SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मार्च-२०२० ॥१३॥ ॥१४॥ ॥१५॥ ॥१६॥ ॥१७॥ ॥१८॥ श्रुतसागर बोलइ निज निज गुरु अवदात, छहइ कायनु जिह छइ घात। एक कहइ वरसाविउ मेह, रोग रहित कीधउ निज देह भुइ उपरि आण्या श्री पास, तउ तेहनी तिणइ पूरी आस। एहवा बोल अनाहुत कहइ, मुगंध लोक कांइ नवि लहइ आराधी एकइ चामुंड, तिणि जे कीधउ आतम दंड। तेह वातमइं किम वहवाइ, भालानइ तेह ज गुरु थाइ नदीमांहि पइसी सांधियउ, बल बाकुल सुर आराधियउ। तिहां जीव तणी हिंसा नहु गणइ, तेहनइ पुण गुरु गुरु मुखि भणइ एक कहइ बांधी वीजुली, अमावस्यानी पूनिम करी। वड ऊपाडि चलविउ साथि, जिन आशीस दीयइ जिननाथ इम कहतां हुइ आशातना, तिहनइ बोलइ प्रभावना। कणयरनी कंबा फेरवी, संगह तणी यात्रा कारवी ते साहमीना भोजन भणी, संघ तणइ मनी आरति घणी। तिणि मंत्रि बहु धृत आणियउ, तेणइ ते साचउ गुरु जाणियउ लोक कुगुरु धुतइ धुतीयउ, मिथ्यामति वाहण जोतिउ। कलपि ग्रंथ पुराणिय करी, वहइ मान खंधइ जूसरी राग दोष तिणि करिउ प्रमाद, पुण जे भाषइ ए विधिवाद । पंचम अंगि प्रगटउ हिउ, तेय भाव तेणि नवि लहिउ विण आलोइ काल करंति, ते अणगार विराधक हुंति । विधिवादई आलोयण नहीं, एह मर्म ते न लहइ सही एहवा बोल कहीइ केतला, बहु विरुद्ध दीसइ जेतला। पुण देखाड्या वानी मात्र, थोडइ बहु जाणइ मुंनि पात्र दशमु अछेरु इम गहगहइ, विरलु कोइ मारग लहइ। इणि अवसरि पुण गुरु दोहिला, साधु किम लाभइ सोहिला जगनाथ तीरथ जगमगइ, वरिस सहस एकवीसह लगइ। ते छइ प्रवचननइ आधारि, गुरुसु साधु तेहनइ अनुसारि ॥१९॥ ॥२०॥ ॥२१॥ ॥२२॥ ॥२३॥ ॥२४॥ ॥२५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.525356
Book TitleShrutsagar 2020 03 Volume 06 Issue 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2020
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy