो तीव्र उदय होवाथी मुनि प्रमादने सेवे छ । सातमे गुणस्थानक वाळाने संज्वलन कसायनो उदय मंद थवाथी जीव धर्मध्यानमां स्थिर थाय छ। आठमे श्रेणी माडे छे, उपशमश्रेणि वाळो जीव नवमे क्रोध, मान, माया तथा दशमे लोभ कषायने उपशमावी अग्यारमे थी अहंनो उदय थवाथी मिथ्यात्वे आवी अनंत काळ भमे छे । जे जीव १०मे थी १२मे आवे छे, ते अनुक्रमे चार कर्मनो नाश करी केवळज्ञानने पामे छ । त्यो उत्कृष्टथी देशोनपूर्वक्रोड वर्ष रही पांच ह्रस्वाक्षर बोलाय तेटला समयमां शैलेशीकरण करी अन्य चार घातीकर्मनो नाश करी चौदमे गुणस्थानके पहोंचे छ । अनंतकाळ त्यां सुख भोगवे छ। For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 17 SHRUTSAGAR March-2020 कर्ता परिचय प्रस्तुत कृतिना कर्ता खरतरगच्छना श्रीपद्मराज छे । आ कृतिनी प्रशस्तिमा मात्र एमना गुरुनु नाम प्राप्त थाय छे । पण तेमना द्वारा रचायेल अन्य कृतिओमां प्राप्त थती विगत प्रमाणे तेओ श्री १६मी सदीमां खरतरगच्छना गच्छाधिपति श्रीजिनसिंहसूरिना हस्ते दीक्षित थयेल श्रीपुण्यसागरना शिष्य हता। कर्ता द्वारा रचित अन्य कृतिओ आ प्रमाणे छे- १) पार्श्वजिन स्तुति २४ महादंडक व्याख्या वि.सं. १६६५, २) सनत्कुमार चक्रवर्ति रास वि.सं. १६५९, ३) अभयकुमार रास वि.सं. १६५०, ४) २४ जिन स्तवन-९ बोलयुक्त वि.सं. १६६७, ५) सीमंधरजिन स्तवन, ६) क्षुल्लककुमार सज्झाय, ७) पार्श्वजिन स्तवन। उपर्युक्त कृतिओमां प्राप्त थता रचनास्थलना आधारे एम अनुमान करी शकाय के कर्ताश्रीनो विहार जेसलमेर अने हालमां पाकिस्तानमां स्थित मुलताण गाम बाजु अर्थात् पश्चिमी भारतमां हशे। प्रत परिचय ____संपादनार्थे प्रस्तुत कृतिनी प्रत आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबामां क्रमांक-३१३८८ उपर उपलब्ध छ । १८मी सदीनी अनुमानित आ प्रतनी लंबाई-२५ से.मी. अने पहोळाइ-११.५० से.मी. छ । एक पत्रमा १८ पंक्तिओ अने दरेक पंक्तिमां अक्षरनी संख्या ४६ छे । सुवाच्य अक्षरमां लखायेल आ प्रतमां गाथाक्रमांक गेरु लाल रंगथी अंकित करेल छे। हंडी तथा पार्श्वरेखा-२ काळा रंगथी छ। प्रतिलेखक विषे कोई माहिती प्राप्त थई नथी। १४ गुणठाणा स्तवन GO॥ जगि पसरंत अणंतकंति गुणगणमणिरोहण, रिसहजिणेसर चरणकमल पणमी मणमोहण । श्रुत अणुसारइ कहिस चऊद गुणठाण विचार, जेण अनुक्रमि लहइ जीव भवसायर पार पहिलउ गुणठाणउ मिथ्यात १ बीजउ सासादन २, त्रीजउ मिश्र ३ चउत्थ तेम अविरति समकितगुण ४ । ॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥२॥ ॥३॥ ॥४॥ श्रुतसागर ___18 मार्च-२०२० देसविरति पंचम ५ प्रमत्त मुनि छट्ठउ ६, । सत्तम अप्रमत्त संज्जत्त ७ अपुव्वकरणाभिध अट्ठम अनवृत नवमउ ९ दशम सुहुमसंपराय भणिज्जइ १०, इग्यारमउ उवसंत मोह ११ गुणठाण सुणिज्जइ। षीणमोह बारमउ संयोग १२ केवलगुणठाणउ १३, तेरसमउ चऊदम अयोग १४ अनुक्रमि वखाणउ आदिमगुणथी तक सरूप जिणमत इम कहियइ, कुगुरु कुदेव कुधर्म तत्व करि जिहां सद्दहियइ। मद्यपान वसि जीव जेम हित अहित न जाणइ, तेम न बूझइ तत्व वात मिथ्यात प्रमाणइ ते मिथ्यात अभव्यमांहि अन्नादि-अनंत, भव्य मझारि अनादि-संत पभणइ अरिहंत, इम अनंत पुद्गल परिट्ट पहिलइ गुणठाणइ, वसि बीजइ गुणठाण लहइ निरुपम सुह झाणइ ॥ ढाल॥ जीव अन्नादि मिथ्यात करमह उपसमि, उपसमकित समकित लहइ ए, तिहाथी पढम कषाय वसि करि, पडवज्जओ जां मिथ्यात न संग्रहइ ए। ता सासादन होइ इक समयादिक, षट् आवलिका थिति भजइ ए, हिव त्रीजउ गुणठाण मिश्र जिहां, भाव मिश्र मोह वसि संपजइ ए अंतरमहूरत सीम सिव जिण, सासणि हरिहर जिण सरिखा गिणइ ए, तिहाथी मिथ्यादृष्टि अथवा समकितदृष्टि हवइ श्रुतधर भणइ ए, अविरति समकितदृष्टि चउथउ थानकि, तसु सुरूप सुणि इण परइ ए, बीजी जेह कषाय तेह तणइ, ओदइ विरत रहित समकित धरइ ए जिणवर भाषित भाव सूषम(सूक्ष्म), बादर ते निस्संकित सरदहइ ए, करुणी तिहां संवेग उपसम निर्वेद, आस्तिकभाव हियइ वहइ ए। देव सुगुरु श्रीसंघभगति सुदृढचित्त, जिनशासन उन्नति करइ ए, स्थिति सागर तेत्रीस साधिक, एहनी उत्कृष्टी जिन उच्चरइ ए ॥५॥ ॥६॥ ॥७॥ ॥८॥ For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir March-2020 ॥९॥ ॥१०॥ SHRUTSAGAR पंचमि हिव गुणठाण तईय कषायनइ, उदयविरति देसति वहइ ए, पालइ श्रावकधर्म षट्कर्म बारहव्रत, प्रतिमादिक साचवइ ए, पूर्वकोडिदेसूण गुरुई थिति, इहां छठउ थानक इम लहइ ए, मुनि संजलन कषाय तीव्रउदय वसि, पणि प्रमाद परवसि रहइ ए ॥ढाल ॥ हिव गुणठाणाउ सत्तम अप्रमति यति उत्तम निरुपम धर्मध्यान निश्चल धरइ ए। तिहां संजलन कषायनइ उदय मंद संपन्नइं तनु मन्नई मुनि प्रमाद सवि परिहरइ ए क्र(कू)ड कपट सवि छंडइ ए उपसम दम गुण मंडइ ए खंडइ ए अतीचार चारित तणा ए। हिव अठम गुणठाणइ ए चडतइ सुभपरिणामइ ए पामइ ए गुण अपुव्व मुनिवर घणा ए औपसम क्षपक सुहामणी श्रेणि आढवइ ते मुणी अतिघणी मनविसुद्धि तिहां निरमली ए। नवमइ गुणथानक जणइ क्रोध मान माया हणइ निरजणइ कर्म अनेक तिहां वली ए गुणथानक दशमउ इम शत्रु मित्र तृण मण सम अंतिम लोभ समइ अणुनी ठवइ ए। हिव गुणठाण इग्यारमइ मोहप्रकृति सवि उपसमइ तिण समइ भव पूरइ अहमिंद हुवइ ए अह परिणाम तणइ वसइ मिथ्यागुणथानक वसइ तउ तिसइ उणउ अर्द्धपुद्गल भमइ ए। जउ दशमाथी बारमइ गुणथानकि आवइ किमइ अनुक्रमइ च्यारकरम ते नीगमइ ए ॥११॥ ॥१२॥ ॥१३॥ ॥१४॥ For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 20 मार्च-२०२० ॥१५॥ ॥१६॥ ॥१७॥ ॥१८॥ ॥ दूहा ॥ छठाथी बारम लगइ, सा तजि के गुणठाण। प्रत्येकइ तिहां जाण इक, अंतरमहूरत माण सुकलध्यान चउभेय, तसु दुन्निभेय अवसाण। तेरम गुणठाणा धुरइ, पामइ केवलज्ञान ताम सुरासुर करइ तासु, उच्छव अतिसुंदर, उत्कृष्टइ देसूणकोडि-पूरवथिति जिणवर । हिव लघु पण अक्षर, उचार चउदगुणठाणइ, करि सैलेसीकरणयोग, रूंधइ सिय झाणइं च्यारकरम चूरी करीय, न्यानादिक गुणवंत । अजर अमर पद ते लहइ, जिहां छइ सुख अनंत अविरति सासादन मिथ्यात-गुण लीधइ परभवइं, जीव मरइ न लहइ संयोग, बारमइ मिश्रवइ। देव नरयगतिमांहि च्यार, गुणथानकि आदमि, तिरियमांहि पंचेव पढम नरमांहि सवि तिम संखेपइ करिमइ कह्या ए, ए गुणठाण असेष । श्रुतसागरथी जाणज्यो, एहना अरथ विशेष इम सगुणसुंदर नितु पुरंदर, रिसहजिणवर संथुण्यउ, गुणठाण चउदविचार लेसइ, तासु उपदेसइ भण्यउ। उवझायवर श्रीपुण्यसागर, सुगुरु सुपसायइ मुदा, वीनव्यउ पाठक पद्मराजइ, पूरवउ सुख संपदा ॥ इति १४ गुणठाणा स्तवन ॥ ॥१९॥ ॥२०॥ ॥२१॥ For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR March-2020 पार्श्वचन्द्रसूरि रचित शुद्धश्रद्धान स्वाध्याय हेतलबेन नाणावटी कृति परिचय प्रस्तुत कृति मारुगुर्जर भाषामां रयायेल छ । प्रथम गाथामां कर्ताए २४ तीर्थंकरोने, २० विहरमानने, २ क्रोड हाल विचरता साधुने वंदन करी मंगलाचरण करेल छ । त्यारबाद ३६ गाथाओमां प्रभु वीरना निर्वाण पछी सामान्य जनने मुंझवी देता जे जे मिथ्या मतो उभा थया ते ते मतोने अनुसरीने थतां नुकशाननी वेदना कर्ताश्री प्रगट करे छे । एक कहे जिनपूजा ज करो, तो बीजा कहे मल्लि, नेमि अने वीरनी प्रतिमा घरे न लवाय, एक कहे स्त्री पूजा न करी शके, तो बीजा कहे प्रभु पासे इच्छित फल मांगो, कोइक कहे चामुंडाने आराधो । आम अनेक मत-मतांतरोनो उल्लेख करवा पूर्वक शास्त्रसंदर्भ सह मार्गदर्शन आपवानो कर्ताए प्रयास कर्यो छे। सद्बोध देतां जणाव्यु के कुगुरुथी तमे बचो। खोटी वातोमां न आवो। सुगुरुने अनुसरी जिनवचनना श्रुतने साची रीते जाणीने आराधना करो अने बहुश्रुत बनो। रागीना नहीं वीतरागना वचन पर श्रद्धा करो। वीतराग धर्मथी ज जीव समकितनो अधिकारी बने छे। अहीं ध्यान राखq घटे के आ पैकीनी अमुक प्ररूपणाओ एमना गच्छ सम्मत ज होय। आ कृतिने जैनदर्शनमंडनछत्रीसी, शुद्धश्रद्धा सज्झाय, भाषाछत्रीसी, गुरुछत्रीसी आदि अन्य नामोथी पण ओळखवामां आवे छे। कर्ता परिचय प्रस्तुत कृतिना कर्ता श्री पार्श्वचंद्रसूरि छ। जे बृहन्नागपुरीय तपागच्छना आचार्य पुण्यरत्नसूरि तेमना शिष्य साधुरत्नसूरिना शिष्य छ । तेमनो समयकाळ १६मी सदीनो उत्तरार्ध अने १७मी सदीनो पूर्वार्ध रहेल छ । आचार्य श्री कैलासागरसूरि ज्ञानमंदिरमां संग्रहित सूचनाओना आधारे तेओनी अन्य कृतिओमां खंधकमुनिचरित्र शतक, साधुगुणरससमुच्चय रास, आगमिक प्रश्नोत्तरी, महावीरजिन स्तवन, विमलजिन स्तवन, सूत्रकृतांगसूत्र तथा लघुक्षेत्रसमास पर बालावबोध, प्रतिमास्थापन बावनी विगेरे लगभग १४२ जेटली रचनाओ प्राप्त थाय छे। तेमना शिष्य श्रीसमरचंद्रसरि ए करेल पण घणी रचनाओ प्राप्त थाय छे। जैन गूर्जर कविओमां प्राप्त थती माहिती प्रमाणे आ ए ज पार्श्वचंद्रसूरि छे के जेमणे १५७२मां जुदो गच्छ काढ्यो, जे पार्श्वचंद्रसूरि गच्छना नामे प्रसिद्ध थयो। कृतिओमां क्यांक प्राप्त थता रचनास्थळना आधारे तेमनो विहार खंभातनी आजुबाजुमां थयेल हशे एम कही शकाय। For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर मार्च-२०२० जैनगच्छमत प्रबंधमां प्राप्त थती माहितीना आधारे श्रीपार्श्वचंद्रसूरि हमीरपुर नगरवासी प्रागवंशीय, वेल्हग शाह पिता, विमलादे माता, जन्म वि.सं. १५३७मां, दीक्षा सं. १५४६मां, सं. १५५४मां उपाध्याय पद, सं. १५६५मां आचार्य पद, सं. १५९९ मां युगप्रधान पद, सं. १६१२मां जोधपुरमा स्वर्गे गया। आ आचार्य परम त्यागी, वैरागी, निपँथ चूडामणि थया, तेओए मरूधराधीश रावगांगजी तथा युवराज मालदेवजीने प्रबोध्या हता, तेमज मुणोत गोत्रीय, क्षत्रिय रजपूतोना २२०० घर प्रतिबोधी ओशवाल श्रावको कर्या, तेमज गुजरात उनावा गामे वैष्णव, सोनी, वाणीयाने चमत्कार देखाडी श्रावको कर्या ते हजु मोजुद छ । वळी आ आचार्ये पोतानी अद्भुत शक्ति वडे बांठीया दफतरी, रामपुरीया, वेगाणी, राखेत्रा, तातीड, लोढा, छोरिया, नवलखा, खटोल, गोगड, बारडीया, दुगड, आंचलीया, भणशाली, श्रीश्रीमाल भंडारी, टेटीया, चोपरी, सोनी, घोडावत संघवी, श्रेष्ठी, लोंकड वगेरे अनेक गामोना श्रावको माहेश्वरी थई गयेला तेओने प्रतिबोधी श्रावको बनाव्या। संस्कृत प्राकृत भाषाना प्रवीण होवाथी अनेक ग्रंथो रच्या छे। तेमज मारुगुर्जर भाषामां पण घणा ग्रंथो रच्या छे। एमना शिष्यप्रवर पंडित श्री विजयदेवसूरि थया अने तेमना शिष्य श्रीब्रह्मर्षि थया के जेओए दशाश्रुतस्कंध सूत्रवृत्ति जंबूद्वीपण्णत्ति वृत्ति, पाखीसूत्र वृत्ति एम अनेक ग्रंथो रच्या छे। आ समयमां कडुआ शाहे साधुपणु उत्थापीने कटुक मत चलाव्यो। सं.१६५२ मां पोतानी अद्भुत शक्ति साथे गुर्जरभूमिमां विचरी आचार्यश्रीए दशालाणिया, वोरा, चीकाणी, गांधी, सिरिया, संघवी, कपाशी, मठीया, दोशी विगेरे अनेक गोत्रना बहु मिथ्या धर्म करनारा जीवोने उपदेश आपी श्रावको बनाव्या हता। प्रत परिचय संपादनार्थे प्रस्तुत कृतिनी प्रत आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबामांथी प्राप्त थयेल छे । तेनो प्रत क्रमांक ३४२११ छे, अनुमानित १८मी सदीनी छे । आ प्रतनी लंबाई-२५ से.मी. अने पहोळाइ-११ से.मी. छे । दरेक पत्रमा १९ पंक्तिओ अने दरेक पंक्तिमा ५० अक्षरो छ । सुवाच्य अक्षरमां रचायेल आ प्रत मध्यफुल्लिका युक्त छ। प्रतमां गाथा क्रमांक गेरुलालरंगथी अंकित करेल छे तथा प्रतना बंने छेडे काळारंगथी २-२ पार्श्वरेखा दोरेल छ । प्रतमा प्रतिलेखन पुष्पिका प्राप्त थती न होवाथी लहिया विषे कोईपण माहिती प्राप्त थई नथी। आ कृतिना संपादनमां डॉ. शीतलबेन शाहनो सुन्दर सहयोग अने मार्गदर्शन प्राप्त थयुं छे, ते बदल तेमनो खूब-खूब आभार । For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 23 March-2020 ॥१॥ ॥२॥ ॥३॥ ॥४॥ ॥५॥ शुद्धश्रद्धान स्वाध्याय ॥O॥ रिसह पमुह जिणवर चउवीस, विहरमान तीर्थंकर वीस। विहरइ दुनि कोडि केवली, प्रहइ उठी वांदु मनि रली साधु शिरोमणि बिसहसकोडि, ते नितु प्रणमुंबे करजोडि। कर्मभूमिका पनरहमाहिं, जघन्य पदि बोल्यां जगमाहि तसु पयकमल भमर जिम लिए, दुसमकालिई अतिसय हीण । कर्मयोगि भरतइं अवतरिउ, बहुमत देखी संशय भरिउ तिणि संशयनु भंजणहार, एक अरिहंतजी जगदाधार । हिवडां तेहनइ विरहइ करी, असंयती पूजा विस्तरी झाझा थया वरिससई सात, विरला जाणइ प्रवचन वात । कीधा कल्पित ग्रंथ अनेक, प्रवचन प्रकरण भाषइ एक श्री श्रुत ढांकी मूंकिउ दरि, प्रकरण कहइ उगंतइ सूरि । द्रव्य त देव धर्म गुरु कहा, भोलइ भावि तिणइ भूमि ग्रह्या एकठा मिल्या चउरासी थया, माहोमाहि सहू जूव जूआ। निज निज चैत्य संघ मन वसिउ, इह किम लाभइ सासन किसिउ पडिउ लोक गाडरी प्रवाहि, रासिबद्ध जिम ताणिउ जाइ। पर दरसणि जे दीठउं बहु, नाम फेरि ते मांडिउ सहू एक कहइ प्रतिमा एकली, घरि पूजंती न होइ भली। मल्लि नेमि श्री वीर जिणंद, जिणइ दीठइ होइ परमाणंद तिहनी प्रतिमा घरि नाणीइ, इम कहइतां गुरु किम जाणीइ। एक कहइ स्त्री पूजइ नहीं, दो वइ पूजा आगमि कही एक जैन जोडावा गणइ, लाभ हाणि जिन पूजा भणइ । करइ प्रतिष्टा आपणइ हाथि, करइ यात्रा जल नीजई साथि मखइं जिनप्रति मानि पूजा कही, तिणि मुखि पुछ्या बोलइ नहीं। माहरी माइ अनइं वांझिणी, एह वात तिणइ साची गिणी ॥६॥ ॥७॥ ॥८॥ ॥९॥ ॥१०॥ ॥११॥ ॥१२॥ For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मार्च-२०२० ॥१३॥ ॥१४॥ ॥१५॥ ॥१६॥ ॥१७॥ ॥१८॥ श्रुतसागर बोलइ निज निज गुरु अवदात, छहइ कायनु जिह छइ घात। एक कहइ वरसाविउ मेह, रोग रहित कीधउ निज देह भुइ उपरि आण्या श्री पास, तउ तेहनी तिणइ पूरी आस। एहवा बोल अनाहुत कहइ, मुगंध लोक कांइ नवि लहइ आराधी एकइ चामुंड, तिणि जे कीधउ आतम दंड। तेह वातमइं किम वहवाइ, भालानइ तेह ज गुरु थाइ नदीमांहि पइसी सांधियउ, बल बाकुल सुर आराधियउ। तिहां जीव तणी हिंसा नहु गणइ, तेहनइ पुण गुरु गुरु मुखि भणइ एक कहइ बांधी वीजुली, अमावस्यानी पूनिम करी। वड ऊपाडि चलविउ साथि, जिन आशीस दीयइ जिननाथ इम कहतां हुइ आशातना, तिहनइ बोलइ प्रभावना। कणयरनी कंबा फेरवी, संगह तणी यात्रा कारवी ते साहमीना भोजन भणी, संघ तणइ मनी आरति घणी। तिणि मंत्रि बहु धृत आणियउ, तेणइ ते साचउ गुरु जाणियउ लोक कुगुरु धुतइ धुतीयउ, मिथ्यामति वाहण जोतिउ। कलपि ग्रंथ पुराणिय करी, वहइ मान खंधइ जूसरी राग दोष तिणि करिउ प्रमाद, पुण जे भाषइ ए विधिवाद । पंचम अंगि प्रगटउ हिउ, तेय भाव तेणि नवि लहिउ विण आलोइ काल करंति, ते अणगार विराधक हुंति । विधिवादई आलोयण नहीं, एह मर्म ते न लहइ सही एहवा बोल कहीइ केतला, बहु विरुद्ध दीसइ जेतला। पुण देखाड्या वानी मात्र, थोडइ बहु जाणइ मुंनि पात्र दशमु अछेरु इम गहगहइ, विरलु कोइ मारग लहइ। इणि अवसरि पुण गुरु दोहिला, साधु किम लाभइ सोहिला जगनाथ तीरथ जगमगइ, वरिस सहस एकवीसह लगइ। ते छइ प्रवचननइ आधारि, गुरुसु साधु तेहनइ अनुसारि ॥१९॥ ॥२०॥ ॥२१॥ ॥२२॥ ॥२३॥ ॥२४॥ ॥२५॥ For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 25 March-2020 ॥२६॥ ॥२७॥ ॥२८॥ ॥२९॥ ॥३०॥ SHRUTSAGAR साचु भाषइं ते गुरु जाणि, जे पालइ ते सधु वखाणि। पालइ पणि साचुं नवि कहइ, विण समकित चारित किम लहइ सूधइ कहइ वइ दंसण सही, चारितनी तिहां भजना कही। इणइ करणि प्रवचन ओलखु, शिवपुरि जातां पुठी रखु दश पूरव लगइ श्रु(?) कहाइ, भिन्न विषइ तसु भजना थाइ। इस्यां वचन गुरु मुखि सांभली, प्रकरणसूत्र एकमति टली वली ये सुत्र सिद्धांतइ मिलइ, ते प्रकरण आगम सुं तुलइ। मिलतउं अणमिलतुं जे हुस्यइ, श्रु(श्रुत?) सांभली बहुश्रुत जाणस्यइ रागिई मति कल्पी बोलीयां, वीतराग वचने तोलीयां। असमंजस जइ को कहइ, डाहु होइ ते किम सद्हइ पणइ कारणि जिण भाषित सही, एहज मलि कांई बीजउ नहीं। तिहां छइ जीवाजीव विचार,एक एकना घणा प्रकार जे उपदेश अछइ निरवद्य, विधि वादिइं ते न लहइ सावद्य। धर्म अर्थ कामारथि सही, हिंसालव जिन वचनइ नहीं एह साखि श्री आचारंगि, अध्ययन चउथइ बोली रंगि। धर्म मूल समकित अधिकारि, ते जोई लेज्यो चतुर विचार श्री जिन छहइ काय हितकार, जगजीवन जगना आधार । सर्व त्रस-थावरना दुख लहइ, आप समाणी वेद न कहइ इसिउ कोइ जीव हणीइ नहीं, वाणि मधुरि जिणवरि कही। जे भाषइ तेहनइ अनुसारि, ते साचु उपदेश विचारि एह वचन साचां सदहइ, भवियण आगलि साचुं कहइ । तेह सहगुरुर्नु समरीस नम, पासचंद नितु करइ प्रणाम ॥ इति पासचंद्रकृता शुद्धश्रद्धान स्वाध्याय ॥ ॥३१॥ ॥३२॥ ॥३३॥ ॥३४॥ ॥३५॥ ॥३६॥ For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 26 श्रुतसागर मार्च-२०२० स्तुति-स्तोत्रादि-साहित्यमा क्रमिक परिवर्तन पुण्यविजयजी म.सा. (गतांकथी आगळ..) __भाषानी पसंदगी माटे पण आपणे जबरदस्त पलटो खाधी छे। वैदिक अने बौद्ध संस्कृतिना प्रभावने लीधे जैनधर्मने पोतानी प्रियतम प्राकृतभाषा जती करी तेना बदले संस्कृतभाषा अपनाववी पडी छे । छंद, अलंकार आदिनी पसंदगीमां पण लगभग एम ज बन्यु छे, अर्थात गाथा, वैतालीय आदि अमुक गण्या-गांठ्या छंद तेम ज अलंकारोने पसंद करनार जैन संस्कृतिने विध-विध छंद, अलंकार आदि स्वीकारवा पडया छ।' आ बधी वात मुख्यत्वे करीने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषामां गूंथायेल स्तुति-स्तोत्र साहित्यने लक्षीने थई । छेवटे आ बधायमांथी पलटो खाई गुजराती भाषा अने जुदा जुदा प्रकारनां राग-रागिणीनी पसंदगीमां मोटे भागे सहवासी प्रजा अने संप्रदायांतरनी असर घणी ज थई छे, ए आपणे ते ते कृतिओना प्रारंभमां आपेल चाल अथवा राह बतावनार कडी उपरथी समजी शकीए छीए। गुर्जर स्तुति-साहित्यना सर्जन पछी खास परिवर्तन ए थयु के चित्रविचित्र शब्दाडंबरगर्भित स्तुति-साहित्यना निर्माण समये ओसरी गयेल भक्तिरस केटलेक अंशे पाछे नवे अवतारे आव्यो। उपसंहार प्रस्तुत लेखमां, आपणा विशाळ स्तुति-साहित्य उपर देश, काळ, धर्म, प्रजानी संस्कृति आदिनी केटली अने केवी असर थई छे ए ढूंकमां जणाववामां आव्यु छे । ए उपरथी ए साहित्यना प्रणेताओ उपर तेते देश, काळ आदिनी असर केटला प्रमाणमां पडी हशे एनुं अनुमान आपणे दोरी शकीशुं । जगतनी महानमां महान गणाती विभूतिओ पण पोताना युगनी असरथी मुक्त रही शकती नथी। आचार्य सिद्धसेन, आचार्य मल्लवादी, आचार्य जिनभद्र, आचार्य हरिभद्र, आचार्य हेमचंद्र, श्री यशोविजयोपाध्याय आदि जेवा समर्थ पुरुषोना ग्रंथ- सूक्ष्म निरीक्षण करीशुं तो जणाशे के ए महापुरुषो पण पोताना देश-काळनी असरथी मुक्त रही शक्या नथी, एटलुं ज नहि, पण प्रसंग आवतां भिन्न भिन्न प्रकारनी लागणीओना आवेशमां पण आवी गया छ। (संपूर्ण) ["श्री जैन धर्म प्रकाश, सुवर्ण महोत्सव विशेषांक, चैत्र, सं. १९९१] 1. इस प्रकार के मंतव्य लेखक के व्यक्तिगत हैं, इससे संपादक सहमत है ऐसा न समझे. For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR March-2020 प्राचीन पाण्डुलिपियों कीसंरक्षण विधि राहुल आर. त्रिवेदी (गतांक से जारी) जीव-जन्तुओं को नियंत्रित करने के लिए रासायनिक प्रक्रिया पाण्डुलिपियों का भौतिक संरक्षण उनका मौलिक उपचार है। हम तापमान और आर्द्रता को स्थिर स्तर पर रखने के लिए पर्यावरण-नियंत्रित मजबूत कमरे में वस्तुओं को संग्रहित करते हैं। हल्के नुकसान से बचने और कीटों को दूर रखने के लिए प्रायः सभी सामग्रियों को बक्से, फ़ोल्डर और रैपर में रखा जाता है। अधिकांश सामग्रियों के लिए, एसिड-मुक्त आवरण पेपर का उपयोग किया जाता है, जिससे एसिड रसायनों द्वारा सामग्री को होनेवाले संदूषण से बचा जा सके। कागज पाण्डुलिपियों में पिन, पेपरक्लिप्स और स्टेपल को निकाल देना चाहिए। आवश्यक हो तो स्टेपल हेतु पीतल के पेपरक्लिप्स का उपयोग होना चाहिए, जिससे जंग नहीं लगता है। जीव जन्तुओं को नियंत्रित करने के लिए उनके आने-जाने के प्रवेश मार्गों को बंद कर देना चाहिए। खिडकियों, दरवाजों तथा दीवारों में जहाँ भी दरार हो उसे बंद कर देना चाहिए। जीव-जन्तुओं को दूर करने के लिए योग्य उपाय करने चाहिए। जन्तू न आ सकें, ऐसी दवाईयों का उपयोग करना चाहिए। इसमें इन केमिकलों का उपयोग किया जा सकता है - १) फिनाइल गोली (Naphthalene balls), २) जन्तु निरोधक चौक (Insects Repellents chalk), ३) ओडोनिल जेल (Odonile gel), ४) पेरा डाई-क्लोरो बेन्ज़ीन (Para Di Chloro Benzene) इन कीट प्रतिरोधकों से कीटाणु हमेशा दूर रहते हैं। किन्तु इन दवाईयों को हर तीन महीने में बदलते रहना है और उस समय स्टोरेज स्थान की सफाई भी अनिवार्य रूप से करनी चाहिए। चूहे भी हस्तप्रतों को ज्यादा नुकसान करते हैं। इसके लिए पिंजरा(Traps) रखना जरूरी है। (क्रमशः) For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 28 मार्च-२०२० पुस्तक समीक्षा रामप्रकाश झा पुस्तक नाम : समयसार प्रकरणम्, कर्ता: देवानंदसूरि, टीकाकार : देवानंदसूरि, अनुवादक : मुनि कर्पूरविजयजी, प्रकाशक : शेठश्री भेरुलाल कनैयालाल कोठारी रीलिजीयस ट्रस्ट 'चंदनबाळा' वालकेश्वर, मुंबई, प्रकाशन वर्ष : वि.सं. २०७४, मूल संशोधक : चतुरविजयजी, प्रेरकः : मुक्तिवल्लभसूरि, संपादक-संशोधक : वज्रसेनविजयजी, पृष्ठ : ११+१४६=१५७, भाषा : प्राकृत+संस्कृत+गुजराती, विषय : जीवादि तत्त्व, सम्यक् दर्शन तथा आराधना-विराधना फल समयसार प्रकरण में श्री देवानंदसूरि ने जीव अजीवादि नौ तत्त्वों का विशद विवेचन प्राकृत भाषा में पद्यबद्ध रूप में प्रस्तुत किया है। इस ग्रन्थ में कुल १० अध्याय हैं। प्रारम्भ के सात अध्यायों में जीव-अजीवादि नौ तत्त्व तथा अन्त के तीन अध्यायों में ज्ञान-दर्शन-चारित्र का विवेचन व व्रतो की आराधना-विराधना का फल कहा गया है। बंधतत्त्व में पुण्य और पापतत्त्व का समावेश कर लेने से नौ की जगह सात तत्त्व कहे गए हैं। आठ प्रकार के कर्मों के बंध हेतुओं का विवरण, संवर तत्त्व के ५७ भेदों का विवरण, बारह प्रकार के तप का विवरण और मोक्षतत्त्व में एक समय में कितने सिद्ध होते हैं, इसका वर्णन किया गया है। इस ग्रन्थ के ऊपर श्री देवानंदसूरि ने स्वयं संस्कृत भाषा में टीका की रचना की है, जिसमें ग्रन्थगत सभी तत्त्वों का विस्तार से विवेचन किया है। नौ तत्त्वों के विषय में विस्तार से ज्ञान प्राप्त करने के इच्छुक मुमुक्षु जीवों हेतु यह ग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार वर्गों में मोक्ष को ही सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। समस्त दुःखपरंपरारहित, जन्म, जरा और मृत्यु से मुक्त अनन्त सुखपूर्ण मोक्ष की ही प्रशंसा शास्त्रकार करते हैं। ऐसे मोक्ष की प्राप्ति हेतु जीव को सम्यग् ज्ञान, दर्शन और चारित्र का सम्पूर्ण रूप से सेवन करना चाहिए। ___ग्रन्थ के प्रथम अध्याय में सिद्ध और संसारी दो प्रकार के जीवों की व्याख्या की गई है। गति के अनुसार भव्य, अभव्य और जातिभव्य तीन प्रकार के जीव तथा उत्पत्ति के अनुसार अंडज, पोतज आदि आठ प्रकार के जीवों का वर्णन करते हुए उन जीवों की भवस्थिति का वर्णन किया गया है। दूसरे अध्याय में पाँच प्रकार के अजीवों For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 29 SHRUTSAGAR March-2020 का वर्णन किया गया है। तीसरे अध्याय में शुभाशुभ कर्मों के उपार्जन में कारणरूप ४२ प्रकार के आस्रवों का वर्णन किया गया है। चौथे अध्याय में मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय तथा मन, वचन और काया के योगरूप बन्ध हेतुओं के द्वारा जीव का कर्मपुद्गलों के साथ जो सम्बन्ध होता है, उसका वर्णन किया गया है। पाँचवें अध्याय में ५७ प्रकार के संवरों का वर्णन किया गया है। छठे अध्याय में सकाम और अकाम दो प्रकार की निर्जरा का वर्णन किया गया है। सातवें अध्याय में मोक्षतत्त्व, आठवें अध्याय में सम्यक् ज्ञान और सम्यक् दर्शन नौवें अध्याय में सम्यक् चारित्र तथा दसवें अध्याय में आराधना और विराधना के फलों का वर्णन किया गया है। इस ग्रन्थ के अन्त में पूज्य मुनिराज श्री कर्पूरविजयजी के द्वारा किए गए गुजराती भाषान्तर को भी प्रकाशित किया गया है, जो वि. १९७४ में प्रकाशित हो चुका है। प्रस्तुत ग्रंथ का पूर्व प्रकाशन संपादक मुनि श्री चतुरविजयजी द्वारा जैन आत्मानंद सभा भावनगर से हुआ था। यह ग्रंथ वर्तमान में लगभग अप्राप्य है। मूल, टीका और भाषान्तर एक ही पुस्तक में प्रकाशित होने से यह पुस्तक अध्येताओं के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी। लगभग सौ वर्ष पूर्व हुए इस भाषान्तर को यथावत् ही रखा गया है, मात्र आधुनिक भाषा के अनुसार उसमें किंचित् परिवर्तन किया गया है। टिप्पण आदि को परिशिष्ट के रूप में अन्त में रखा गया है। पूर्व सम्पादन में छद्मस्थतावश रह गई सामान्य अशुद्धियों को आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर, कोबा में संग्रहित प्रत सं. ५५९५६ के आधार पर पाठशुद्धि की गई है, जिससे इस प्रकाशन की उपयोगिता और भी बढ़ जाती है। ___ चार अनुयोगों के पारंगत विद्वान दिगंबराचार्य श्री कुंदकुंदाचार्यजी ने भी समयसार नाम से एक अन्य कृति की रचना की है। जिसमें सर्वसंग का परित्याग कर श्रुत का अभ्यास करनेवाले और जो मोक्ष के अभिलाषी हैं, ऐसे मुनियों के मन में जो सैद्धान्तिक शंका-कुशंकाएँ रह गई हों, उन्हें दूर करने का सुन्दर प्रयास किया गया है। इस ग्रन्थ में जीवाजीवादि नौ तत्त्वों का वर्णन करते हुए निश्चय नय व्यवहार नय आदि के विषय में भी विस्तार से चर्चा की गई है। परन्तु दोनों ग्रन्थों का विषयवस्तु व उद्देश्य समान होने के बावजूद इन दोनों ग्रन्थों के बीच परस्पर कोई सम्बन्ध नहीं है। (अनुसंधान पृष्ठ-३४ पर) For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 30 श्रुतसागर मार्च-२०२० समाचारसार जिनशासन के महान प्रभावक, राष्ट्रसन्त श्रद्धेय गुरुदेव पूज्य आचार्य श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा की निश्रा में श्री पारसमणी श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैनसंघ में अंजलशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा की पावन निश्रा में दि.७-२-२०२० को पारसमणी श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैनसंघ, घाटलोडिया, अहमदाबाद में श्री शीतलनाथस्वामी, श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ तथा श्री मुनिसुव्रतस्वामी आदि जिनबिम्बों की अंजलशलाका प्रतिष्ठा के प्रसंग पर नवाहिका महोत्सव का आयोजन किया गया। इस प्रसंग में पूज्य आचार्यदेव श्री अमृतसागरसूरिजी म. सा., आचार्य श्री अरुणोदयसागरसूरिजी म. सा. पूज्य आचार्य श्री हेमचन्द्रसागरसूरिजी म. सा., पूज्य आचार्य श्री अजयसागरसूरिजी म.सा., पूज्य गणिवर्य श्री प्रशान्तसागरजी म. सा., श्रमण भगवन्त तथा योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराजा की समुदायवर्तिनी व अन्य साध्वीजी भगवन्तों की भव्य निश्रा में प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। ___ नवदिवसीय महोत्सव के प्रारंभ में सर्वप्रथम कुम्भस्थापना, दीपक स्थापना, सोलह विद्यादेवी पूजन, लघु सिद्धचक्र पूजन तथा वीसस्थानक पूजन किया गया। उसके बाद च्यवन कल्याणक विधान के अन्तर्गत माता-पिता स्थापना, इन्द्र-इन्द्राणी स्थापना तथा धर्माचार्य की स्थापना की गई। उसके बाद राजदरबार का मंचन, चौदह स्वप्न का फलकथन, जन्मकल्याणक, अठारह अभिषेक तथा मंगलमूर्ति की प्रतिष्ठा की गई, छप्पन दिक्कमारी महोत्सव किया गया। अगले दिन प्रियंवदा दासी के द्वारा बधाई, प्रभुजी का पाठशाला गमन तथा विवाह, राज्याभिषेक, नौ लोकान्तिक देवों की विनंती, देवीपट्ट पूजन तथा दीक्षा कल्याणक के बाद प्रभुजी का प्रथम दर्शन किया गया। उसके बाद केवलज्ञान कल्याणक का आयोजन किया गया, फिर प्रभु की प्रथम देशना तथा १०८ अभिषेक किया गया। रात्रि ८:०० बजे पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. की आचार्यपदवी के अनुमोदनार्थ ३६ से अधिक विविध वाद्यों के साथ सुप्रसिद्ध संगीतकारों के द्वारा प्रभुभक्ति की गई। इस अवसर पर गुरुपूजन, ध्वजदण्ड, कलश, प्रतिष्ठा देशना तथा उपस्थित सभी साधु-साध्वीजी भगवन्तों को काम्बली का चढ़ावा भी किया गया। For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 31 March-2020 मूलनायक परमात्मा की प्रतिष्ठा तथा ध्वजा के लाभार्थी शाह नरेन्द्रभाई विमलभाई घडियाली थे तथा कांबली का लाभ श्रीमती दीपिकाबेन दिलीपभाई शाह परिवार के द्वारा लिया गया, जो पूज्यश्री के अनन्य भक्त हैं । संघ व ट्रस्टमंडल के द्वारा उनकी भूरि-भूरि अनुमोदना की गई। नौ दिवसीय इस कार्यक्रम में राष्ट्रसंत पूज्यश्री की पावन प्रेरणा से जीवदया, साधर्मिक भक्ति, नूतन उपाश्रय के निर्माण हेतु श्रीसंघ के श्रावकों के द्वारा स्वेच्छा से प्रचुर धनराशि का योगदान किया गया । राष्ट्रसन्त पूज्यश्री के पदार्पण श्रीसंघ के लिए परम सौभाग्य की बात थी । यहाँ यह उल्लेखनीय है कि संघ के अध्यक्ष हसमुखभाई व नृपलभाई शाह के कथनानुसार श्रीसंघ में नौ दिवसीय स्वामिवात्सल्य का यह आयोजन वास्तव में अनुमोदनीय व प्रसंशनीय बना रहा । राष्ट्रसन्त पूज्यश्री ने अपने प्रवचन सभा को संबोधित करते हुए कहा कि मुझे यहाँ आकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई, संघ में परस्पर की आत्मीयता यूं ही बनी रहे, प्रभु कृपा से आनन्द मंगल हो, इसी शुभ कामना पूर्वक मंगल आशीर्वाद प्रदान करता हूँ। गच्छाधिपति आचार्यदेव श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी एवं परमात्म भक्तिरसिक आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी की स्वप्नभूमि महेसाणा श्री सीमन्धरस्वामी महातीर्थ में प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न सीमन्धरस्वामी जिनमन्दिर परिसर के स्नात्रमंडप जिनालय में बिराजित प्रभु श्री कुंथुनाथस्वामी, नूतन परमात्मा श्री सीमन्धरस्वामी तथा शिल्पकला से युक्त नूतन गुरुमन्दिर में श्री गौतमस्वामी, सुधर्मास्वामी, पुंडरीकस्वामी एवं उपकारी गुरुदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरि, कैलाससागरसूरि व कल्याणसागरसूरि की अद्भुत मुखाकृतिवाली व नयनरम्य प्रतिमाओं की पावनकारी प्रतिष्ठा राष्ट्रसन्त पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा के वरदहस्तों से दि. २६-२-२०२०, बुधवार को अपूर्व हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुई। प्रतिष्ठा की पूर्वसंध्या पर ४० से अधिक वाद्यों के साथ “एक शाम प्रभु सीमन्धर के नाम" भक्तिसंध्या का आयोजन किया गया, जिसमें संगीतकारों ने भक्तों को भक्तिरस में सराबोर कर दिया। भक्तिसंध्या के इस कार्यक्रम में विशालकाय तीर्थमूलनायक श्री सीमन्धरस्वामी भगवान की नूतन आंगी की रचना हेतु उपस्थित श्रावकों के द्वारा कुछ ही क्षणों में भक्तों के द्वारा विशाल मात्रा में सुवर्ण व रजत अर्पण किया गया। महामंगलकारी शान्तिस्मात्र महापूजन का आयोजन किया गया। तीर्थ के प्रमुख श्री कीर्तिभाई शाह की अध्यक्षता में आयोजन समिति ने अत्यन्त परिश्रमपूर्वक प्रतिष्ठा महोत्सव को सफल बनाया। For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर मार्च-२०२० श्रीमती जशीबेन भोगीलाल शाह स्वामिवात्सल्य की लाभार्थी थी। नूतन परमात्मा व गुरूप्रतिमाओं की प्रवेशयात्रा के अंतर्गत सुसज्जित १० बग्गी, ६ ऊँटलारी तथा दर्शनीय रजत द्वारा निर्मित २ पालकी (रथ) ने यात्रा की शोभा में अभिवृद्धि की । यात्रा का शुभारंभ रविसागर उपाश्रय आजाद चौक से हुआ तथा पीलाजीगंज, दादावाडी, भम्मरिया नाला, बीके सिनेमा, उपनगर वासुपूज्य जिनालय, देवनगर सोसायटी, मुनिसुव्रत जिनालय, हिंगलाज सोसायटी, जूना धरम सिनेमा, गायत्री मन्दिर तथा हरिनगर सोसायटी होते हुए रथयात्रा ने सीमन्धरतीर्थ में प्रवेश किया। प्रवेशयात्रा में सकल महेसाणा जैन संघ शामिल था। महेसाणा गाँव के मुख्य जिनालय श्री मनोरंजन पार्श्वनाथ प्रभु के दर्शन के पश्चात् रविसागर उपाश्रय से भव्यातिभव्य शोभायात्रा प्रारम्भ हुई, यात्रा के दौरान अनेक संस्था, अलग-अलग समाज तथा संघों ने हर्षोल्लासपूर्वक भाग लिया। श्री स्वामीनारायण मन्दिर ट्रस्ट तथा याज्ञिक आई हॉस्पीटल के ट्रस्टियों के द्वारा परमपूज्य गुरुभगवन्तों को कांबली वोहराई गई। “धन्य-धन्य प्रभु तारुं जिनशासन”, “हे प्रभु भवोभव तमारु शरणुं मलजो” की ध्वनि के साथ आनन्द व्यक्त किया गया। प्रतिष्ठा के प्रसंग पर राष्ट्रसंत पूज्य श्री के साथ आचार्य श्री हेमचन्द्रसागरसूरिजी, आचार्य श्री विवेकसागरसूरिजी, गणिवर्य श्री प्रशान्तसागरजी, पर्यायस्थविर नीतिसागरजी महाराज साहेब तथा योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी समुदाय के लगभग ५० से अधिक श्रमण-श्रमणी भगवन्तों की पावनकारी उपस्थिति रही। गुरू गौतमस्वामी महापूजन तथा प्रतिदिन जिनालय में भक्ति भावना का आयोजन किया गया। ___ पंचदिवसीय महोत्सव के निमित्त एडवोकेट श्री सुरेशचन्द्र चंदुलाल शाह (शांतिनाथ सोसायटी) के निवासस्थान से राष्ट्रसन्त पूज्यश्री व सभी साधु-साध्वीजी भगवन्तों की प्रवेश-यात्रा का शुभारम्भ हुआ तथा तीर्थ के अध्यक्ष श्री कीर्तिभाई शाह के गृह आंगन में पदार्पण हुआ। इस कार्यक्रम के दौरान सर्वप्रथम कुम्भस्थापना, अखण्ड दीपक स्थापना, ज्वारारोपण, नवग्रह पाटलापूजन, लघु नंदावर्तपूजन, बहनों के द्वारा पंचकल्याणक पूजा, अठारह अभिषेक तथा महाशिवरात्रि के दिन योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म.सा. के जन्मदिवस के निमित्त गुणानुवाद, संघपूजन, गुरुस्तुति तथा दोपहर में पूज्य योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् की समुदायवर्त्तिनी पूज्य साध्वीजी भगवन्तों की निश्रा में बहनों की सामूहिक सामायिक सम्पन्न हुई। For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 3 March-2020 इस महोत्सव के दौरान श्री कल्पेशभाई वी. शाह, श्री प्रकाशभाई वसा, महेसाणा जिला के कलक्टर श्री एच. के. पटेल साहब, सांसद श्री जुगलभाई लोखंडवाला आदि महानुभावों ने राष्ट्रसन्त पूज्यश्री के दर्शन किए। ___ राष्ट्रसन्त पूज्यश्री ने प्रतिष्ठा के पश्चात् धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि सीमन्धरस्वामी परमात्मा की छत्रछाया में तीर्थ के परम उपकारी चारित्र चूडामणि आचार्यदेव श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी महाराजा की असीम कृपा एवं परमात्मभक्ति रसिक गुरुदेव आचार्यश्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के कुशल मार्गदर्शन से तीर्थ का सुन्दर विकास हुआ है। महोत्सव के कार्य में अनेक पुण्यशाली आत्माओं ने तन, मन और धन से लाभ लिया, उन सभी को मैं साधुवाद देता हूँ। पावनकारी प्रतिष्ठा श्रेष्ठ मुहूर्त में सम्पन्न हुई। प्रवचन के अन्त में उपस्थित श्रद्धालुओं को मंगल आशीर्वचन देते हुए कहा कि परमात्मा की कृपा से सभी के जीवन में सुख-शान्ति तथा धर्मआराधना में वृद्धि हो, यही मेरी शुभकामना व आशीर्वाद है। ___सोने में सुहागा...श्री अमीकुंज जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ, महेसाणा में राष्ट्रसन्त पूज्यश्री व श्रमण-श्रमणीगण की पुण्य उपस्थिति में श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ परमात्मा की पुनःप्रतिष्ठा तथा जिनालय की सालगिरह के निमित्त ध्वजारोहण किया गया। जिनालय में श्री लघुशान्तिस्नात्र महापूजन व सकल श्रीसंघ का स्वामिवात्सल्य हुआ। श्री भाईलालभाई झवेरी परिवार के नूतन गृहांगण में गुरु गौतमस्वामि महापूजन श्री भाईलालभाई नानचंदभाई झवेरी परिवार के नूतन गृहांगण में दि. १-३-२०२० को राष्ट्रसन्त पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा व गणिवर्य प्रशान्तसागरजी महाराज साहब का प्रवेश हुआ तथा पूज्यश्री की निश्रा में महामंगलकारी गुरु गौतमस्वामी महापूजन का आयोजन हुआ। पूजन में वाराहीपाटण से लाई गई अलौकिक चमत्कारी प्रभु श्री शान्तिनाथ भगवान की प्रतिमा के मुख्य सांन्निध्य में उत्तम पूजा-द्रव्यों के द्वारा शक्रस्तव अभिषेक एवं गुरु गौतमस्वामी महापूजन किया गया। इस पूजन में अनेक महानुभावों के द्वारा जीवदया तथा साधारण खाते में प्रसन्नतापूर्वक योगदान किया गया। झवेरी परिवार ने गुरुपूजन व सभी साधु-साध्वीजी भगवन्तों को चारित्र के उपकरण अर्पण कर धन्यता का अनुभव किया। राष्ट्रसन्त पूज्यश्री ने आशीर्वचन देते हुए कहा कि वर्षों से जुड़ा हुआ For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 34 मार्च-२०२० श्रुतसागर यह पुण्यशाली परिवार है। शुभ निमित्त व भाईलालभाई झवेरी की मंगल भावना से मेरा यहाँ आना हुआ। शासन के कार्य में परिवार का सुन्दर योगदान मिलता रहा है। ये अनेक संस्थाओं से जुड़े हुए व्यक्ति हैं। भाईलालभाई के ८८वें जन्मदिन पर आयोजित प्रभुभक्ति के इस विशिष्ट प्रसंग पर राष्ट्रसन्त पूज्यश्री ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि जीवन के अन्तिम सांस तक शासन की सेवा करते रहें। यही मेरा हृदय से आशीर्वाद है। इस अवसर पर उपस्थित श्रद्धालु व परिवार के रक्षाबेन राजनभाई झवेरी आदि ने अखण्ड अक्षत से पूज्यश्री को बधाया। (अनुसंधान पृष्ठ-२९ से) प्रस्तुत पुस्तक का आवरणपृष्ठ विषय के अनुसार ही आकर्षक बनाया गया है। इसका आकार भी बहुत बड़ा नहीं है। पूज्य वज्रसेनविजयजी म.सा. के सत्प्रयासों से ग्रन्थप्रकाशन की यह प्रवृत्ति हो रही है। हम पूज्यश्री से यह प्रार्थना करते हैं कि ऐसे ग्रन्थों का सम्पादन निरन्तर होता रहे। जिससे ऐसे ग्रन्थ विद्वानों और मुमुक्षु जनों हेतु अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी। परम पूज्य आचार्य भगवन्त को कोटिशः वन्दना। भावपूर्ण श्रद्धांजलि श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र की निकटवर्ती संस्था श्रीमद् राजचंद्र आध्यात्मिक साधना केन्द्र के संस्थापक, साधक पुरुष श्री आत्मानंदजी ८८ वर्ष के दीर्घ वय में दि. १९/१/२०२० रविवार के दिन प्रातःकाल ११ बजकर ५ मिनट पर अपने नश्वरदेह को त्यागकर स्वर्गस्थ हुए। उनके अंतिम दिनों में राष्ट्रसंत पूज्य आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा उनकी सुखरूप समाधि के लिए आश्रम में मंगलवचन हेतु पधारे थे। आचार्यश्री का इनके साथ काफी पुराना एवं घनिष्ठ संबंध रहा है। ऐसे महापुरुष की सद्गत आत्मा को भावपूर्ण श्रद्धांजलि. श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र परिवार For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राष्ट्रसन्त पूज्य आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा की निश्रा में श्री पारसमणि श्वे. मू. पू. जैनसंघ, घाटलोडिया-अहमदाबाद में आयोजित प्रतिष्ठा समारोह 0CRE For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Registered Under RNI Registration No. GUJMUL/2014/66126 SHRUTSAGAR (MONTHLY). Published on 15th of every month and Permitted to Post at Gift City SO, and on 20th date of every month under Postal Regd. No. G-GNR-334 issued by SSP GNR valid up to 31/12/2021. श्री भाईलालभाई झवेरी के गृहांगण में आयोजित श्री गौतमस्वामी महापूजन BOOK-POST / PRINTED MATTER प्रकाशक श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा जि. गांधीनगर 382007 फोन नं. (079) 23276204, 205, 252 फेक्स (079)23276249 Website : www.kobatirth.org email: gyanmandir@kobatirth.org Printed and Published by : HIREN KISHORBHAI DOSHI, on behalf of SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.&Dist. Gandhinagar, Pin-382007, Gujarat. And Printed at: NAVPRABHAT PRINTING PRESS, 9, Punaji Industrial Estate, Dhobighat, Dudheshwar, Ahmedabad-380004 and Published at : SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.& Dist. Gandhinagar, Pin-382007, Gujarat. Editor : HIREN KISHORBHAI DOSHI For Private and Personal Use Only